Wednesday, July 31, 2019

Meditation techniques (ध्यान तंत्र: (VBT36) विज्ञान भैरव तंत्र ३६)


हर मास में एक ध्यानतंत्र में आपके सामने रखुंगा | इस में मूल संस्कृत श्लोक के साथ स्वामी सत्यसंगानंदा सरस्वती द्वारा किया हुआ अंग्रेजी में वस्तुतः अनुवाद रहेगा | तथा हिंदी में व्रजवल्लभ द्विवेदी द्वारा लिखा हुआ हिंदी भावानुवाद रहेगा | अन्त में ओशो रजनीश द्वारा उस ध्यान तंत्र पर दिये हुए भाषण का सार तथा उसका मैने किया हुआ मराठी भावानुवाद रहेगा |
मेरा आपसे अनुरोध है की यह ध्यान तंत्र केवल जानकारी हेतू पढने के बजाय इसकी अनुभूती करने का प्रयास करे | अपने स्वभाव विशेष के अनुसार इसमे से एक ही तंत्र आपको अंतिम अनुभूती देने में सक्षम है | इसकी खोज आपको करनी है |
हरी ओम त्  त् !
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Every month I will be sharing one technique of meditation. There will be original Sanskrut text, and English / Marathi / Hindi commentary on the technique. I expect reader should not take it as just a piece of information but practice the technique that suits him/her for at least one month to further the spiritual quest.

| These 112 meditation techniques are the ultimate source for self realization | 


विज्ञान भैरव तंत्र    
Vidnyan Bhairav Tantra

श्री देव्युवाच
श्रुतं देव मया सर्वं रुद्रयामलसम्भवम् |
त्रिकभेदमशेषेण सारात्सारविभागशः ||

अद्यपि न निवृत्तो मे संशय: परमेश्वर |
किं रुपं तत्वतो देव शब्दराशिकलामयम् ||

किं वा नवात्मभेदेन भैरवे भैरवाकृतौ |
त्रिशिरोभेदभिन्नं वा किं वा शक्तित्रयात्मकम् ||

नादबिन्दुमयं वापि किं चंद्रार्धनिरोधिका: |
चक्रारुढमनच्कं वा किं वा शक्तिस्वरुपकम् ||


परापराया: सकलम् अपरायाश्च वा पुनः |
पराया यदि तद्वत्स्यात् परत्वं तद्विरुध्यते ||

नहि वर्ण विभेदेन देहभेदेन वा भवेत् |
परत्वंनिष्कलत्वेनसकलत्वे न तदभवेत् ||

प्रसादं कुरु मे नाथ नि:शेषं छिन्धि संशयम् |


भैरव उवाच
साधु साधु त्वया पृष्टं तन्त्रसारमिदं प्रिये |

गूहनीयतमं भद्रे तथापि कथयामि ते |
यत्किञ्चित्सकलं रुपं भैरवस्य प्रकीर्तितम् ||

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देवीने प्रश्न किया...

हे शिवा! आपका सत्य स्वरूप क्या है?
यह आश्चर्य से भरा जगत् क्या है?
बीज का मूलतत्व क्या है?
संसाररुपी चक्र के केंद्रस्थान पर क्या है?
सगुण विश्व के परे क्या है?
निर्गुण अमृतत्व को पाना क्या संभव है?
कृपया मेरे प्रश्नों का समाधान किजीये...

शिव ने उत्तर स्वरूप ११२ ध्यानतंत्र का प्रस्फुटन किया | अखिल विश्व के सभी पंथ-संप्रदाय इसीके एक अथवा अधिक तंत्र पद्धती के उपयोग से उत्पन्न हुए है | भूत, वर्तमान और भविष्य के संत, प्रेषित इसी तंत्र पद्धती के फलस्वरूप है |

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देवीने विचारले...

हे शिवा! तुझे खरे स्वरुप काय आहे?
हे अचंबित करणारे जगत काय आहे?
बीजाचे मूलतत्व काय आहे?
संसाररुपी चक्राच्या केंद्रस्थानी काय आहे?
नामरुपांच्या पलिकडे काय आहे?
नामरुपातीत अमृतत्वाची प्राप्ती शक्य आहे का?
कृपया माझे शंकानिरसन करा...

शिवाने उत्तरादाखल ११२ ध्यानतंत्रे सांगितली. ज्ञात-अज्ञात विश्वातील सर्व पंथसंप्रदाय,ज्ञानमार्ग यातील एक अथवा अधिक तंत्र पद्धतीद्वारा उत्पन्न झाले. भूतवर्तमान तसेच भविष्य काळातील तत्त्ववेत्तेप्रेषित यातील एक अथवा अधिक तंत्रपद्धतीचे फलस्वरुप आहेत.  

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 Devi Asks:

O Shiva, what is your reality?
What is this wonder-filled universe?
What constitutes seed?
Who centres the universal wheel?
What is this life beyond form pervading forms?
How may we enter it full, above space and time, names and descriptions?
Let my doubts be cleared!

Now Shiva replies and describes 112 meditation techniques.  All the religions of the world, all the seers of the world, have reached the peak through some technique or other, and all those techniques will be in these one hundred and twelve techniques.

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तंत्र ३६
निर्वृक्षगिरीभित्यादि-देशे दृष्टीं विनिक्षिपेत् |
विलीने मानसे भावे वृत्तिक्षीणः प्रजायते ||
One should fix his gaze on a treeless place, like bare mountains or rocks, where there is no support for the mind to dwell on. Then the modifications of the mind become less and the experience of dissolution takes place.  

वृक्षरहित प्रदेश मरुभूमी में अथवा शून्य दिशाओं में, पर्वत के शिखर अथवा किसी भी उंचे स्थान में और भित्ती आदि प्रदेशोमे अपनी दृष्टी को जमाने का, स्थिर करने का अभ्यास करे | इस भावना के अभ्यास से साधक की दृष्टी में शून्यता समाने लगती है | ऐसी अवस्था में आलम्बन के अभाव में मानस भाव, अर्थात चित्त के स्वरूप के विगलित हो जाने पर योगी की समस्त वृत्तिया क्षीण हो जाती है उसमे महाप्रकाश का अविर्भाव होता है, अर्थात वह स्वयं ब्रह्मस्वरूप हो जाता है | 

Withdraw slowly your sight and then thought of the object to realize the truth
(Dharana on a deserted place)

Looking steadily at any object without thinking will help to lose focus on everything else around you. Once the focus is complete, close your eyes to see inner image. The reflected inner image is present in the form of thought. Look indifferently to your own thought to realize the looker, your own being. Realization of your own pristine nature is the truth. If the outer image is always constant, then the inner withdrawal becomes easy. This is the basic idea behind idol worship. Hence, we have same deity even for generations.

द्वैताकडून अद्वैताकडे...

मन एकाग्र करुन कोणत्याही बाह्य वस्तूकडे पहा. एकाग्रतेतून विचारशून्यता. विचारशून्य मनाद्वारे बाह्य वस्तूची विचाराच्या स्वरुपातील प्रतिकृती अंतरंगात उमटेल. त्याकडे तटस्थतेने पहाताना विचाराचा विलय आणी त्याद्वारा आत्मानुभूती. दररोज एकाच बाह्य वस्तूचा उपयोग केल्यास हि प्रक्रिया सुलभ. मूर्तीपूजेमागील हि मूलभूत धारणा. अद्वैतानुभूतीनंतर मूर्तीची आवश्यकता नाही.

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