Sunday, June 30, 2019

Meditation techniques (ध्यान तंत्र: (VBT35) विज्ञान भैरव तंत्र ३५)


हर मास में एक ध्यानतंत्र में आपके सामने रखुंगा | इस में मूल संस्कृत श्लोक के साथ स्वामी सत्यसंगानंदा सरस्वती द्वारा किया हुआ अंग्रेजी में वस्तुतः अनुवाद रहेगा | तथा हिंदी में व्रजवल्लभ द्विवेदी द्वारा लिखा हुआ हिंदी भावानुवाद रहेगा | अन्त में ओशो रजनीश द्वारा उस ध्यान तंत्र पर दिये हुए भाषण का सार तथा उसका मैने किया हुआ मराठी भावानुवाद रहेगा |
मेरा आपसे अनुरोध है की यह ध्यान तंत्र केवल जानकारी हेतू पढने के बजाय इसकी अनुभूती करने का प्रयास करे | अपने स्वभाव विशेष के अनुसार इसमे से एक ही तंत्र आपको अंतिम अनुभूती देने में सक्षम है | इसकी खोज आपको करनी है |
हरी ओम त्  त् !
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Every month I will be sharing one technique of meditation. There will be original Sanskrut text, and English / Marathi / Hindi commentary on the technique. I expect reader should not take it as just a piece of information but practice the technique that suits him/her for at least one month to further the spiritual quest.

| These 112 meditation techniques are the ultimate source for self realization | 


विज्ञान भैरव तंत्र    
Vidnyan Bhairav Tantra

श्री देव्युवाच
श्रुतं देव मया सर्वं रुद्रयामलसम्भवम् |
त्रिकभेदमशेषेण सारात्सारविभागशः ||

अद्यपि न निवृत्तो मे संशय: परमेश्वर |
किं रुपं तत्वतो देव शब्दराशिकलामयम् ||

किं वा नवात्मभेदेन भैरवे भैरवाकृतौ |
त्रिशिरोभेदभिन्नं वा किं वा शक्तित्रयात्मकम् ||

नादबिन्दुमयं वापि किं चंद्रार्धनिरोधिका: |
चक्रारुढमनच्कं वा किं वा शक्तिस्वरुपकम् ||


परापराया: सकलम् अपरायाश्च वा पुनः |
पराया यदि तद्वत्स्यात् परत्वं तद्विरुध्यते ||

नहि वर्ण विभेदेन देहभेदेन वा भवेत् |
परत्वंनिष्कलत्वेनसकलत्वे न तदभवेत् ||

प्रसादं कुरु मे नाथ नि:शेषं छिन्धि संशयम् |


भैरव उवाच
साधु साधु त्वया पृष्टं तन्त्रसारमिदं प्रिये |

गूहनीयतमं भद्रे तथापि कथयामि ते |
यत्किञ्चित्सकलं रुपं भैरवस्य प्रकीर्तितम् ||

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देवीने प्रश्न किया...

हे शिवा! आपका सत्य स्वरूप क्या है?
यह आश्चर्य से भरा जगत् क्या है?
बीज का मूलतत्व क्या है?
संसाररुपी चक्र के केंद्रस्थान पर क्या है?
सगुण विश्व के परे क्या है?
निर्गुण अमृतत्व को पाना क्या संभव है?
कृपया मेरे प्रश्नों का समाधान किजीये...

शिव ने उत्तर स्वरूप ११२ ध्यानतंत्र का प्रस्फुटन किया | अखिल विश्व के सभी पंथ-संप्रदाय इसीके एक अथवा अधिक तंत्र पद्धती के उपयोग से उत्पन्न हुए है | भूत, वर्तमान और भविष्य के संत, प्रेषित इसी तंत्र पद्धती के फलस्वरूप है |

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देवीने विचारले...

हे शिवा! तुझे खरे स्वरुप काय आहे?
हे अचंबित करणारे जगत काय आहे?
बीजाचे मूलतत्व काय आहे?
संसाररुपी चक्राच्या केंद्रस्थानी काय आहे?
नामरुपांच्या पलिकडे काय आहे?
नामरुपातीत अमृतत्वाची प्राप्ती शक्य आहे का?
कृपया माझे शंकानिरसन करा...

शिवाने उत्तरादाखल ११२ ध्यानतंत्रे सांगितली. ज्ञात-अज्ञात विश्वातील सर्व पंथसंप्रदाय,ज्ञानमार्ग यातील एक अथवा अधिक तंत्र पद्धतीद्वारा उत्पन्न झाले. भूतवर्तमान तसेच भविष्य काळातील तत्त्ववेत्तेप्रेषित यातील एक अथवा अधिक तंत्रपद्धतीचे फलस्वरुप आहेत.  

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Devi Asks:

O Shiva, what is your reality?
What is this wonder-filled universe?
What constitutes seed?
Who centres the universal wheel?
What is this life beyond form pervading forms?
How may we enter it full, above space and time, names and descriptions?
Let my doubts be cleared!

Now Shiva replies and describes 112 meditation techniques.  All the religions of the world, all the seers of the world, have reached the peak through some technique or other, and all those techniques will be in these one hundred and twelve techniques.

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तंत्र ३५
घटादिभाजने दृष्टीं भित्तीसत्यक्त्वा विनिक्षिपेत् |
तल्लयं तत्क्षणादत्वा तल्लयात्तन्मयो भवेत् ||
One should fix his site on the empty space inside the pot, leaving aside the enclosing structure. Thus, the pot being gone, the mind will at once be dissolved into the space. Through that laya the mind becomes completely absorbed in the void.   


भीतर से खाली घट आदि पदार्थो में अगल-बगल की दिवारों को छोडकर अपनी दृष्टि को सीधे उस पात्र के भीतर स्थित शून्यता में लगावे | घट प्रभृति के भीतर का आकाश विभिन्न आकारोंमे विभक्त हो जाता है | आकाश की इन विभाजक दिवारों की उपेक्षा कर योगी यह भावना करे कि घट आदि पात्रों के भीतर के आकाश को इस अनंत शून्य से दिवारें अलग नही कर सकती | इस तरह से घट स्थित आकाश में साधक का चित्त जब विश्राम-लाभ कर लेता है, तो उसको शून्यातिशून्य में मेरा मन विलीन हो गया है ऐसी भावना करनी चाहिये | इससे साधक परब्रह्मभाव में समाविष्ट हो जाता है, स्वयं ब्रह्म बन जाता है |  

Look steadily into depths of deep well to go beyond relative world
(Dharana on an empty pot)

Mind has many layers but we are aware of only the outermost. Meditate on anything with many layers and slowly you will realize the inner depth in you. In the realization of depth thoughts cannot flow and mind dissolves. What we see in the world is all relative. Something is static, something is moving. This relativity is only due to fixed mind. When thoughts stop, you become part of the existence and then nothing is static in the world, everything is flowing. What we see static is the fastest moving object. It is possible to experience the absolute world beyond any relativity.

विचार प्रक्रियेतून सापेक्षता, विचारशून्यतेतून एकत्वाची अनुभूती...

विश्वातील सापेक्षता, विचाराच्या अस्तित्वामुळे. विचारशून्यतेत द्वंद्वरहित एकत्वाची अनुभूती. विश्व द्वंद्वातीत. संसारात अचल असे काहीच नाही. विचारामुळे मनाला जडत्व. जडत्वामुळे अचलत्वाची अनुभूती आणी त्यातून सापेक्षत्व. विचारशून्यतेतून मनाला तरलता, त्यातून सर्वव्याप्त एकत्वाची अनुभूती.

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