Sunday, March 31, 2024

Meditation techniques (ध्यान तंत्र: (VBT 89) विज्ञान भैरव तंत्र ८९)

हर मास में, आपके सामने में एक ध्यानतंत्र रखुंगा | इसमें मूल संस्कृत श्लोक के साथ स्वामी सत्यसंगानंदा सरस्वती द्वारा किया हुआ अंग्रेजीमें वस्तुतः अनुवाद रहेगा | तथा हिंदीमें व्रजवल्लभ द्विवेदी द्वारा लिखा हुआ हिंदी भावानुवाद रहेगा | अन्तमें ओशो रजनीश द्वारा उस ध्यान तंत्र पर दिये हुए भाषण का सार तथा उसका मैने किया हुआ मराठी भावानुवाद रहेगा |

मेरा आपसे अनुरोध है की यह ध्यान तंत्र केवल जानकारी हेतू पढने के बजाय इसकी अनुभूती करने का प्रयास करे | अपने स्वभाव विशेष के अनुसार इसमेसे एक ही तंत्र आपको अंतिम अनुभूती देनेमें सक्षम है | इसकी खोज आपको करनी है |

हरी ओम त् सत् !             

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Every month I will be sharing one technique of meditation. There will be original Sanskrut text, and English / Marathi / Hindi commentary on the technique. I expect reader should not take it as just a piece of information but practice the technique that suits him/her for at least one month to further the spiritual quest.

| These 112 meditation techniques are the ultimate source for self-realization |  

 

विज्ञान भैरव तंत्र    

VidnyanBhairav Tantra

 

श्री देव्युवाच

श्रुतं देव मया सर्वं रुद्रयामलसम्भवम् |

त्रिकभेदमशेषेणसारात्सारविभागशः ||

 

अद्यपि न निवृत्तोमे संशय: परमेश्वर |

किं रुपं तत्वतो देव शब्दराशिकलामयम् ||

 

किं वा नवात्मभेदेन भैरवे भैरवाकृतौ |

त्रिशिरोभेदभिन्नं वा किं वा शक्तित्रयात्मकम् ||

 

नादबिन्दुमयंवापिकिंचंद्रार्धनिरोधिका: |

चक्रारुढमनच्कं वा किं वा शक्तिस्वरुपकम् ||

 

परापराया: सकलम्अपरायाश्च वा पुनः |

परायायदितद्वत्स्यात्परत्वंतद्विरुध्यते ||

 

नहि वर्ण विभेदेनदेहभेदेन वा भवेत् |

परत्वंनिष्कलत्वेनसकलत्वे न तदभवेत् ||

 

प्रसादंकुरुमे नाथ नि:शेषंछिन्धिसंशयम् |

 

भैरव उवाच

साधु साधुत्वयापृष्टंतन्त्रसारमिदंप्रिये |

 

गूहनीयतमं भद्रे तथापिकथयामि ते |

यत्किञ्चित्सकलं रुपं भैरवस्यप्रकीर्तितम् ||

 

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देवीने प्रश्न किया...

 

हे शिवा! आपका सत्य स्वरूप क्या है?

यह आश्चर्य से भरा जगत्क्या है?

बीज का मूलतत्वक्या है?

संसाररुपी चक्र के केंद्रस्थान पर क्या है?

सगुण विश्व के परे क्या है?

निर्गुण अमृतत्वको पाना क्या संभव है?

कृपया मेरे प्रश्नों का समाधान किजीये...

 

शिव ने उत्तर स्वरूप ११२ ध्यानतंत्र का प्रस्फुटन किया | अखिल विश्व के सभी पंथ-संप्रदाय इसीके एक अथवा अधिक तंत्र पद्धती केउपयोग से उत्पन्न हुए है | भूत, वर्तमान और भविष्य के संत, प्रेषित इसी तंत्र पद्धती के फलस्वरूप है |

 

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देवीने विचारले...

 

हे शिवा! तुझे खरे स्वरुप काय आहे?

हे अचंबित करणारे जगत काय आहे?

बीजाचे मूलतत्व काय आहे?

संसाररुपी चक्राच्या केंद्रस्थानी काय आहे?

नामरुपांच्यापलिकडे काय आहे?

नामरुपातीतअमृतत्वाची प्राप्ती शक्य आहे का?

कृपया माझे शंकानिरसन करा...

 

शिवाने उत्तरादाखल ११२ ध्यानतंत्रे सांगितली. ज्ञात-अज्ञात विश्वातील सर्व पंथसंप्रदाय,ज्ञानमार्ग यातील एक अथवा अधिक तंत्र पद्धतीद्वारा उत्पन्न झाले. भूतवर्तमान तसेच भविष्य काळातील तत्त्ववेत्तेप्रेषित यातील एक अथवा अधिक तंत्रपद्धतीचे फलस्वरुप आहेत.  

 

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 Devi Asks:

 

O Shiva, what is your reality?

What is this wonder-filled universe?

What constitutes seed?

Who centres the universal wheel?

What is this life beyond form pervading forms?

How may we enter it full, above space and time, names and descriptions?

Let my doubts be cleared!

 

Now Shiva replies and describes 112 meditation techniques.  All the religions of the world, all the seers of the world, have reached the peak through some technique or other, and all those techniques will be in these one hundred and twelve techniques.

 

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तंत्र ८९

 

संप्रदायमिमं देवि शृणु सम्यग्वदाम्यहम |

कैवल्यं जायते सद्यो नेत्रयोः स्तब्धमात्र योः ||

Listen o Devi, as I am telling you about this mystic tradition in its entirety. If the eyes are fixed in steady gaze without blinking, kaivalya will arise immediately.

 

 

हे देवि, सुनो | में तुम्हे उस परंपरा का उपदेश करता हू, जिसका कि सही पद्धती से अभ्यास करने पर, अर्थात भैरवी मुद्रा में प्रदर्शित विधि से अपने नेत्रो को विषयो की ओर से समेट कर स्थिर कर लेने पर, इस सारे भेदात्मक और अभेदात्मक जगत को भूलकर अपनी अंतरात्मा की ओर दृष्टी फेर लेने पर योगी तत्काल कैवल्य को प्राप्त कर लेता है, जिस किसी भी परिस्थिती में हो शुद्ध आत्मस्वरूप में प्रतिष्टीत हो जाता है | इस ग्रंथ में पहले बताई गई अथवा आगे बताई जानेवाली सभी धारणाओका मुख्य उद्देश्य चित्त की एकाग्रता के संपादन के द्वारा चिन्मात्र स्वरूप की अभिव्यक्ती है |  

 

All inclusive, you become all

(Dharana on steady gazing)

 

Ego gives us center, individuality. People, objects around you are having same consciousness as you. Everyone is rooted in one source. With friendly group, we are more energetic where as with antagonistic people we feel exhausted. Start with your own body-mind and then go on expanding till entire universe is included, do not exclude anything and you become whole.  

 

शरीराद्वारा आत्मानुभूती...

 

विश्वात कोठेही द्वंद्व नाही. चराचरात एकच आत्मतत्व व्याप्त. शरीरदेखील त्याचाच एक घटक. अहंकाराद्वारा स्वतंत्र व्यक्तीमत्वाची जाणीव. संकुचिततेतुन अहंकाराची जोपासना. व्यापकतेतून अहंकारशून्यता आणी त्याद्वारा चल-अचलातील आत्मतत्वाची अनुभूती.

 

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