Saturday, October 29, 2022

Meditation techniques (ध्यान तंत्र: (VBT 72) विज्ञान भैरव तंत्र ७२)

हर मास में, आपके सामने में एक ध्यानतंत्र रखुंगा | इसमें मूल संस्कृत श्लोक के साथ स्वामी सत्यसंगानंदा सरस्वती द्वारा किया हुआ अंग्रेजीमें वस्तुतः अनुवाद रहेगा | तथा हिंदीमें व्रजवल्लभ द्विवेदी द्वारा लिखा हुआ हिंदी भावानुवाद रहेगा | अन्तमें ओशो रजनीश द्वारा उस ध्यान तंत्र पर दिये हुए भाषण का सार तथा उसका मैने किया हुआ मराठी भावानुवाद रहेगा | मेरा आपसे अनुरोध है की यह ध्यान तंत्र केवल जानकारी हेतू पढने के बजाय इसकी अनुभूती करने का प्रयास करे | अपने स्वभाव विशेष के अनुसार इसमेसे एक ही तंत्र आपको अंतिम अनुभूती देनेमें सक्षम है | इसकी खोज आपको करनी है | हरी ओम तत् सत् !
 --- 

Every month I will be sharing one technique of meditation. There will be original Sanskrut text, and English / Marathi / Hindi commentary on the technique. I expect reader should not take it as just a piece of information but practice the technique that suits him/her for at least one month to further the spiritual quest. 

 | These 112 meditation techniques are the ultimate source for self realization | 

 विज्ञान भैरव तंत्र 
 VidnyanBhairav Tantra 

श्री देव्युवाच 
श्रुतं देव मया सर्वं रुद्रयामलसम्भवम् | त्रिकभेदमशेषेणसारात्सारविभागशः || अद्यपि न निवृत्तोमे संशय: परमेश्वर | किं रुपं तत्वतो देव शब्दराशिकलामयम् || किं वा नवात्मभेदेन भैरवे भैरवाकृतौ | त्रिशिरोभेदभिन्नं वा किं वा शक्तित्रयात्मकम् || नादबिन्दुमयंवापिकिंचंद्रार्धनिरोधिका: | चक्रारुढमनच्कं वा किं वा शक्तिस्वरुपकम् || परापराया: सकलम्अपरायाश्च वा पुनः | परायायदितद्वत्स्यात्परत्वंतद्विरुध्यते || नहि वर्ण विभेदेनदेहभेदेन वा भवेत् | परत्वं, निष्कलत्वेन, सकलत्वे न तदभवेत् || प्रसादंकुरुमे नाथ नि:शेषंछिन्धिसंशयम् | 

भैरव उवाच 
साधु साधुत्वयापृष्टंतन्त्रसारमिदंप्रिये | गूहनीयतमं भद्रे तथापिकथयामि ते | यत्किञ्चित्सकलं रुपं भैरवस्यप्रकीर्तितम् ||

--------- 

देवीने प्रश्न किया... 

 हे शिवा! आपका सत्य स्वरूप क्या है? यह आश्चर्य से भरा जगत्क्या है? बीज का मूलतत्वक्या है? संसाररुपी चक्र के केंद्रस्थान पर क्या है? सगुण विश्व के परे क्या है? निर्गुण अमृतत्वको पाना क्या संभव है? कृपया मेरे प्रश्नों का समाधान किजीये... 

शिव ने उत्तर स्वरूप ११२ ध्यानतंत्र का प्रस्फुटन किया | अखिल विश्व के सभी पंथ-संप्रदाय इसीके एक अथवा अधिक तंत्र पद्धती केउपयोग से उत्पन्न हुए है | भूत, वर्तमान और भविष्य के संत, प्रेषित इसी तंत्र पद्धती के फलस्वरूप है |

--------- 

देवीने विचारले... 
 हे शिवा! तुझे खरे स्वरुप काय आहे? हे अचंबित करणारे जगत काय आहे? बीजाचे मूलतत्व काय आहे? संसाररुपी चक्राच्या केंद्रस्थानी काय आहे? नामरुपांच्यापलिकडे काय आहे? नामरुपातीतअमृतत्वाची प्राप्ती शक्य आहे का? कृपया माझे शंकानिरसन करा

... 

शिवाने उत्तरादाखल ११२ ध्यानतंत्रे सांगितली. 
ज्ञात-अज्ञात विश्वातील सर्व पंथसंप्रदाय,ज्ञानमार्ग यातील एक अथवा अधिक तंत्र पद्धतीद्वारा उत्पन्न झाले. भूत, वर्तमान तसेच भविष्य काळातील तत्त्ववेत्ते, प्रेषित यातील एक अथवा अधिक तंत्रपद्धतीचे फलस्वरुप आहेत. 

 --------- 

Devi Asks: 
 O Shiva, what is your reality? What is this wonder-filled universe? What constitutes seed? Who centres the universal wheel? What is this life beyond form pervading forms? How may we enter it full, above space and time, names and descriptions? Let my doubts be cleared! Now Shiva replies and describes 112 meditation techniques. All the religions of the world, all the seers of the world, have reached the peak through some technique or other, and all those techniques will be in these one hundred and twelve techniques.

 --------- 

 तंत्र ७२ 

झगितीच्छाम समुत्पन्नामवलोक्य शमं नयेत | 
यत एव समुद्भूता ततस्तत्रैव लीयते || 

Observing the desires, which spring up in a flash, put an end to them. Then verily the mind will absorbed in the very source from which they have arisen. 

अमूर्त चिन्मात्र स्वात्मस्वरूप में भी माया के क्षोभ के कारण पुत्र, धन, यश, आदि की मुझे प्राप्ति हो, इस तरह की भान्ति भान्ति की इच्छाओ की उत्पति होते देखकर अपनी अंतर्मुखी वृत्ती से उसको वही शीघ्र शांत कर दे | वास्तव में प्रारंभ और अन्त में भी यह अमूर्त आत्मा चिन्मात्रस्वरूप ही है | बीच में अज्ञानवश इसमे एषणाए पैदा हो जाती है | चिन्मात्र स्वरूप तो निराकार है, उसमे इच्छाए हो नही सकती | इष्यमाण और एषणा यह सब अविद्या है, इस तरह की दृष्टी का उन्मेष होने पर साधक की सारी इच्छाए शान्त हो जाती है | जिस अविद्या से ये इच्छाए पैदा होती है, वह अविद्या आकाशस्वरूप है, शून्यस्वभाव है, अतः इस शून्य भावना का अभ्यास करने से वे इच्छाए अन्ततः आकाश में ही लीन हो जाती है और योगी का निर्विकल्प स्वात्मस्वरूप मात्र बच बच रहता है | अर्थात साधक की जब सब वृत्तिया अन्तर्मुख हो जाती है, तो उसकी सब इच्छाए भी, जो कि मन के क्षोभ के कारण उत्पन्न हुई थी, उसी तरह से मन में ही विलीन हो जाती है, जैसे कि प्रक्षुब्ध सागर से उठी लहरे सागर के शान्त हो जाने पर उसी में लीन हो जाती है | इन वृत्तियो के लीन हो जाने पर योगी शान्त समुद्र के समान अपने प्रशान्त स्वात्मस्वरूप में प्रतिष्टीत हो जाता है, ब्रह्म बन जाता है |

Feel cosmos as ever-living presence 
(Dharana on ending desires) 

World is always ever living but we are not sensitive enough to feel the liveliness. Due to excess dependence on outer things our sense organs are becoming less sensitive or almost dead. Try to grow inner sensitivity. Be patient with anything, dead or live to feel the inner existence in it. In hurry we become dead. This patience will help to grow inner calmness in you. Wherever there is light, rainbow is there. 

 संपूर्ण विश्व आत्मतत्वाने व्याप्त, आनंदमय... 

विश्व सदैव नाविन्याने परिपूर्ण. मनाच्या कल्पनेनुसार आपण आनंदी अथवा दु:खी. व्यस्त जीवनपद्धतीमध्ये भावनांना स्थान नाही. अनुभूती घेण्यासाठी वेळ नाही. आंतरिक अनुभूतीची क्षमता नष्ट झाल्याने ती निर्माण करण्यासाठी बाह्य कृत्रिम गोष्टींचा वापर आणी त्याच्या आहारी गेल्यानंतर अधिक अस्वस्थता. भावना शारिरीक स्थितीत बदल घडवण्यास सक्षम. बदल विश्वात नाही तर स्वतःमध्ये घडवणे अपेक्षित. 

 ---------