Monday, August 31, 2020

Meditation techniques (ध्यान तंत्र: (VBT47) विज्ञान भैरव तंत्र ४७)

 हर मास में, आपके सामने में एक ध्यानतंत्र रखुंगा | इसमें मूल संस्कृत श्लोक के साथ स्वामी सत्यसंगानंदा सरस्वती द्वारा किया हुआ अंग्रेजीमें वस्तुतः अनुवाद रहेगा | तथा हिंदीमें व्रजवल्लभ द्विवेदी द्वारा लिखा हुआ हिंदी भावानुवाद रहेगा | अन्तमें ओशो रजनीश द्वारा उस ध्यान तंत्र पर दिये हुए भाषण का सार तथा उसका मैने किया हुआ मराठी भावानुवाद रहेगा |

मेरा आपसे अनुरोध है की यह ध्यान तंत्र केवल जानकारी हेतू पढने के बजाय इसकी अनुभूती करने का प्रयास करे | अपने स्वभाव विशेष के अनुसार इसमेसे एक ही तंत्र आपको अंतिम अनुभूती देनेमें सक्षम है | इसकी खोज आपको करनी है |

हरी ओम त् सत् !           

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Every month I will be sharing one technique of meditation. There will be original Sanskrut text, and English / Marathi / Hindi commentary on the technique. I expect reader should not take it as just a piece of information but practice the technique that suits him/her for at least one month to further the spiritual quest.

| These 112 meditation techniques are the ultimate source for self realization | 

  

विज्ञान भैरव तंत्र    

VidnyanBhairav Tantra

 

श्री देव्युवाच

श्रुतं देव मया सर्वं रुद्रयामलसम्भवम् |

त्रिकभेदमशेषेणसारात्सारविभागशः ||

 

अद्यपि न निवृत्तोमे संशय: परमेश्वर |

किं रुपं तत्वतो देव शब्दराशिकलामयम् ||

 

किं वा नवात्मभेदेन भैरवे भैरवाकृतौ |

त्रिशिरोभेदभिन्नं वा किं वा शक्तित्रयात्मकम् ||

 

नादबिन्दुमयंवापिकिंचंद्रार्धनिरोधिका: |

चक्रारुढमनच्कं वा किं वा शक्तिस्वरुपकम् ||

 

परापराया: सकलम्अपरायाश्च वा पुनः |

परायायदितद्वत्स्यात्परत्वंतद्विरुध्यते ||

 

नहि वर्ण विभेदेनदेहभेदेन वा भवेत् |

परत्वंनिष्कलत्वेनसकलत्वे न तदभवेत् ||

 

प्रसादंकुरुमे नाथ नि:शेषंछिन्धिसंशयम् |

 

भैरव उवाच

साधु साधुत्वयापृष्टंतन्त्रसारमिदंप्रिये |


गूहनीयतमं भद्रे तथापिकथयामि ते |

यत्किञ्चित्सकलं रुपं भैरवस्यप्रकीर्तितम् ||

 

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देवीने प्रश्न किया...

हे शिवा! आपका सत्य स्वरूप क्या है?

यह आश्चर्य से भरा जगत्क्या है?

बीज का मूलतत्वक्या है?

संसाररुपी चक्र के केंद्रस्थान पर क्या है?

सगुण विश्व के परे क्या है?

निर्गुण अमृतत्वको पाना क्या संभव है?

कृपया मेरे प्रश्नों का समाधान किजीये...

शिव ने उत्तर स्वरूप ११२ ध्यानतंत्र का प्रस्फुटन किया | अखिल विश्व के सभी पंथ-संप्रदाय इसीके एक अथवा अधिक तंत्र पद्धती केउपयोग से उत्पन्न हुए है | भूत, वर्तमान और भविष्य के संत, प्रेषित इसी तंत्र पद्धती के फलस्वरूप है |

 

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देवीने विचारले...

हे शिवा! तुझे खरे स्वरुप काय आहे?

हे अचंबित करणारे जगत काय आहे?

बीजाचे मूलतत्व काय आहे?

संसाररुपी चक्राच्या केंद्रस्थानी काय आहे?

नामरुपांच्यापलिकडे काय आहे?

नामरुपातीतअमृतत्वाची प्राप्ती शक्य आहे का?

कृपया माझे शंकानिरसन करा...

शिवाने उत्तरादाखल ११२ ध्यानतंत्रे सांगितली. ज्ञात-अज्ञात विश्वातील सर्व पंथसंप्रदाय,ज्ञानमार्ग यातील एक अथवा अधिक तंत्र पद्धतीद्वारा उत्पन्न झाले. भूतवर्तमान तसेच भविष्य काळातील तत्त्ववेत्तेप्रेषित यातील एक अथवा अधिक तंत्रपद्धतीचेफलस्वरुप आहेत.  

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 Devi Asks:

O Shiva, what is your reality?

What is this wonder-filled universe?

What constitutes seed?

Who centres the universal wheel?

What is this life beyond form pervading forms?

How may we enter it full, above space and time, names and descriptions?

Let my doubts be cleared!

Now Shiva replies and describes 112 meditation techniques.  All the religions of the world, all the seers of the world, have reached the peak through some technique or other, and all those techniques will be in these one hundred and twelve techniques.

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 तंत्र ४७

आनंदे महति प्राप्ते दृष्टे वा बांधवे चिरात् |

आनंदमुदगतं ध्यात्वा तल्लयस्तन्मना भवेत् ||

When great joy is obtained through any even such as meeting with relatives, one should meditate on that with one-pointedness, until the mind becomes absorbed and bliss ever arises.

     

चिरकाल के प्रतिक्षा के बाद अपनी प्रेमिका या परिचित का सहवास मिलने पर व्यक्ती के मन में आनंद का सागर हिलोरे लेने लगता है | आनंद की इस उत्फुल्ल अवस्था को पकड कर उसमें दृढता और आदरपूर्वक निरंतर धारणा का अभ्यास करने से साधक का चित्त उसी में लीन होकर तदाकार हो जाता है, वह अंतर्मुख होकर उत्कृष्ट आनंदोदय दशा में विश्राम प्राप्त कर लेता है | इस स्थिती को स्पन्दावस्था तथा परमानंद अभिव्यक्ती भी कहा गया है |  

 

Enter the sound of your name

(Dharana on joy)

 

Basic unit of universe is sound and not electricity. With specific sound anything else can be generated. Words and its meaning are through mind and sound behind the word is through body. Go beyond the meaning to realize vibrations behind it. Our own name is very deep penetrated in to us and can be used as mantra. By calling one’s name, one becomes separate from it and witnessing happens. Name and forms are happens only to the body whereas the witnessing self is distinct from it.

 

मंत्ररुपस्वनामाच्या उच्चारणातून आत्मनुभूती...

 

इतर कोणत्याही नावापेक्षा स्वतःचे नाव सर्वात जवळचे वाटते, म्हणून देवाचे नाव व्यक्तींना देण्याची पद्धत. स्वतःच्या नावाचा ऊच्चार करताना शरीरापासून असलेले भिन्नत्वाची जाणीव. नामरुपे केवळ मनाची अपत्ये. आत्मतत्वनामविरहित. कोणत्याही नावाचा वापर मंत्राप्रमाणे केल्यास अर्थापलिकडील ध्वनीची अनुभूती शक्य. ध्वनी हे विश्वाचे मूलभूत एकक. ध्वनीमध्ये इतर शक्तीरुपे अंतर्भूत.

 

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