Thursday, January 30, 2020

Meditation techniques (ध्यान तंत्र: (VBT41) विज्ञान भैरव तंत्र ४१)


हर मास में, आपके सामने में एक ध्यानतंत्र रखुंगा | इसमें मूल संस्कृत श्लोक के साथ स्वामी सत्यसंगानंदा सरस्वती द्वारा किया हुआ अंग्रेजीमें वस्तुतः अनुवाद रहेगा | तथा हिंदीमें व्रजवल्लभ द्विवेदी द्वारा लिखा हुआ हिंदी भावानुवाद रहेगा | अन्तमें ओशो रजनीश द्वारा उस ध्यान तंत्र पर दिये हुए भाषण का सार तथा उसका मैने किया हुआ मराठी भावानुवाद रहेगा |
मेरा आपसे अनुरोध है की यह ध्यान तंत्र केवल जानकारी हेतू पढने के विपरीत इसकी अनुभूती करने का प्रयास करे | अपने स्वभाव विशेष के अनुसार इसमेसे एक ही तंत्र आपको अंतिम अनुभूती देनेमें सक्षम है | इसकी खोज आपको करनी है |
हरी ओम त् सत् !           
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Every month I will be sharing one technique of meditation. There will be original Sanskrut text, and English / Marathi / Hindi commentary on the technique. I expect reader should not take it as just a piece of information but practice the technique that suits him/her for at least one month to further the spiritual quest.

| These 112 meditation techniques are the ultimate source for self realization | 


विज्ञान भैरव तंत्र    
VidnyanBhairav Tantra

श्री देव्युवाच
श्रुतं देव मया सर्वं रुद्रयामलसम्भवम् |
त्रिकभेदमशेषेणसारात्सारविभागशः ||

अद्यपि न निवृत्तोमे संशय: परमेश्वर |
किं रुपं तत्वतो देव शब्दराशिकलामयम् ||

किं वा नवात्मभेदेन भैरवे भैरवाकृतौ |
त्रिशिरोभेदभिन्नं वा किं वा शक्तित्रयात्मकम् ||

नादबिन्दुमयंवापिकिंचंद्रार्धनिरोधिका: |
चक्रारुढमनच्कं वा किं वा शक्तिस्वरुपकम् ||


परापराया: सकलम्अपरायाश्च वा पुनः |
परायायदितद्वत्स्यात्परत्वंतद्विरुध्यते ||

नहि वर्ण विभेदेनदेहभेदेन वा भवेत् |
परत्वंनिष्कलत्वेनसकलत्वे न तदभवेत् ||

प्रसादंकुरुमे नाथ नि:शेषंछिन्धिसंशयम् |


भैरव उवाच
साधु साधुत्वयापृष्टंतन्त्रसारमिदंप्रिये |

गूहनीयतमं भद्रे तथापिकथयामि ते |
यत्किञ्चित्सकलं रुपं भैरवस्यप्रकीर्तितम् ||

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देवीने प्रश्न किया...

हे शिवा! आपका सत्य स्वरूप क्याहै?
यह आश्चर्य से भरा जगत्क्या है?
बीज का मूलतत्व क्या है?
संसाररुपी चक्र के केंद्रस्थान पर क्या है?
सगुण विश्व के परे क्या है?
निर्गुण अमृतत्वको पाना क्या संभव है?
कृपया मेरे प्रश्नों का समाधान किजीये...

शिव ने उत्तर स्वरूप ११२ ध्यानतंत्र का प्रस्फुटनकिया | अखिल विश्व के सभी पंथ-संप्रदाय इसीके एक अथवा अधिक तंत्र पद्धती केउपयोग से उत्पन्न हुए है | भूत, वर्तमान और भविष्य के संत,प्रेषित इसी तंत्र पद्धती के फलस्वरूप है |

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देवीने विचारले...

हे शिवा! तुझे खरे स्वरुप काय आहे?
हे अचंबित करणारे जगत काय आहे?
बीजाचे मूलतत्व काय आहे?
संसाररुपी चक्राच्या केंद्रस्थानी काय आहे?
नामरुपांच्या पलिकडे काय आहे?
नामरुपातीत अमृतत्वाची प्राप्ती शक्य आहे का?
कृपया माझे शंकानिरसन करा...

शिवाने उत्तरादाखल ११२ ध्यानतंत्रे सांगितली. ज्ञात-अज्ञात विश्वातील सर्व पंथसंप्रदाय,ज्ञानमार्ग यातील एक अथवा अधिक तंत्र पद्धतीद्वारा उत्पन्न झाले. भूतवर्तमान तसेच भविष्य काळातील तत्त्ववेत्तेप्रेषित यातील एक अथवा अधिक तंत्रपद्धतीचे फलस्वरुप आहेत.  

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 Devi Asks:

O Shiva, what is your reality?
What is this wonder-filled universe?
What constitutes seed?
Who centres the universal wheel?
What is this life beyond form pervading forms?
How may we enter it full, above space and time, names and descriptions?
Let my doubts be cleared!

Now Shiva replies and describes 112 meditation techniques.  All the religions of the world, all the seers of the world, have reached the peak through some technique or other, and all those techniques will be in these one hundred and twelve techniques.

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तंत्र ४१
सर्वं जगत्स्वदेहं वा स्वानंदभरितं स्मरेत् |
युगपन्स्वामृतेनैव परानन्दमयो भवेत् ||
One should contemplate simultaneously on the entire universe or on one’s body filled with the bliss of the self. Then through one’s own nector, one becomes alive with the supreme bliss.

इस सारे जगत् में अथवा अपने शरीर में , बाहरी विषयो के आनंद से अलग अपने भीतरी स्वाभाविक आनंद से यह सब परिपूर्ण है, इस तरह की भावना करे | इस भावना के अभ्यास से योगी सहसा उस स्वाभाविक आनंदमय अवस्था में प्रविष्ट हो जाता है, जिसका वर्णन उपनिषदो में मिलता है | तैतरीय उपनिषद में बताया गया है कि आनंद से ही ये सब भूत उत्पन्न होते है, उसी की सहायता से पैदा होकर जीते है और प्रलय की अवस्था में उसी में लीन हो जाते है | इस स्थिती को पा लेने पार योगी कृतकृत्य हो जाता है |  

Be omnipresent through hearing central sound of stringed instrument
(Dharana on Ananda)
All Indian arts were developed basically to reveal inner self. Music is a method of meditation for both doer and listener. While listening to external sound of any stringed instrument become aware of inner sound. Go on playing outside and become more and more aware inside. The stage comes when inner sound is so clear that all outer sounds become disturbance. Music need to be used for self-awareness and not self-forgetfulness. Musician may be mere technician if he is not using it as technique of meditation.

कोणत्याही तंतूवाद्याच्या मूलभुत नादातून आत्मानुभूती...
सर्व भारतीय विद्या आणी कलांचा हेतू 'स्व'चीअनुभूती. प्रत्येकजणआत्मानुभूतीसाठी सक्षम. त्या स्थितीपर्यंत प्रत्येकजण विद्यार्थी. कलाकार आणी श्रोता संगीतातून ध्यानातीत अवस्थेचा प्रत्यय घेण्यास सक्षम. प्रत्येक वाद्याचा एक मूलभुत नाद ज्यातून इतर नादांची निर्मिती. त्या बाह्य नादाच्या अनुभूतीतूनअंतर्नादाची जाणीव शक्य. अंतर्नादाच्याअनुभूतीतूनअहंकाराचा विलय,विचारशुन्यता आणी त्यातून आत्मानुभूती. कलेचा वा ज्ञानाचा उपयोग स्वतःला विसरण्यासाठी नाही तर 'स्व'तःला जाणून घेण्यासाठी.

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