Friday, July 31, 2020

Meditation techniques (ध्यान तंत्र: (VBT46) विज्ञान भैरव तंत्र ४६)

हर मास में, आपके सामने में एक ध्यानतंत्र रखुंगा | इसमें मूल संस्कृत श्लोक के साथ स्वामी सत्यसंगानंदा सरस्वती द्वारा किया हुआ अंग्रेजीमें वस्तुतः अनुवाद रहेगा | तथा हिंदीमें व्रजवल्लभ द्विवेदी द्वारा लिखा हुआ हिंदी भावानुवाद रहेगा | अन्तमें ओशो रजनीश द्वारा उस ध्यान तंत्र पर दिये हुए भाषण का सार तथा उसका मैने किया हुआ मराठी भावानुवाद रहेगा |

मेरा आपसे अनुरोध है की यह ध्यान तंत्र केवल जानकारी हेतू पढने के बजाय इसकी अनुभूती करने का प्रयास करे | अपने स्वभाव विशेष के अनुसार इसमेसे एक ही तंत्र आपको अंतिम अनुभूती देनेमें सक्षम है | इसकी खोज आपको करनी है |

हरी ओम त् सत् !           

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Every month I will be sharing one technique of meditation. There will be original Sanskrut text, and English / Marathi / Hindi commentary on the technique. I expect reader should not take it as just a piece of information but practice the technique that suits him/her for at least one month to further the spiritual quest.

 

| These 112 meditation techniques are the ultimate source for self realization |  

 

विज्ञान भैरव तंत्र    

VidnyanBhairav Tantra

 

श्री देव्युवाच

श्रुतं देव मया सर्वं रुद्रयामलसम्भवम् |

त्रिकभेदमशेषेणसारात्सारविभागशः ||

 

अद्यपि न निवृत्तोमे संशय: परमेश्वर |

किं रुपं तत्वतो देव शब्दराशिकलामयम् ||

 

किं वा नवात्मभेदेन भैरवे भैरवाकृतौ |

त्रिशिरोभेदभिन्नं वा किं वा शक्तित्रयात्मकम् ||

 

नादबिन्दुमयंवापिकिंचंद्रार्धनिरोधिका: |

चक्रारुढमनच्कं वा किं वा शक्तिस्वरुपकम् ||

 

परापराया: सकलम्अपरायाश्च वा पुनः |

परायायदितद्वत्स्यात्परत्वंतद्विरुध्यते ||

 

नहि वर्ण विभेदेनदेहभेदेन वा भवेत् |

परत्वंनिष्कलत्वेनसकलत्वे न तदभवेत् ||

 

प्रसादंकुरुमे नाथ नि:शेषंछिन्धिसंशयम् |

 

भैरव उवाच

साधु साधुत्वयापृष्टंतन्त्रसारमिदंप्रिये |

 

गूहनीयतमं भद्रे तथापिकथयामि ते |

यत्किञ्चित्सकलं रुपं भैरवस्यप्रकीर्तितम् ||

 

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देवीने प्रश्न किया...

 

हे शिवा! आपका सत्य स्वरूप क्या है?

यह आश्चर्य से भरा जगत्क्या है?

बीज का मूलतत्वक्या है?

संसाररुपी चक्र के केंद्रस्थान पर क्या है?

सगुण विश्व के परे क्या है?

निर्गुण अमृतत्वको पाना क्या संभव है?

कृपया मेरे प्रश्नों का समाधान किजीये...

 

शिव ने उत्तर स्वरूप ११२ ध्यानतंत्र का प्रस्फुटन किया | अखिल विश्व के सभी पंथ-संप्रदाय इसीके एक अथवा अधिक तंत्र पद्धती केउपयोग से उत्पन्न हुए है | भूत, वर्तमान और भविष्य के संत, प्रेषित इसी तंत्र पद्धती के फलस्वरूप है |

 

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देवीने विचारले...

 

हे शिवा! तुझे खरे स्वरुप काय आहे?

हे अचंबित करणारे जगत काय आहे?

बीजाचे मूलतत्व काय आहे?

संसाररुपी चक्राच्या केंद्रस्थानी काय आहे?

नामरुपांच्यापलिकडे काय आहे?

नामरुपातीतअमृतत्वाची प्राप्ती शक्य आहे का?

कृपया माझे शंकानिरसन करा...

 

शिवाने उत्तरादाखल ११२ ध्यानतंत्रे सांगितली. ज्ञात-अज्ञात विश्वातील सर्व पंथसंप्रदाय,ज्ञानमार्ग यातील एक अथवा अधिक तंत्र पद्धतीद्वारा उत्पन्न झाले. भूतवर्तमान तसेच भविष्य काळातील तत्त्ववेत्तेप्रेषित यातील एक अथवा अधिक तंत्रपद्धतीचेफलस्वरुप आहेत.  

 

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 Devi Asks:

O Shiva, what is your reality?

What is this wonder-filled universe?

What constitutes seed?

Who centres the universal wheel?

What is this life beyond form pervading forms?

How may we enter it full, above space and time, names and descriptions?

Let my doubts be cleared!

 

Now Shiva replies and describes 112 meditation techniques.  All the religions of the world, all the seers of the world, have reached the peak through some technique or other, and all those techniques will be in these one hundred and twelve techniques.

 

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तंत्र ४६

लेहानामन्थनाकोटैः स्त्रीसुखस्य भरात्स्मृते: |

शक्त्यभावेSपि देवेशि भावेदानंदसंप्लव: ||

O queen of Gods, the bliss of a woman is attained even in the absence of shakti. By fully remembering and absorbing the mind in the experience of kissing, hugging and embracing, the bliss swells.


स्त्री प्रभृति आनंद के स्पष्ट कारणो की अनुपस्थिती में भी उनका स्मरण करने मात्र से व्यक्ती उनमे डूब जाता है और थोडी देर के लिये सब कुछ भूल बैठता है | इससे स्पष्ट होता है की यह अपना ही आनंद स्त्री सहवास से प्रकट होता है | इसकी अभिव्यक्ती स्त्री के अभाव में भी स्मृति के सहायता से होती है अतः यह मानना पडेगा की इस आनंद की स्थिती अपने स्वरूप में ही है | साधक को चाहिये कि वह इसी स्वाभाविक स्वरूपानंद की भावना करे और इसकी अभिव्यक्ती के बाह्य उपादानो का परित्याग कर दे |  

 

Use sensitive body to go beyond body-mind complex

(Dharana on sexual bliss in the absence of shakti)

 

Insensitive body is the price we paid to become civilized. Deep body awareness implies awareness about sex. Religion is always against using sex energy hence we are aware about body only when something is wrong but not during health. We are not even aware about death happening next moment for which body must be preparing since long time. Body language is more authentic than language of words. Stomach is released in any emergency because control is not natural. When there is no control, there is no gap between body and mind. You become only body and can listen to the sound inside the body. Sound is released through rectum and ears. If you close your ears and pull rectum up then you can hear the inner uncreated sound. Generally this sound is released and we are not aware about it. Once this sound is heard, nothing from outside world can disturb you.

 

अनाहत नादाच्या अनुभूतीत आत्मतत्वाची अनुभूती...

 

शरीरक्रियेबद्दलचे आपले ज्ञान अत्यंत प्राथमिक आणी अपूर्ण. भावना मनात निर्माण होतात आणी शरीर केवळ त्यानुसार प्रतिक्रिया देते. सामाजिक बंधनांमुळे शरीराप्रतीअप्रीती, संवेदनशून्यता. स्वस्थ शरीराची जाणीव नाही केवळ अस्वास्थ्यामध्ये अस्तित्वाची जाणीव. रोगाच्या प्राथमिक अवस्थेत शरीराकडून प्रतिक्रिया पण आपण अनभिज्ञ. मृत्यूसाठी देखील शरीरात अनेक बदल घडत असतात, पण पुढील क्षणी येणार्‍या मृत्यूबद्दल आपण अनभिज्ञ. शरीराची भाषा मानवी भाषेहून अधिक परिणामकारक. शरीर हे केवळ साधन. त्याच्या योग्य वापरातून आत्मानुभूती शक्य.  शरीराच्या निर्वात पोकळीत अनाहत नाद व्याप्त. कान आणी आतडयांवाटे तो आवागमन करतो. शरीरातील नाद प्रयत्नपूर्वक शरीरात कोंडून ठेऊन त्याचा ध्वनी ऐकण्याचा प्रयत्न करा. अनाहत नादाच्या अनुभूतीतून मानवनिर्मित कोणताही नाद चित्तात प्रतिक्रिया निर्माण करणार नाही. विचारप्रक्रियेचा विलय, कालाचाही विलय, त्यातून आत्मानुभूती.  

 

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