Wednesday, June 30, 2021

Meditation techniques (ध्यान तंत्र: (VBT57) विज्ञान भैरव तंत्र ५७)

हर मास में, आपके सामने में एक ध्यानतंत्र रखुंगा | इसमें मूल संस्कृत श्लोक के साथ स्वामी सत्यसंगानंदा सरस्वती द्वारा किया हुआ अंग्रेजीमें वस्तुतः अनुवाद रहेगा | तथा हिंदीमें व्रजवल्लभ द्विवेदी द्वारा लिखा हुआ हिंदी भावानुवाद रहेगा | अन्तमें ओशो रजनीश द्वारा उस ध्यान तंत्र पर दिये हुए भाषण का सार तथा उसका मैने किया हुआ मराठी भावानुवाद रहेगा |

मेरा आपसे अनुरोध है की यह ध्यान तंत्र केवल जानकारी हेतू पढने के बजाय इसकी अनुभूती करने का प्रयास करे | अपने स्वभाव विशेष के अनुसार इसमेसे एक ही तंत्र आपको अंतिम अनुभूती देनेमें सक्षम है | इसकी खोज आपको करनी है |

हरी ओम त् सत् !           

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Every month I will be sharing one technique of meditation. There will be original Sanskrut text, and English / Marathi / Hindi commentary on the technique. I expect reader should not take it as just a piece of information but practice the technique that suits him/her for at least one month to further the spiritual quest.

| These 112 meditation techniques are the ultimate source for self realization | 

 

 

विज्ञान भैरव तंत्र    

VidnyanBhairav Tantra

 

श्री देव्युवाच

श्रुतं देव मया सर्वं रुद्रयामलसम्भवम् |

त्रिकभेदमशेषेणसारात्सारविभागशः ||

 

अद्यपि न निवृत्तोमे संशय: परमेश्वर |

किं रुपं तत्वतो देव शब्दराशिकलामयम् ||

 

किं वा नवात्मभेदेन भैरवे भैरवाकृतौ |

त्रिशिरोभेदभिन्नं वा किं वा शक्तित्रयात्मकम् ||

 

नादबिन्दुमयंवापिकिंचंद्रार्धनिरोधिका: |

चक्रारुढमनच्कं वा किं वा शक्तिस्वरुपकम् ||

 

परापराया: सकलम्अपरायाश्च वा पुनः |

परायायदितद्वत्स्यात्परत्वंतद्विरुध्यते ||

 

नहि वर्ण विभेदेनदेहभेदेन वा भवेत् |

परत्वंनिष्कलत्वेनसकलत्वे न तदभवेत् ||

 

प्रसादंकुरुमे नाथ नि:शेषंछिन्धिसंशयम् |

 

भैरव उवाच

साधु साधुत्वयापृष्टंतन्त्रसारमिदंप्रिये |

 

गूहनीयतमं भद्रे तथापिकथयामि ते |

यत्किञ्चित्सकलं रुपं भैरवस्यप्रकीर्तितम् ||

 

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देवीने प्रश्न किया...

 

हे शिवा! आपका सत्य स्वरूप क्या है?

यह आश्चर्य से भरा जगत्क्या है?

बीज का मूलतत्वक्या है?

संसाररुपी चक्र के केंद्रस्थान पर क्या है?

सगुण विश्व के परे क्या है?

निर्गुण अमृतत्वको पाना क्या संभव है?

कृपया मेरे प्रश्नों का समाधान किजीये...

 

शिव ने उत्तर स्वरूप ११२ ध्यानतंत्र का प्रस्फुटन किया | अखिल विश्व के सभी पंथ-संप्रदाय इसीके एक अथवा अधिक तंत्र पद्धती केउपयोग से उत्पन्न हुए है | भूत, वर्तमान और भविष्य के संत, प्रेषित इसी तंत्र पद्धती के फलस्वरूप है |

 

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देवीने विचारले...

 

हे शिवा! तुझे खरे स्वरुप काय आहे?

हे अचंबित करणारे जगत काय आहे?

बीजाचे मूलतत्व काय आहे?

संसाररुपी चक्राच्या केंद्रस्थानी काय आहे?

नामरुपांच्यापलिकडे काय आहे?

नामरुपातीतअमृतत्वाची प्राप्ती शक्य आहे का?

कृपया माझे शंकानिरसन करा...

 

शिवाने उत्तरादाखल ११२ ध्यानतंत्रे सांगितली. ज्ञात-अज्ञात विश्वातील सर्व पंथसंप्रदाय,ज्ञानमार्ग यातील एक अथवा अधिक तंत्र पद्धतीद्वारा उत्पन्न झाले. भूतवर्तमान तसेच भविष्य काळातील तत्त्ववेत्तेप्रेषित यातील एक अथवा अधिक तंत्रपद्धतीचेफलस्वरुप आहेत.  

 

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 Devi Asks:

 

O Shiva, what is your reality?

What is this wonder-filled universe?

What constitutes seed?

Who centres the universal wheel?

What is this life beyond form pervading forms?

How may we enter it full, above space and time, names and descriptions?

Let my doubts be cleared!

 

Now Shiva replies and describes 112 meditation techniques.  All the religions of the world, all the seers of the world, have reached the peak through some technique or other, and all those techniques will be in these one hundred and twelve techniques.

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तंत्र ५७ 

मध्वजिव्हे स्फारितास्ये मध्ये निक्षिप्य चेतनाम |

होच्चारं मनसा कुर्वस्ततः शान्ते प्रलीयते ||

Placing the middle of the tongue in that which has been open widely and throwing the consciousness in the middle, mentally repeating ‘Ha’, the mind will be dissolved in tranquility.

 

अपने मुह को फैलाकर जिव्हा को उलट कर उपर तालु प्रदेश में ले जाने से खेचरी  मुद्रा बनती है | इस मुद्रा में अपनी बुद्धी को स्थिर करके केवल मन से स्वर रहित ‘ह’ कार का उच्चारण करने से साधक शान्त अवस्था में लीन हो जाता है | अर्थात उसका शान्त स्वरूप अभिव्यक्त हो जाता है | इसी प्रक्रिया के अभ्यास से प्राण और अपान की गती में समता और अंततः एकता स्थापित होती है |

 

Be aware of polar opposite during extreme desire

(Dharana onHa

During any desire you get possessed and forget yourself completely. More you move towards the cause of desire outside, more you are disturbed. Do not suppress or get possess by the desire but remain witness to him the desire is happening. During extreme situations, it is easy to find out the polar opposite. Cyclone cannot exist without silent center. Similarly desire can exist only when there is center which is absolutely desireless. Witness this center by keeping the desire at periphery. Start with some past experience and then it is possible to witness the desire in present as well. Accept all bad and good desires as natural and use them to go beyond it.

 

उद्दिपित वासनेकडे साक्षीभावाने पहा...

कोणत्याही भावनेच्या आहारी गेल्यानंतर स्वतःचे विस्मरण. विस्मरणातून अधिक भावना उद्दिपन. प्रत्येक वासनेत दोन्ही ध्रुवांचा अंतर्भाव. त्याशिवाय तुलना अशक्य. रागाची भावना शांततेशिवाय अशक्य. सुखाची भावना दु:खाशिवाय अशक्य. केंद्राशिवाय वावटळ अशक्य. वासना मारणे किंवा व्यक्त करणे सोपे पण वासनेकडे तटस्थतेने पहाणे अवघड. साक्षीभावातून वासनेतील विरुद्ध ध्रुवाची अनुभूती शक्य. भूतकाळातील अपूर्ण वासना वर्तमान आणी भविष्यकाळावर परिणाम करतात. जेव्हा स्थिर केंद्राची अनुभूती तेव्हाच वासनांचा विलय.

 

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