Thursday, June 30, 2022

Meditation techniques (ध्यान तंत्र: (VBT68) विज्ञान भैरव तंत्र ६८)

हर मास में, आपके सामने में एक ध्यानतंत्र रखुंगा | इसमें मूल संस्कृत श्लोक के साथ स्वामी सत्यसंगानंदा सरस्वती द्वारा किया हुआ अंग्रेजीमें वस्तुतः अनुवाद रहेगा | तथा हिंदीमें व्रजवल्लभ द्विवेदी द्वारा लिखा हुआ हिंदी भावानुवाद रहेगा | अन्तमें ओशो रजनीश द्वारा उस ध्यान तंत्र पर दिये हुए भाषण का सार तथा उसका मैने किया हुआ मराठी भावानुवाद रहेगा |

मेरा आपसे अनुरोध है की यह ध्यान तंत्र केवल जानकारी हेतू पढने के बजाय इसकी अनुभूती करने का प्रयास करे | अपने स्वभाव विशेष के अनुसार इसमेसे एक ही तंत्र आपको अंतिम अनुभूती देनेमें सक्षम है | इसकी खोज आपको करनी है |

हरी ओम त् सत् !           

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Every month I will be sharing one technique of meditation. There will be original Sanskrut text, and English / Marathi / Hindi commentary on the technique. I expect reader should not take it as just a piece of information but practice the technique that suits him/her for at least one month to further the spiritual quest.

| These 112 meditation techniques are the ultimate source for self realization |  

 

विज्ञान भैरव तंत्र    

VidnyanBhairav Tantra

 

श्री देव्युवाच

श्रुतं देव मया सर्वं रुद्रयामलसम्भवम् |

त्रिकभेदमशेषेणसारात्सारविभागशः ||

 

अद्यपि न निवृत्तोमे संशय: परमेश्वर |

किं रुपं तत्वतो देव शब्दराशिकलामयम् ||

 

किं वा नवात्मभेदेन भैरवे भैरवाकृतौ |

त्रिशिरोभेदभिन्नं वा किं वा शक्तित्रयात्मकम् ||

 

नादबिन्दुमयंवापिकिंचंद्रार्धनिरोधिका: |

चक्रारुढमनच्कं वा किं वा शक्तिस्वरुपकम् ||

 

परापराया: सकलम्अपरायाश्च वा पुनः |

परायायदितद्वत्स्यात्परत्वंतद्विरुध्यते ||

 

नहि वर्ण विभेदेनदेहभेदेन वा भवेत् |

परत्वंनिष्कलत्वेनसकलत्वे न तदभवेत् ||

 

प्रसादंकुरुमे नाथ नि:शेषंछिन्धिसंशयम् |

 

भैरव उवाच

साधु साधुत्वयापृष्टंतन्त्रसारमिदंप्रिये |

 

गूहनीयतमं भद्रे तथापिकथयामि ते |

यत्किञ्चित्सकलं रुपं भैरवस्यप्रकीर्तितम् ||

 

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देवीने प्रश्न किया...

 

हे शिवा! आपका सत्य स्वरूप क्या है?

यह आश्चर्य से भरा जगत्क्या है?

बीज का मूलतत्वक्या है?

संसाररुपी चक्र के केंद्रस्थान पर क्या है?

सगुण विश्व के परे क्या है?

निर्गुण अमृतत्वको पाना क्या संभव है?

कृपया मेरे प्रश्नों का समाधान किजीये...

 

शिव ने उत्तर स्वरूप ११२ ध्यानतंत्र का प्रस्फुटन किया | अखिल विश्व के सभी पंथ-संप्रदाय इसीके एक अथवा अधिक तंत्र पद्धती केउपयोग से उत्पन्न हुए है | भूत, वर्तमान और भविष्य के संत, प्रेषित इसी तंत्र पद्धती के फलस्वरूप है |

 

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देवीने विचारले...

 

हे शिवा! तुझे खरे स्वरुप काय आहे?

हे अचंबित करणारे जगत काय आहे?

बीजाचे मूलतत्व काय आहे?

संसाररुपी चक्राच्या केंद्रस्थानी काय आहे?

नामरुपांच्यापलिकडे काय आहे?

नामरुपातीतअमृतत्वाची प्राप्ती शक्य आहे का?

कृपया माझे शंकानिरसन करा...

 

शिवाने उत्तरादाखल ११२ ध्यानतंत्रे सांगितली. ज्ञात-अज्ञात विश्वातील सर्व पंथसंप्रदाय,ज्ञानमार्ग यातील एक अथवा अधिक तंत्र पद्धतीद्वारा उत्पन्न झाले. भूतवर्तमान तसेच भविष्य काळातील तत्त्ववेत्तेप्रेषित यातील एक अथवा अधिक तंत्रपद्धतीचे फलस्वरुप आहेत.  

 

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 Devi Asks:

 

O Shiva, what is your reality?

What is this wonder-filled universe?

What constitutes seed?

Who centres the universal wheel?

What is this life beyond form pervading forms?

How may we enter it full, above space and time, names and descriptions?

Let my doubts be cleared!

 

Now Shiva replies and describes 112 meditation techniques.  All the religions of the world, all the seers of the world, have reached the peak through some technique or other, and all those techniques will be in these one hundred and twelve techniques.

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तंत्र ६८

 

व्योमकारम स्वमात्मानम ध्याये ध्यायेद्दिग्भिरनावृतम |

निराश्रया चितिः शक्तिः स्वरूपं दर्शयेत्तदा ||

When one meditates on one’s own self in the form of unlimited space in all directions, the mind is suspended and Shakti in the form of consciousness is revealed as the form of one’s own self.

 

आकाश की कोई आकृती न रहने पर भी जैसे उसकी सत्ता मानी जाती है, उसी तरह से जिस व्योमाकार अर्थात निराकार, शून्यस्वभाव स्वात्मरूप में यहां धारणा को स्थिर करने का विधान है, वह भी अलीक, तुच्छ, मिथ्या न होकर केवल किसी भी प्रकार की आकृती से रहित ही माना जाता है | इस नील, पीत आदि उपाधियोसे रहित, अर्थात विश्वव्यापी स्वात्मरूप में धारणा को स्थिर कर देने पर चिति शक्ती बाह्य आलम्बनो से मुक्त होकर अपने सहज स्वरूप की दिशा देती है, अर्थात साधक अपने स्वरूप में प्रतिष्टित हो जाता है |

 

Enrich knowing or doing in reality, not in dreams

(Dharana on oneself in the form of space)

 

Why do we live? Just for tomorrows hope. Hopes are dreams, not reality. Hope may be of this world or other world, money or moksha, it makes not difference. We live on borrowed things. Only ignorance is yours. Don’t follow others. Try to experience everything yourself. Dead principles, forefathers are living through you and trying to fulfill their desires. Consciously follow your acts, depattern them and live in reality.  

 

स्वतःच्या अनुभूतीवर विश्वास ठेवा, इतरांच्या नाही...

 

प्रत्येक व्यक्ती उद्याच्या आशेवर जिवंत, या विश्वातील किंवा मृत्यूनंतरच्या. स्वप्नांचा जन्म आशेतून. आशेमुळे वर्तमानकाळाचा विसर आणी केवळ भविष्याची चिंता. आपल्या सर्व कल्पना, विचार उसने आणी ऐकीव. मनाचे व्यवहार मागील जन्मांच्या संस्कारांचा परिपाक. जाणीवपूर्वक सर्व उसन्या विचारांचा त्याग म्हणजे मुक्ती.  

 

 

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