Monday, January 31, 2022

Meditation techniques (ध्यान तंत्र: (VBT63) विज्ञान भैरव तंत्र ६३)

हर मास में, आपके सामने में एक ध्यानतंत्र रखुंगा | इसमें मूल संस्कृत श्लोक के साथ स्वामी सत्यसंगानंदा सरस्वती द्वारा किया हुआ अंग्रेजीमें वस्तुतः अनुवाद रहेगा | तथा हिंदीमें व्रजवल्लभ द्विवेदी द्वारा लिखा हुआ हिंदी भावानुवाद रहेगा | अन्तमें ओशो रजनीश द्वारा उस ध्यान तंत्र पर दिये हुए भाषण का सार तथा उसका मैने किया हुआ मराठी भावानुवाद रहेगा |

मेरा आपसे अनुरोध है की यह ध्यान तंत्र केवल जानकारी हेतू पढने के बजाय इसकी अनुभूती करने का प्रयास करे | अपने स्वभाव विशेष के अनुसार इसमेसे एक ही तंत्र आपको अंतिम अनुभूती देनेमें सक्षम है | इसकी खोज आपको करनी है |

हरी ओम त् सत् !           

---

Every month I will be sharing one technique of meditation. There will be original Sanskrut text, and English / Marathi / Hindi commentary on the technique. I expect reader should not take it as just a piece of information but practice the technique that suits him/her for at least one month to further the spiritual quest.

| These 112 meditation techniques are the ultimate source for self realization | 

  

विज्ञान भैरव तंत्र    

VidnyanBhairav Tantra

 

श्री देव्युवाच

श्रुतं देव मया सर्वं रुद्रयामलसम्भवम् |

त्रिकभेदमशेषेणसारात्सारविभागशः ||

 

अद्यपि न निवृत्तोमे संशय: परमेश्वर |

किं रुपं तत्वतो देव शब्दराशिकलामयम् ||

 

किं वा नवात्मभेदेन भैरवे भैरवाकृतौ |

त्रिशिरोभेदभिन्नं वा किं वा शक्तित्रयात्मकम् ||

 

नादबिन्दुमयंवापिकिंचंद्रार्धनिरोधिका: |

चक्रारुढमनच्कं वा किं वा शक्तिस्वरुपकम् ||

 

परापराया: सकलम्अपरायाश्च वा पुनः |

परायायदितद्वत्स्यात्परत्वंतद्विरुध्यते ||

 

नहि वर्ण विभेदेनदेहभेदेन वा भवेत् |

परत्वंनिष्कलत्वेनसकलत्वे न तदभवेत् ||

 

प्रसादंकुरुमे नाथ नि:शेषंछिन्धिसंशयम् |

 

भैरव उवाच

साधु साधुत्वयापृष्टंतन्त्रसारमिदंप्रिये |

 

गूहनीयतमं भद्रे तथापिकथयामि ते |

यत्किञ्चित्सकलं रुपं भैरवस्यप्रकीर्तितम् ||

 

 ---------

देवीने प्रश्न किया...

 

हे शिवा! आपका सत्य स्वरूप क्या है?

यह आश्चर्य से भरा जगत्क्या है?

बीज का मूलतत्वक्या है?

संसाररुपी चक्र के केंद्रस्थान पर क्या है?

सगुण विश्व के परे क्या है?

निर्गुण अमृतत्वको पाना क्या संभव है?

कृपया मेरे प्रश्नों का समाधान किजीये...

 

शिव ने उत्तर स्वरूप ११२ ध्यानतंत्र का प्रस्फुटन किया | अखिल विश्व के सभी पंथ-संप्रदाय इसीके एक अथवा अधिक तंत्र पद्धती केउपयोग से उत्पन्न हुए है | भूत, वर्तमान और भविष्य के संत, प्रेषित इसी तंत्र पद्धती के फलस्वरूप है |

 

 --------- 

देवीने विचारले...

 

हे शिवा! तुझे खरे स्वरुप काय आहे?

हे अचंबित करणारे जगत काय आहे?

बीजाचे मूलतत्व काय आहे?

संसाररुपी चक्राच्या केंद्रस्थानी काय आहे?

नामरुपांच्यापलिकडे काय आहे?

नामरुपातीतअमृतत्वाची प्राप्ती शक्य आहे का?

कृपया माझे शंकानिरसन करा...

 

शिवाने उत्तरादाखल ११२ ध्यानतंत्रे सांगितली. ज्ञात-अज्ञात विश्वातील सर्व पंथसंप्रदाय,ज्ञानमार्ग यातील एक अथवा अधिक तंत्र पद्धतीद्वारा उत्पन्न झाले. भूतवर्तमान तसेच भविष्य काळातील तत्त्ववेत्तेप्रेषित यातील एक अथवा अधिक तंत्रपद्धतीचेफलस्वरुप आहेत.  

 

 ---------

 Devi Asks:

 

O Shiva, what is your reality?

What is this wonder-filled universe?

What constitutes seed?

Who centres the universal wheel?

What is this life beyond form pervading forms?

How may we enter it full, above space and time, names and descriptions?

Let my doubts be cleared!

 

Now Shiva replies and describes 112 meditation techniques.  All the religions of the world, all the seers of the world, have reached the peak through some technique or other, and all those techniques will be in these one hundred and twelve techniques.

 

---------

तंत्र ६३

 

एवमेव दुनिर्शायाम कृष्णपक्षागमेचिरम |

तैमिरम भावयन रूपं भैरवं रुपमेष्यति ||

Like this one should ever contemplate on the terrible darkness of night during the dark fortnight of the moon, if he desires to attain the form of bhairava.

 

पूर्व श्लोको में बताई गई तिमिर भावना के समान ही कृष्ण पक्ष की घनघोर काले बादलो से भरी  रात्रि में चिर काल तक तिमिर स्वरूप की भावना करे | मेघ से आच्छन रात्रि को दुर्निशा कहा जाता है | इस भयंकर अंधकारमय स्वरूप में अपनी धारणा को केंद्रित करना ही यहा तिमिर भावना कही गई है | यह परभैरव का ही अत्यंत भयंकर स्वरूप माना जाता है | इसमें भावना को स्थिर करने से योगी को भैरव स्वरूप की प्राप्ती होती जाती है, अर्थात उसमे अक्षय आनंद की अभिव्यक्ती हो जाती है और इसके कारण उसके सभी तरह के संसारिक भय शांत हो जाते है | इस भावना का अभ्यास करते समय योगी अपनी आंखो को खुली रखता है |

 

 

Be aware while using any sense organ

(Dharana on the darkness of light)

 

Sense organs are just instruments. We see through eyes, hear through ear etc and not by eyes or by ears. You have to move to the particular sense organ e.g. to hand and a sensitive person, especially women can differentiate between dead or live touch. Start with objects first and then with people as other will feel offended. Senses are masters only when you are not alert. Try to be alert and the senses will not be able to deceive you. The world of illusions looks real only to due to senses. With alert seer behind each sense organ, you can penetrate to the very core behind this world.

 

 

इंद्रियांचे व्यापार तटस्थतेने पहा...

 

इंद्रिये अनुभूती घेत नाहीत तर इंद्रियांद्वारा अनुभूती घेतली जाते. इंद्रिये केवळ साधन. अनुभूती घेणार्‍या आत्मतत्वाची विस्मृती झाल्यामुळे इंद्रिये बलवान. साक्षीभावाने प्रत्येक कृती केल्यास इंद्रिये ताब्यात राहू शकतात. केवळ इंद्रियांमुळे माया सत्य भासू लागते. साक्षीभावाने इंद्रियांद्वारा कृती केल्यास मायेपलिकडील सत्याची अनुभूती.

 

---------