Monday, May 31, 2021

Meditation techniques (ध्यान तंत्र: (VBT56) विज्ञान भैरव तंत्र ५६)

हर मास में, आपके सामने में एक ध्यानतंत्र रखुंगा | इसमें मूल संस्कृत श्लोक के साथ स्वामी सत्यसंगानंदा सरस्वती द्वारा किया हुआ अंग्रेजीमें वस्तुतः अनुवाद रहेगा | तथा हिंदीमें व्रजवल्लभ द्विवेदी द्वारा लिखा हुआ हिंदी भावानुवाद रहेगा | अन्तमें ओशो रजनीश द्वारा उस ध्यान तंत्र पर दिये हुए भाषण का सार तथा उसका मैने किया हुआ मराठी भावानुवाद रहेगा |

मेरा आपसे अनुरोध है की यह ध्यान तंत्र केवल जानकारी हेतू पढने के बजाय इसकी अनुभूती करने का प्रयास करे | अपने स्वभाव विशेष के अनुसार इसमेसे एक ही तंत्र आपको अंतिम अनुभूती देनेमें सक्षम है | इसकी खोज आपको करनी है |

हरी ओम त् सत् !           

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Every month I will be sharing one technique of meditation. There will be original Sanskrut text, and English / Marathi / Hindi commentary on the technique. I expect reader should not take it as just a piece of information but practice the technique that suits him/her for at least one month to further the spiritual quest.

| These 112 meditation techniques are the ultimate source for self realization | 

  

विज्ञान भैरव तंत्र    

VidnyanBhairav Tantra

 

श्री देव्युवाच

श्रुतं देव मया सर्वं रुद्रयामलसम्भवम् |

त्रिकभेदमशेषेणसारात्सारविभागशः ||

 

अद्यपि न निवृत्तोमे संशय: परमेश्वर |

किं रुपं तत्वतो देव शब्दराशिकलामयम् ||

 

किं वा नवात्मभेदेन भैरवे भैरवाकृतौ |

त्रिशिरोभेदभिन्नं वा किं वा शक्तित्रयात्मकम् ||

 

नादबिन्दुमयंवापिकिंचंद्रार्धनिरोधिका: |

चक्रारुढमनच्कं वा किं वा शक्तिस्वरुपकम् ||

 

परापराया: सकलम्अपरायाश्च वा पुनः |

परायायदितद्वत्स्यात्परत्वंतद्विरुध्यते ||

 

नहि वर्ण विभेदेनदेहभेदेन वा भवेत् |

परत्वंनिष्कलत्वेनसकलत्वे न तदभवेत् ||

 

प्रसादंकुरुमे नाथ नि:शेषंछिन्धिसंशयम् |

 

भैरव उवाच

साधु साधुत्वयापृष्टंतन्त्रसारमिदंप्रिये |

 

गूहनीयतमं भद्रे तथापिकथयामि ते |

यत्किञ्चित्सकलं रुपं भैरवस्यप्रकीर्तितम् ||

 

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देवीने प्रश्न किया...

हे शिवा! आपका सत्य स्वरूप क्या है?

यह आश्चर्य से भरा जगत्क्या है?

बीज का मूलतत्वक्या है?

संसाररुपी चक्र के केंद्रस्थान पर क्या है?

सगुण विश्व के परे क्या है?

निर्गुण अमृतत्वको पाना क्या संभव है?

कृपया मेरे प्रश्नों का समाधान किजीये...

 

शिव ने उत्तर स्वरूप ११२ ध्यानतंत्र का प्रस्फुटन किया | अखिल विश्व के सभी पंथ-संप्रदाय इसीके एक अथवा अधिक तंत्र पद्धती केउपयोग से उत्पन्न हुए है | भूत, वर्तमान और भविष्य के संत, प्रेषित इसी तंत्र पद्धती के फलस्वरूप है |

 

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देवीने विचारले...

 

हे शिवा! तुझे खरे स्वरुप काय आहे?

हे अचंबित करणारे जगत काय आहे?

बीजाचे मूलतत्व काय आहे?

संसाररुपी चक्राच्या केंद्रस्थानी काय आहे?

नामरुपांच्यापलिकडे काय आहे?

नामरुपातीतअमृतत्वाची प्राप्ती शक्य आहे का?

कृपया माझे शंकानिरसन करा...

 

शिवाने उत्तरादाखल ११२ ध्यानतंत्रे सांगितली. ज्ञात-अज्ञात विश्वातील सर्व पंथसंप्रदाय,ज्ञानमार्ग यातील एक अथवा अधिक तंत्र पद्धतीद्वारा उत्पन्न झाले. भूतवर्तमान तसेच भविष्य काळातील तत्त्ववेत्तेप्रेषित यातील एक अथवा अधिक तंत्रपद्धतीचेफलस्वरुप आहेत.  

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 Devi Asks:

O Shiva, what is your reality?

What is this wonder-filled universe?

What constitutes seed?

Who centres the universal wheel?

What is this life beyond form pervading forms?

How may we enter it full, above space and time, names and descriptions?

Let my doubts be cleared!

Now Shiva replies and describes 112 meditation techniques.  All the religions of the world, all the seers of the world, have reached the peak through some technique or other, and all those techniques will be in these one hundred and twelve techniques.

 

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तंत्र ५६

स्थूलरूपस्य भावस्य स्तब्धाम दृष्टीं निपात्य च |

अचिरेण निराधारम मनः कृत्वा शिवं व्रजेत ||

One should steady the gaze without blinking on the gross form of any object. When the mind is transfixed and made supportless without any other thought or feeling, it at once acquires the state of shiva.

 

स्थूल रूप वाले घट, पट, देह आदि भावो पार उन्मेष-निमेष से रहित अंत एव स्तब्ध दृष्टि डाले और उसको अंतर्मुख बनाने का अभ्यास करे | इस मुद्रा का बार-बार अभ्यास करते रहने से मन बाह्य आलाम्बनो से छुटकरा पा जाता है, वह शीघ्र ही सभी प्रकार के विकल्पो से शून्य हो जाता है | इस तरह से साधक का चित्त जब सभी बाह्य विषयोकी चिंताओ से मुक्त हो जाता है, तो उसको शिवभाव की प्राप्ती हो जाती है, सभी पदार्थो के साथ उसकी परम एकता स्थापित हो जाती है |  

 

World is nothing but illusion

 

Real cannot be contacted by senses. There is no way to discriminate between reality and dreams as during dream it appears as real. Then why not the so called reality may be just as a dream? Illusion means inability to decide whether it is real or unreal. This confusion, uncertainty means illusion or maya. This world is in constant flux, always changing into something else. After birth of quantum physics even science is aware of this inherent uncertainty in the universe. Only appearances are certain, deeper you go everything is illusion. There is deep urge in everyone to know the truth. The only truth which is not changing and observing the changing around is You, the knower. Science can never be absolute; it will always remain relative as it is not interested in knower. Know the truth 

 

इंद्रियांद्वारा दृष्टीस पडाणारे विश्व केवळ माया...

 

आत्मतत्वाची अनुभूती इंद्रियांद्वारा अशक्य. स्वप्नावस्था आणी जागृतावस्था यातील सीमारेषा धूसर. दोन्ही अवस्था माया. दोन्ही अवस्थांची अनुभूती घेणारा 'स्व' केवळ सत्य. विश्व म्हणजे कल्पनांचा खेळ, अस्थिर. वस्तूंचे बाह्यरुप केवळ स्थिर, वस्तूंचे ज्ञान आभासात्मक. केवळ ज्ञाता सत्य. सत्याचा शोध घेण्याचा प्रयत्न करा, केवळ अस्थिर वस्तूंचा नाही.

 

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