Sunday, October 31, 2021

Meditation techniques (ध्यान तंत्र: (VBT61) विज्ञान भैरव तंत्र ६१)

हर मास में, आपके सामने में एक ध्यानतंत्र रखुंगा | इसमें मूल संस्कृत श्लोक के साथ स्वामी सत्यसंगानंदा सरस्वती द्वारा किया हुआ अंग्रेजीमें वस्तुतः अनुवाद रहेगा | तथा हिंदीमें व्रजवल्लभ द्विवेदी द्वारा लिखा हुआ हिंदी भावानुवाद रहेगा | अन्तमें ओशो रजनीश द्वारा उस ध्यान तंत्र पर दिये हुए भाषण का सार तथा उसका मैने किया हुआ मराठी भावानुवाद रहेगा |

मेरा आपसे अनुरोध है की यह ध्यान तंत्र केवल जानकारी हेतू पढने के बजाय इसकी अनुभूती करने का प्रयास करे | अपने स्वभाव विशेष के अनुसार इसमेसे एक ही तंत्र आपको अंतिम अनुभूती देनेमें सक्षम है | इसकी खोज आपको करनी है |

हरी ओम त् सत् !           

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Every month I will be sharing one technique of meditation. There will be original Sanskrut text, and English / Marathi / Hindi commentary on the technique. I expect reader should not take it as just a piece of information but practice the technique that suits him/her for at least one month to further the spiritual quest.

 

| These 112 meditation techniques are the ultimate source for self realization | 

 

 

विज्ञान भैरव तंत्र    

VidnyanBhairav Tantra

 

श्री देव्युवाच

श्रुतं देव मया सर्वं रुद्रयामलसम्भवम् |

त्रिकभेदमशेषेणसारात्सारविभागशः ||

 

अद्यपि न निवृत्तोमे संशय: परमेश्वर |

किं रुपं तत्वतो देव शब्दराशिकलामयम् ||

 

किं वा नवात्मभेदेन भैरवे भैरवाकृतौ |

त्रिशिरोभेदभिन्नं वा किं वा शक्तित्रयात्मकम् ||

 

नादबिन्दुमयंवापिकिंचंद्रार्धनिरोधिका: |

चक्रारुढमनच्कं वा किं वा शक्तिस्वरुपकम् ||

 

परापराया: सकलम्अपरायाश्च वा पुनः |

परायायदितद्वत्स्यात्परत्वंतद्विरुध्यते ||

 

नहि वर्ण विभेदेनदेहभेदेन वा भवेत् |

परत्वंनिष्कलत्वेनसकलत्वे न तदभवेत् ||

 

प्रसादंकुरुमे नाथ नि:शेषंछिन्धिसंशयम् |

 

भैरव उवाच

साधु साधुत्वयापृष्टंतन्त्रसारमिदंप्रिये |

 

गूहनीयतमं भद्रे तथापिकथयामि ते |

यत्किञ्चित्सकलं रुपं भैरवस्यप्रकीर्तितम् ||


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देवीने प्रश्न किया...

 

हे शिवा! आपका सत्य स्वरूप क्या है?

यह आश्चर्य से भरा जगत्क्या है?

बीज का मूलतत्वक्या है?

संसाररुपी चक्र के केंद्रस्थान पर क्या है?

सगुण विश्व के परे क्या है?

निर्गुण अमृतत्वको पाना क्या संभव है?

कृपया मेरे प्रश्नों का समाधान किजीये...

 

शिव ने उत्तर स्वरूप ११२ ध्यानतंत्र का प्रस्फुटन किया | अखिल विश्व के सभी पंथ-संप्रदाय इसीके एक अथवा अधिक तंत्र पद्धती केउपयोग से उत्पन्न हुए है | भूत, वर्तमान और भविष्य के संत, प्रेषित इसी तंत्र पद्धती के फलस्वरूप है |

 

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देवीने विचारले...

 

हे शिवा! तुझे खरे स्वरुप काय आहे?

हे अचंबित करणारे जगत काय आहे?

बीजाचे मूलतत्व काय आहे?

संसाररुपी चक्राच्या केंद्रस्थानी काय आहे?

नामरुपांच्यापलिकडे काय आहे?

नामरुपातीतअमृतत्वाची प्राप्ती शक्य आहे का?

कृपया माझे शंकानिरसन करा...

 

शिवाने उत्तरादाखल ११२ ध्यानतंत्रे सांगितली. ज्ञात-अज्ञात विश्वातील सर्व पंथसंप्रदाय,ज्ञानमार्ग यातील एक अथवा अधिक तंत्र पद्धतीद्वारा उत्पन्न झाले. भूतवर्तमान तसेच भविष्य काळातील तत्त्ववेत्तेप्रेषित यातील एक अथवा अधिक तंत्रपद्धतीचेफलस्वरुप आहेत.  

 

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 Devi Asks:

 

O Shiva, what is your reality?

What is this wonder-filled universe?

What constitutes seed?

Who centres the universal wheel?

What is this life beyond form pervading forms?

How may we enter it full, above space and time, names and descriptions?

Let my doubts be cleared!

 

Now Shiva replies and describes 112 meditation techniques.  All the religions of the world, all the seers of the world, have reached the peak through some technique or other, and all those techniques will be in these one hundred and twelve techniques.

 

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तंत्र ६१     

लीनं मूर्ध्नि वियत्सर्वम भैरवत्वेन भावयेत् |

तत्सर्वं भैरवाकार तेजस्तत्वम सामाविशेत् ||

One should comtemplate on the sky as the form of bhairava until it is all absorbed in the forehead. Then all that space will be entered by the essence of light in the state of bhairava.

 

योगी को चाहिये की वह ऐसी भावना करे कि सारा जगत आकाश के रुप में अथवा अंध:कार के रूप में हृदय, ब्रह्मरंध्र आदि प्रमुख स्थानो में उसी तरह से विद्यमान है, जैसे कि इस स्थानो में जगत के सभी पदार्थो को अपने में समेटे हुए सर्वसंहारक कालरूपी भैरव विद्यमान है | इस भावना के अभ्यास को बढाने पर अनन्तः आकाश, तिमिर, काल, जगत आदि सभी पदार्थ भैरव स्वरूप प्रकाशमय परमतत्व में समाविष्ट हो जाते है | इस धारणा के अभ्यास से योगी चित्प्रकाश रूप तेजस्तत्व में समाहित हो जाता है | अर्थात इस संसार में जो विभिन्न पदार्थ है, वे सब शिवमय है, शिव से अभिन्न है, ऐसी भावना के दृढ हो जाने पर योगी के चित्त में ब्रम्ह प्रकाशित हो जाता है |  

 

Duality is in appearance, non duality is the truth

(Dharana on chidakasha)

 

There is no duality in the universe. We are like waves in cosmic ocean. Waves are born and hence have to die, but the ocean is immortal. Each wave looks unique but deep down all are related to each other. Individuality is false. We all are related to each other. Single consciousness is waving through us. Detach yourself from the wave. Watchfulness will about waving will make you aware about ocean behind it. Ego is the barrier to become aware of the oneness behind duality. Not God but non-ego is basic to religion. Without ego you cannot cling to wave. Clinging is the root cause of fear for death. Harmony of oneness is Samadhi.

 

लाटेचे अस्तित्व क्षणिक, समुद्र शाश्वत...

 

प्रत्येक लाटेचे अस्तित्व स्वतंत्र तरीही सर्व लाटा एकाच समुद्राच्या घटक. एका लाटेचा अंत नवीन लाटेच्या उदयास कारणीभूत. लाटेचे द्वैत माया समुद्र ब्रह्म. आपले आयुष्य लाटेसारखे समुद्ररुपीआत्मतत्व अनादि, शाश्वत. अहंकाराची निर्मिती लाटेला मानण्यातून. मृत्यूचे भय पण त्यामुळेच. आकाराला अंत अटळ. निराकार अनंत. आत्मतत्वरुपी समुद्रात उठणार्‍या श्वासरुपी लाटांची अनुभूती घेतल्यास अहंकाराचा विलय.

 

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