Friday, April 30, 2021

Meditation techniques (ध्यान तंत्र: (VBT55) विज्ञान भैरव तंत्र ५५)

हर मास में, आपके सामने में एक ध्यानतंत्र रखुंगा | इसमें मूल संस्कृत श्लोक के साथ स्वामी सत्यसंगानंदा सरस्वती द्वारा किया हुआ अंग्रेजीमें वस्तुतः अनुवाद रहेगा | तथा हिंदीमें व्रजवल्लभ द्विवेदी द्वारा लिखा हुआ हिंदी भावानुवाद रहेगा | अन्तमें ओशो रजनीश द्वारा उस ध्यान तंत्र पर दिये हुए भाषण का सार तथा उसका मैने किया हुआ मराठी भावानुवाद रहेगा |

मेरा आपसे अनुरोध है की यह ध्यान तंत्र केवल जानकारी हेतू पढने के बजाय इसकी अनुभूती करने का प्रयास करे | अपने स्वभाव विशेष के अनुसार इसमेसे एक ही तंत्र आपको अंतिम अनुभूती देनेमें सक्षम है | इसकी खोज आपको करनी है |

हरी ओम त् सत् !           

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Every month I will be sharing one technique of meditation. There will be original Sanskrut text, and English / Marathi / Hindi commentary on the technique. I expect reader should not take it as just a piece of information but practice the technique that suits him/her for at least one month to further the spiritual quest.

| These 112 meditation techniques are the ultimate source for self realization |  

 

विज्ञान भैरव तंत्र    

Vidnyan Bhairav Tantra

 

श्री देव्युवाच

श्रुतं देव मया सर्वं रुद्रयामलसम्भवम् |

त्रिकभेदमशेषेणसारात्सारविभागशः ||

 

अद्यपि न निवृत्तोमे संशय: परमेश्वर |

किं रुपं तत्वतो देव शब्दराशिकलामयम् ||

 

किं वा नवात्मभेदेन भैरवे भैरवाकृतौ |

त्रिशिरोभेदभिन्नं वा किं वा शक्तित्रयात्मकम् ||

 

नादबिन्दुमयंवापिकिंचंद्रार्धनिरोधिका: |

चक्रारुढमनच्कं वा किं वा शक्तिस्वरुपकम् ||

 

परापराया: सकलम्अपरायाश्च वा पुनः |

परायायदितद्वत्स्यात्परत्वंतद्विरुध्यते ||

 

नहि वर्ण विभेदेनदेहभेदेन वा भवेत् |

परत्वंनिष्कलत्वेनसकलत्वे न तदभवेत् ||

 

प्रसादंकुरुमे नाथ नि:शेषंछिन्धिसंशयम् |

 

भैरव उवाच

साधु साधुत्वयापृष्टंतन्त्रसारमिदंप्रिये |

 

गूहनीयतमं भद्रे तथापिकथयामि ते |

यत्किञ्चित्सकलं रुपं भैरवस्यप्रकीर्तितम् ||

 

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देवीने प्रश्न किया...

 

हे शिवा! आपका सत्य स्वरूप क्या है?

यह आश्चर्य से भरा जगत्क्या है?

बीज का मूलतत्वक्या है?

संसाररुपी चक्र के केंद्रस्थान पर क्या है?

सगुण विश्व के परे क्या है?

निर्गुण अमृतत्वको पाना क्या संभव है?

कृपया मेरे प्रश्नों का समाधान किजीये...

 

शिव ने उत्तर स्वरूप ११२ ध्यानतंत्र का प्रस्फुटन किया | अखिल विश्व के सभी पंथ-संप्रदाय इसीके एक अथवा अधिक तंत्र पद्धती केउपयोग से उत्पन्न हुए है | भूत, वर्तमान और भविष्य के संत, प्रेषित इसी तंत्र पद्धती के फलस्वरूप है |

 

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देवीने विचारले...

 

हे शिवा! तुझे खरे स्वरुप काय आहे?

हे अचंबित करणारे जगत काय आहे?

बीजाचे मूलतत्व काय आहे?

संसाररुपी चक्राच्या केंद्रस्थानी काय आहे?

नामरुपांच्यापलिकडे काय आहे?

नामरुपातीतअमृतत्वाची प्राप्ती शक्य आहे का?

कृपया माझे शंकानिरसन करा...

 

शिवाने उत्तरादाखल ११२ ध्यानतंत्रे सांगितली. ज्ञात-अज्ञात विश्वातील सर्व पंथसंप्रदाय,ज्ञानमार्ग यातील एक अथवा अधिक तंत्र पद्धतीद्वारा उत्पन्न झाले. भूतवर्तमान तसेच भविष्य काळातील तत्त्ववेत्तेप्रेषित यातील एक अथवा अधिक तंत्रपद्धतीचेफलस्वरुप आहेत.  

 

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 Devi Asks:

 

O Shiva, what is your reality?

What is this wonder-filled universe?

What constitutes seed?

Who centres the universal wheel?

What is this life beyond form pervading forms?

How may we enter it full, above space and time, names and descriptions?

Let my doubts be cleared!

Now Shiva replies and describes 112 meditation techniques.  All the religions of the world, all the seers of the world, have reached the peak through some technique or other, and all those techniques will be in these one hundred and twelve techniques.

 

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तंत्र ५५

उपविश्यासने सम्यक बाहू कृत्वार्धकुन्चितौ |

कक्षव्योम्नि मनः कुर्वन शममायाति तल्लयात् ||

Sitting in a correct posture and curving the arms and hands into a circle, fix the gaze inside this space. The mind becomes peaceful by this laya.

आसन पर ठीक तरह से बैठकर अपने बाजूओको थोडा तिरछा करके समेट कर उनको अपनी कांख के पास सुविधापुर्वक आराम से टिका दे | इस स्थिती में भी कुछ क्षणो के लिये परम विश्रांति का अनुभव होता ही | कक्षि गत आकाश में उत्पन्न इस विश्रांति दशा की एकाग्रता को बढाने से यह मुद्रा सिद्ध हो जाती है और मन उसी स्थिती में लीन हो जाता है | उसके शांत हो जाने से साधक का शान्त स्वात्मस्वरूप अभिव्यक्त हो जाता है | नाना विकल्पो की लहारियो को उठते रहने से मन जब अशान्त रहता है, तो उसके कारण स्वात्मस्वरूप का बोध नही हो पाता | किन्तु मन जब शान्त हो जाता है, अब तक छिपा हुआ उसका स्वात्मबोध प्रकट हो जाता है | 

During change in mechanism your true nature is revealed

 

Waking and dreaming stages are our unreal face as we behave according to situations. Dream is less unreal but it is still dictated by experiences of waking stage. Detachment from world and the body is not possible while functioning of the mechanism. Try to observe the subtle stage of change in gear while falling to sleep or waking up from sleep, when you are neither sleeping nor aware. If you can remain in the middle, you are in abyss, you are falling, and there is no end. In this abyss your true nature is revealed to you.  


जागृतावस्था तसेच स्वप्नावस्था आभासात्मक, केवळ तुरियावस्थेत आत्मानुभूती...

 

जागृतावस्थेतीलअनुभवांनुसारस्वप्नावस्था. जागृतावस्था सामाजिक, सांस्कृतिक बंधनांनुसार मर्यादित. जागृतावस्थेतील अपूर्ण भावना स्वप्नावस्थेत पूर्ण करण्याचा प्रयत्न. स्वप्नावस्थाप्रतिकात्मक. बोलीभाषा विभिन्न तरी प्रतिकात्मक भाषा सर्वत्र समान. दोन्ही अवस्थांतील कार्यपद्धती विभिन्न. अवस्था बदल होताना कोणतीही कार्यपद्धती अस्तित्वात नाही. पण या तुरियावस्थेची जाणीव नाही. अत्यंत सूक्ष्म अवस्था जेव्हा आत्मानुभूती शक्य. प्रयत्नपूर्वक अवस्था बदलाच्या जाणीवेतून आत्मातत्वाची अनुभूती.

 

 

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