Monday, November 30, 2020

Meditation techniques (ध्यान तंत्र: (VBT50) विज्ञान भैरव तंत्र ५०)

हर मास में, आपके सामने में एक ध्यानतंत्र रखुंगा | इसमें मूल संस्कृत श्लोक के साथ स्वामी सत्यसंगानंदा सरस्वती द्वारा किया हुआ अंग्रेजीमें वस्तुतः अनुवाद रहेगा | तथा हिंदीमें व्रजवल्लभ द्विवेदी द्वारा लिखा हुआ हिंदी भावानुवाद रहेगा | अन्तमें ओशो रजनीश द्वारा उस ध्यान तंत्र पर दिये हुए भाषण का सार तथा उसका मैने किया हुआ मराठी भावानुवाद रहेगा |

मेरा आपसे अनुरोध है की यह ध्यान तंत्र केवल जानकारी हेतू पढने के बजाय इसकी अनुभूती करने का प्रयास करे | अपने स्वभाव विशेष के अनुसार इसमेसे एक ही तंत्र आपको अंतिम अनुभूती देनेमें सक्षम है | इसकी खोज आपको करनी है |

हरी ओम त् सत् !           

---

Every month I will be sharing one technique of meditation. There will be original Sanskrut text, and English / Marathi / Hindi commentary on the technique. I expect reader should not take it as just a piece of information but practice the technique that suits him/her for at least one month to further the spiritual quest.

 

| These 112 meditation techniques are the ultimate source for self realization |  

 

विज्ञान भैरव तंत्र    

VidnyanBhairav Tantra

 

श्री देव्युवाच

श्रुतं देव मया सर्वं रुद्रयामलसम्भवम् |

त्रिकभेदमशेषेणसारात्सारविभागशः ||

 

अद्यपि न निवृत्तोमे संशय: परमेश्वर |

किं रुपं तत्वतो देव शब्दराशिकलामयम् ||

 

किं वा नवात्मभेदेन भैरवे भैरवाकृतौ |

त्रिशिरोभेदभिन्नं वा किं वा शक्तित्रयात्मकम् ||

 

नादबिन्दुमयंवापिकिंचंद्रार्धनिरोधिका: |

चक्रारुढमनच्कं वा किं वा शक्तिस्वरुपकम् ||

 

परापराया: सकलम्अपरायाश्च वा पुनः |

परायायदितद्वत्स्यात्परत्वंतद्विरुध्यते ||

 

नहि वर्ण विभेदेनदेहभेदेन वा भवेत् |

परत्वंनिष्कलत्वेनसकलत्वे न तदभवेत् ||

 

प्रसादंकुरुमे नाथ नि:शेषंछिन्धिसंशयम् |

 

भैरव उवाच

साधु साधुत्वयापृष्टंतन्त्रसारमिदंप्रिये |

 

गूहनीयतमं भद्रे तथापिकथयामि ते |

यत्किञ्चित्सकलं रुपं भैरवस्यप्रकीर्तितम् ||

 

 ---------


देवीने प्रश्न किया...

 

हे शिवा! आपका सत्य स्वरूप क्या है?

यह आश्चर्य से भरा जगत्क्या है?

बीज का मूलतत्वक्या है?

संसाररुपी चक्र के केंद्रस्थान पर क्या है?

सगुण विश्व के परे क्या है?

निर्गुण अमृतत्वको पाना क्या संभव है?

कृपया मेरे प्रश्नों का समाधान किजीये...

 

शिव ने उत्तर स्वरूप ११२ ध्यानतंत्र का प्रस्फुटन किया | अखिल विश्व के सभी पंथ-संप्रदाय इसीके एक अथवा अधिक तंत्र पद्धती केउपयोग से उत्पन्न हुए है | भूत, वर्तमान और भविष्य के संत, प्रेषित इसी तंत्र पद्धती के फलस्वरूप है |

 

 ---------


देवीने विचारले...

 

हे शिवा! तुझे खरे स्वरुप काय आहे?

हे अचंबित करणारे जगत काय आहे?

बीजाचे मूलतत्व काय आहे?

संसाररुपी चक्राच्या केंद्रस्थानी काय आहे?

नामरुपांच्यापलिकडे काय आहे?

नामरुपातीतअमृतत्वाची प्राप्ती शक्य आहे का?

कृपया माझे शंकानिरसन करा...


शिवाने उत्तरादाखल ११२ ध्यानतंत्रे सांगितली. ज्ञात-अज्ञात विश्वातील सर्व पंथसंप्रदाय,ज्ञानमार्ग यातील एक अथवा अधिक तंत्र पद्धतीद्वारा उत्पन्न झाले. भूतवर्तमान तसेच भविष्य काळातील तत्त्ववेत्तेप्रेषित यातील एक अथवा अधिक तंत्रपद्धतीचेफलस्वरुप आहेत.  

 

 ---------

 Devi Asks:

 

O Shiva, what is your reality?

What is this wonder-filled universe?

What constitutes seed?

Who centres the universal wheel?

What is this life beyond form pervading forms?

How may we enter it full, above space and time, names and descriptions?

Let my doubts be cleared!

 

Now Shiva replies and describes 112 meditation techniques.  All the religions of the world, all the seers of the world, have reached the peak through some technique or other, and all those techniques will be in these one hundred and twelve techniques.

---------


तंत्र ५०

 

यत्र यत्र मनस्तुष्टिर्मनस्तत्रैव धारयेत् |

तत्र तत्र परानंदस्वरूपं संप्रवर्तते ||

Whenever there is satisfaction of mind and the mind is held there alone, the nature of supreme bliss manifests.

मन की तुष्टि का तात्पर्य मन के आल्हाद में है, मन के क्षोभ में नही | मन पर नियंत्रण न रखनेपर नाना प्रकार के विकल्पोन्से क्षुब्ध होकर वह मन योगी को योगारूढ दशा से गिरा देता है | काम, क्रोध आदि के क्षोभ को शान्त करके ही योगी मन को स्थिर कर सकता है |  अपनी बुद्धी को एकाग्र अर्थात स्थिर करके योगी यह भावना करे की मेरा अपना स्वरूप ही सर्वत्र स्पंदित हो रहा है | साधारण व्यक्ती का भी शुभ अथवा अशुभ जिस किसी विषय में मन लग जाता है, तो उस समय अन्य सारी बातों को वह भूल जाता है | इसी स्थिती को केंद्र बिंदू बनाकर योगी जब भावना के अभ्यास से मन की एकाग्रता को बढाता जाता है, तो उसको परम आनंदमय स्वात्मस्वरूप में प्रतिष्ठा हो जाती है |   

 

 Enter the embrace without partner and be transformed

(Dharana on satisfaction of mind)

 

Once we know how to enter into sex act in totality even partner is not needed. Really partner is not there when you are in deep embrace. You are making love with total existence. Other is just a door to give this experience of non duality. As sex is great energy which is difficult to control, civilizations, religions had created a barrier in the name of sin. But we are born of out sex. This is a deep bondage which can be broken only by awareness and not by conflict. A real celibacy is attained only when you meet opposite sex within you as we are both, male and female.  

 

संभोगातून समाधीकडे...

 

संभोग भावना नैसर्गिक. धार्मिक आणी सामाजिक बंधनांमुळे त्याविषयी सदैव अपराधीपणाची भावना. त्यामुळे संभोगातून केवळ शक्तीपात. साक्षीभावाने केलेल्या प्रत्येक कृतीद्वारा शक्तीचे उर्ध्वगामी वहन शक्य. अधोगामी वहनातून शक्तीपात तर उर्ध्वगामी वहनातून शक्तीसंचय. व्यक्तीशी तात्कालिक संभोगापासून चराचराशी सदैव संभोगावस्था शक्य आणी त्यातूनच नैष्ठिक ब्रह्मचर्यप्राप्ती. संभोग भावनेच्या दमनातून नाही तर त्याच्या जाणीवपूर्वक वापरातून आत्मानुभूती.

 

---------