Sunday, January 31, 2021

Meditation techniques (ध्यान तंत्र): (VBT52 विज्ञान भैरव तंत्र ५२)

हर मास में, आपके सामने में एक ध्यानतंत्र रखुंगा | इसमें मूल संस्कृत श्लोक के साथ स्वामी सत्यसंगानंदा सरस्वती द्वारा किया हुआ अंग्रेजीमें वस्तुतः अनुवाद रहेगा | तथा हिंदीमें व्रजवल्लभ द्विवेदी द्वारा लिखा हुआ हिंदी भावानुवाद रहेगा | अन्तमें ओशो रजनीश द्वारा उस ध्यान तंत्र पर दिये हुए भाषण का सार तथा उसका मैने किया हुआ मराठी भावानुवाद रहेगा |

मेरा आपसे अनुरोध है की यह ध्यान तंत्र केवल जानकारी हेतू पढने के बजाय इसकी अनुभूती करने का प्रयास करे | अपने स्वभाव विशेष के अनुसार इसमेसे एक ही तंत्र आपको अंतिम अनुभूती देनेमें सक्षम है | इसकी खोज आपको करनी है |

हरी ओम त् सत् !           

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Every month I will be sharing one technique of meditation. There will be original Sanskrut text, and English / Marathi / Hindi commentary on the technique. I expect reader should not take it as just a piece of information but practice the technique that suits him/her for at least one month to further the spiritual quest.

 

| These 112 meditation techniques are the ultimate source for self realization | 

 

 

विज्ञान भैरव तंत्र    

VidnyanBhairav Tantra

 

श्री देव्युवाच

श्रुतं देव मया सर्वं रुद्रयामलसम्भवम् |

त्रिकभेदमशेषेणसारात्सारविभागशः ||

 

अद्यपि न निवृत्तोमे संशय: परमेश्वर |

किं रुपं तत्वतो देव शब्दराशिकलामयम् ||

 

किं वा नवात्मभेदेन भैरवे भैरवाकृतौ |

त्रिशिरोभेदभिन्नं वा किं वा शक्तित्रयात्मकम् ||

 

नादबिन्दुमयंवापिकिंचंद्रार्धनिरोधिका: |

चक्रारुढमनच्कं वा किं वा शक्तिस्वरुपकम् ||

  

परापराया: सकलम्अपरायाश्च वा पुनः |

परायायदितद्वत्स्यात्परत्वंतद्विरुध्यते ||

 

नहि वर्ण विभेदेनदेहभेदेन वा भवेत् |

परत्वंनिष्कलत्वेनसकलत्वे न तदभवेत् ||

 

प्रसादंकुरुमे नाथ नि:शेषंछिन्धिसंशयम् |

 

भैरव उवाच

साधु साधुत्वयापृष्टंतन्त्रसारमिदंप्रिये |

 

गूहनीयतमं भद्रे तथापिकथयामि ते |

यत्किञ्चित्सकलं रुपं भैरवस्यप्रकीर्तितम् ||

 

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देवीने प्रश्न किया...

 

हे शिवा! आपका सत्य स्वरूप क्या है?

यह आश्चर्य से भरा जगत्क्या है?

बीज का मूलतत्वक्या है?

संसाररुपी चक्र के केंद्रस्थान पर क्या है?

सगुण विश्व के परे क्या है?

निर्गुण अमृतत्वको पाना क्या संभव है?

कृपया मेरे प्रश्नों का समाधान किजीये...

 

शिव ने उत्तर स्वरूप ११२ ध्यानतंत्र का प्रस्फुटन किया | अखिल विश्व के सभी पंथ-संप्रदाय इसीके एक अथवा अधिक तंत्र पद्धती केउपयोग से उत्पन्न हुए है | भूत, वर्तमान और भविष्य के संत, प्रेषित इसी तंत्र पद्धती के फलस्वरूप है |

 

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देवीने विचारले...

 

हे शिवा! तुझे खरे स्वरुप काय आहे?

हे अचंबित करणारे जगत काय आहे?

बीजाचे मूलतत्व काय आहे?

संसाररुपी चक्राच्या केंद्रस्थानी काय आहे?

नामरुपांच्यापलिकडे काय आहे?

नामरुपातीतअमृतत्वाची प्राप्ती शक्य आहे का?

कृपया माझे शंकानिरसन करा...

 

शिवाने उत्तरादाखल ११२ ध्यानतंत्रे सांगितली. ज्ञात-अज्ञात विश्वातील सर्व पंथसंप्रदाय,ज्ञानमार्ग यातील एक अथवा अधिक तंत्र पद्धतीद्वारा उत्पन्न झाले. भूतवर्तमान तसेच भविष्य काळातील तत्त्ववेत्तेप्रेषित यातील एक अथवा अधिक तंत्रपद्धतीचेफलस्वरुप आहेत.  

 

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Devi Asks:

 

O Shiva, what is your reality?

What is this wonder-filled universe?

What constitutes seed?

Who centres the universal wheel?

What is this life beyond form pervading forms?

How may we enter it full, above space and time, names and descriptions?

Let my doubts be cleared!

 

Now Shiva replies and describes 112 meditation techniques.  All the religions of the world, all the seers of the world, have reached the peak through some technique or other, and all those techniques will be in these one hundred and twelve techniques.

 

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तंत्र ५२

तेजसा सूर्यदीपादेराकाशे शबलीकृते |

दृष्टीर्निवेश्या तत्रैव स्वात्मरूपं प्रकाशते ||

By gazing on the space that appears variegated by the rays of the sun or an oil lamp, there the nature of one’s essential self is illuminated.


दिन में उपर – नीचे, सभी दिशामे बाहरी आकाश के सूर्य की किरणो से प्रकाशित स्थान में, रात्री में चंद्रमा की चांदनी से आलोकित उन सभी स्थानो में अथवा घर के एक कोने में रखे हुए दीपक की ज्वाला से प्रकाशित प्रकोष्ठ के चित्रित स्थान में मन को एकाग्र कर दृष्टी को निर्निमेष स्थिर रखने का अभ्यास करने पर योगी के चित्त में उसी स्थिती में स्वात्मस्वरूप की अभिव्यक्ती हो जाती है | सर्वत्र चिदाकाश की स्फूर्ती होने से वह योगी अपनी ज्ञानदृष्टी से समस्त भूवनो की जानकारी रखता है |

 

Become alive with sensitive body and live death as well

(Dharana on luminous space)

 

We follow patterns unconsciously in daily life. Hence we do not feel any experience all over the body but only locally. While eating, taste can be felt all over the body if we allow the sensitivity to grow. Thus each sense organ can become more sensitive and life can be lived. Once life is lived we are ready to live death as well. With insensitive body we cannot approach death and hence we are afraid to face it.

 

इंद्रिय दमनाद्वारे आत्मानुभूती अशक्य...

 

इंद्रिय दमनातून इंद्रियांना ताब्यात ठेवण्याचा प्रयत्न. इंद्रियांप्रती अप्रीतीतून इंद्रिय व्यापाराबद्दल अनभिज्ञता. आपले सर्व व्यवहार कृत्रिम आणी त्यामुळे अनुभूतीशून्य. मनाच्या अत्याधिक वापरामुळे अनुभूतीची क्षमता तात्कालिक. जेवताना चवीची अनुभूती केवळ जीभेवर, सर्वत्र नाही. अशाच प्रकारे अन्य सर्व इंद्रियांचे व्यवहार. इंद्रिय दमन आणी इंद्रिय शरणता दोन्ही सहज. इंद्रियांच्या व्यवहाराकडे साक्षीभावाने पहाण्यातून इंद्रियजय. आत्मतत्वाची अनुभूती त्यापुर्वी नाही. जीवन जगल्याशिवाय मृत्यूला सामोरे जाणे अशक्य.

 

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