Monday, April 27, 2020

Meditation techniques (ध्यान तंत्र: (VBT43) विज्ञान भैरव तंत्र ४३)


हर मास में, आपके सामने में एक ध्यानतंत्र रखुंगा | इसमें मूल संस्कृत श्लोक के साथ स्वामी सत्यसंगानंदा सरस्वती द्वारा किया हुआ अंग्रेजीमें वस्तुतः अनुवाद रहेगा | तथा हिंदीमें व्रजवल्लभ द्विवेदी द्वारा लिखा हुआ हिंदी भावानुवाद रहेगा | अन्तमें ओशो रजनीश द्वारा उस ध्यान तंत्र पर दिये हुए भाषण का सार तथा उसका मैने किया हुआ मराठी भावानुवाद रहेगा |
मेरा आपसे अनुरोध है की यह ध्यान तंत्र केवल जानकारी हेतू पढने के बजाय इसकी अनुभूती करने का प्रयास करे | अपने स्वभाव विशेष के अनुसार इसमेसे एक ही तंत्र आपको अंतिम अनुभूती देनेमें सक्षम है | इसकी खोज आपको करनी है |
हरी ओम त् सत् !           
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Every month I will be sharing one technique of meditation. There will be original Sanskrut text, and English / Marathi / Hindi commentary on the technique. I expect reader should not take it as just a piece of information but practice the technique that suits him/her for at least one month to further the spiritual quest.

| These 112 meditation techniques are the ultimate source for self realization | 


विज्ञान भैरव तंत्र    
VidnyanBhairav Tantra

श्री देव्युवाच
श्रुतं देव मया सर्वं रुद्रयामलसम्भवम् |
त्रिकभेदमशेषेणसारात्सारविभागशः ||

अद्यपि न निवृत्तोमे संशय: परमेश्वर |
किं रुपं तत्वतो देव शब्दराशिकलामयम् ||

किं वा नवात्मभेदेन भैरवे भैरवाकृतौ |
त्रिशिरोभेदभिन्नं वा किं वा शक्तित्रयात्मकम् ||

नादबिन्दुमयंवापिकिंचंद्रार्धनिरोधिका: |
चक्रारुढमनच्कं वा किं वा शक्तिस्वरुपकम् ||


परापराया: सकलम्अपरायाश्च वा पुनः |
परायायदितद्वत्स्यात्परत्वंतद्विरुध्यते ||

नहि वर्ण विभेदेनदेहभेदेन वा भवेत् |
परत्वंनिष्कलत्वेनसकलत्वे न तदभवेत् ||

प्रसादंकुरुमे नाथ नि:शेषंछिन्धिसंशयम् |


भैरव उवाच
साधु साधुत्वयापृष्टंतन्त्रसारमिदंप्रिये |

गूहनीयतमं भद्रे तथापिकथयामि ते |
यत्किञ्चित्सकलं रुपं भैरवस्यप्रकीर्तितम् ||

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देवीने प्रश्न किया...

हे शिवा! आपका सत्य स्वरूप क्या है?
यह आश्चर्य से भरा जगत्क्या है?
बीज का मूलतत्व क्या है?
संसाररुपी चक्र के केंद्रस्थान पर क्या है?
सगुण विश्व के परे क्या है?
निर्गुण अमृतत्वको पाना क्या संभव है?
कृपया मेरे प्रश्नों का समाधान किजीये...

शिव ने उत्तर स्वरूप ११२ ध्यानतंत्र का प्रस्फुटन किया | अखिल विश्व के सभी पंथ-संप्रदाय इसीके एक अथवा अधिक तंत्र पद्धती केउपयोग से उत्पन्न हुए है | भूत, वर्तमान और भविष्य के संत, प्रेषित इसी तंत्र पद्धती के फलस्वरूप है |

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देवीने विचारले...

हे शिवा! तुझे खरे स्वरुप काय आहे?
हे अचंबित करणारे जगत काय आहे?
बीजाचे मूलतत्व काय आहे?
संसाररुपी चक्राच्या केंद्रस्थानी काय आहे?
नामरुपांच्यापलिकडे काय आहे?
नामरुपातीतअमृतत्वाची प्राप्ती शक्य आहे का?
कृपया माझे शंकानिरसन करा...

शिवाने उत्तरादाखल ११२ ध्यानतंत्रे सांगितली. ज्ञात-अज्ञात विश्वातील सर्व पंथसंप्रदाय,ज्ञानमार्ग यातील एक अथवा अधिक तंत्र पद्धतीद्वारा उत्पन्न झाले. भूतवर्तमान तसेच भविष्य काळातील तत्त्ववेत्तेप्रेषित यातील एक अथवा अधिक तंत्रपद्धतीचेफलस्वरुप आहेत.  

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 Devi Asks:

O Shiva, what is your reality?
What is this wonder-filled universe?
What constitutes seed?
Who centres the universal wheel?
What is this life beyond form pervading forms?
How may we enter it full, above space and time, names and descriptions?
Let my doubts be cleared!

Now Shiva replies and describes 112 meditation techniques.  All the religions of the world, all the seers of the world, have reached the peak through some technique or other, and all those techniques will be in these one hundred and twelve techniques.

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तंत्र ४३

सर्वस्त्रोतोनिबन्धनप्राणशक्तोर्ध्वयाशनैः |
पिपीलस्पर्शवेलायां प्रथतेपरमंसुखम् ||

In blocking all the channels of perception, the pranashakti moves slowely upwards through the spinal column. At that time, feeling the sensation of an ant crawling in the body, one experiences the supreme bliss.

श्रोत्र, चक्षु, नासिका, मुख, गुह्य, उपस्थ प्रभृति प्राण और अपान आदि वायुओं के निकलने के मार्गों को रोक देने पर वायु गति उपर उठने लगती है | मूलाधार से लेकर द्वादशान्त पर्यन्त क्रमशः धीरे-धीरे उपर की ओर उठ रही इस प्राणशक्ती के द्वादशान्त में प्रविष्ट हो जाने पर स्वात्मस्वरूप का अनुभव होने लगता है | योगशास्त्र की परिभाषा में इसको पिपील-स्पर्शवेला कहा जाता है, जिसमे की प्राण के उपर उठते समय जन्माग्र से लेकर मूल, कंद प्रभृति स्थानो का स्पर्श होने पार उसी तरह की अनुभूती होती है, जैसे की देह पार चिंटी की चलने से होती है | इसी अवस्था में योगी इसकी परीक्षा कर पाते है की प्राण आज अमुक स्थान से चलकर अमुक स्थान तक उठा | इस स्थिती तक पहुंच जाने पार योगी का चित्त परम आनंद से भर जाता है और वह इसी अंतर्मुख वृत्ति में रम जाता है |   

Keep mind in the middle of tongue to experience the thoughtlessness
(Dharana on ascent of pranashakti)

Mind in not situated at particular place in the body. It is your focusing and it can be focused at anywhere in the body. According to the activity it needs to be shifted. But usually it is fixed in head hence we are incapable of anything else but logical thinking. Mind needs time to think. Intuition is always possible in thoughtless moments. Tongue is the center of speech. Thinking is nothing but talking within. Vibrating tongue can be experienced only when outer talking is stopped and we are aware of inner talking. If mind is focused at the middle of tongue then thinking is not possible. Be aware of uncrated sound during inhalation. Once you aware of sound at tongue it will reach to your heart and thoughts cease to arise.

मन जीभेवर केंद्रीत करुन श्वासाच्या ध्वनीची अनुभूती घ्या...
शरीराच्या कोणत्याही भागावर मन केंद्रीत करता येते. विशिष्ट परिस्थितीत विशिष्ट स्थानी मन असणे अपेक्षित. पण मन सदैव बुद्धीकेंद्रीत, त्यामुळे भावनांची जाणीव नाही. जीभेवर मन केंद्रीत केल्यास विचारांवर नियंत्रण शक्य. विचार म्हणजे स्वतःशी केलेला संवाद. जीभ स्थिर ठेऊन विचार करणे अशक्य. आत येणार्‍या श्वासाच्या नादाची अनुभूती प्रथम जीभेवर आणी नंतर घशाद्वारे हृदयापर्यंत. त्या अनुभूतीतून विचारांचा विलय आणी आत्मानुभूती.

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