Saturday, August 31, 2019

Meditation techniques (ध्यान तंत्र: (VBT37) विज्ञान भैरव तंत्र ३७)


हर मास में एक ध्यानतंत्र में आपके सामने रखुंगा | इस में मूल संस्कृत श्लोक के साथ स्वामी सत्यसंगानंदा सरस्वती द्वारा किया हुआ अंग्रेजी में वस्तुतः अनुवाद रहेगा | तथा हिंदी में व्रजवल्लभ द्विवेदी द्वारा लिखा हुआ हिंदी भावानुवाद रहेगा | अन्त में ओशो रजनीश द्वारा उस ध्यान तंत्र पर दिये हुए भाषण का सार तथा उसका मैने किया हुआ मराठी भावानुवाद रहेगा |
मेरा आपसे अनुरोध है की यह ध्यान तंत्र केवल जानकारी हेतू पढने के बजाय इसकी अनुभूती करने का प्रयास करे | अपने स्वभाव विशेष के अनुसार इसमे से एक ही तंत्र आपको अंतिम अनुभूती देने में सक्षम है | इसकी खोज आपको करनी है |
हरी ओम त्  त् !
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Every month I will be sharing one technique of meditation. There will be original Sanskrut text, and English / Marathi / Hindi commentary on the technique. I expect reader should not take it as just a piece of information but practice the technique that suits him/her for at least one month to further the spiritual quest.

| These 112 meditation techniques are the ultimate source for self realization | 


विज्ञान भैरव तंत्र    
Vidnyan Bhairav Tantra

श्री देव्युवाच
श्रुतं देव मया सर्वं रुद्रयामलसम्भवम् |
त्रिकभेदमशेषेण सारात्सारविभागशः ||

अद्यपि न निवृत्तो मे संशय: परमेश्वर |
किं रुपं तत्वतो देव शब्दराशिकलामयम् ||

किं वा नवात्मभेदेन भैरवे भैरवाकृतौ |
त्रिशिरोभेदभिन्नं वा किं वा शक्तित्रयात्मकम् ||

नादबिन्दुमयं वापि किं चंद्रार्धनिरोधिका: |
चक्रारुढमनच्कं वा किं वा शक्तिस्वरुपकम् ||


परापराया: सकलम् अपरायाश्च वा पुनः |
पराया यदि तद्वत्स्यात् परत्वं तद्विरुध्यते ||

नहि वर्ण विभेदेन देहभेदेन वा भवेत् |
परत्वंनिष्कलत्वेनसकलत्वे न तदभवेत् ||

प्रसादं कुरु मे नाथ नि:शेषं छिन्धि संशयम् |


भैरव उवाच
साधु साधु त्वया पृष्टं तन्त्रसारमिदं प्रिये |

गूहनीयतमं भद्रे तथापि कथयामि ते |
यत्किञ्चित्सकलं रुपं भैरवस्य प्रकीर्तितम् ||

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देवीने प्रश्न किया...

हे शिवा! आपका सत्य स्वरूप क्या है?
यह आश्चर्य से भरा जगत् क्या है?
बीज का मूलतत्व क्या है?
संसाररुपी चक्र के केंद्रस्थान पर क्या है?
सगुण विश्व के परे क्या है?
निर्गुण अमृतत्व को पाना क्या संभव है?
कृपया मेरे प्रश्नों का समाधान किजीये...

शिव ने उत्तर स्वरूप ११२ ध्यानतंत्र का प्रस्फुटन किया | अखिल विश्व के सभी पंथ-संप्रदाय इसीके एक अथवा अधिक तंत्र पद्धती के उपयोग से उत्पन्न हुए है | भूत, वर्तमान और भविष्य के संत, प्रेषित इसी तंत्र पद्धती के फलस्वरूप है |

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देवीने विचारले...

हे शिवा! तुझे खरे स्वरुप काय आहे?
हे अचंबित करणारे जगत काय आहे?
बीजाचे मूलतत्व काय आहे?
संसाररुपी चक्राच्या केंद्रस्थानी काय आहे?
नामरुपांच्या पलिकडे काय आहे?
नामरुपातीत अमृतत्वाची प्राप्ती शक्य आहे का?
कृपया माझे शंकानिरसन करा...

शिवाने उत्तरादाखल ११२ ध्यानतंत्रे सांगितली. ज्ञात-अज्ञात विश्वातील सर्व पंथसंप्रदाय,ज्ञानमार्ग यातील एक अथवा अधिक तंत्र पद्धतीद्वारा उत्पन्न झाले. भूतवर्तमान तसेच भविष्य काळातील तत्त्ववेत्तेप्रेषित यातील एक अथवा अधिक तंत्रपद्धतीचे फलस्वरुप आहेत.  

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 Devi Asks:

O Shiva, what is your reality?
What is this wonder-filled universe?
What constitutes seed?
Who centres the universal wheel?
What is this life beyond form pervading forms?
How may we enter it full, above space and time, names and descriptions?
Let my doubts be cleared!

Now Shiva replies and describes 112 meditation techniques.  All the religions of the world, all the seers of the world, have reached the peak through some technique or other, and all those techniques will be in these one hundred and twelve techniques.

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तंत्र ३७
 उभायोर्भावयोरज्ञाने ध्यात्वा मध्यं समाश्रयेत् |
युगपच्च द्वयं त्यक्त्वा मध्ये तत्वं प्रकाशते ||
One should think of two objects, and in the event of such knowledge being matured, then cast both aside and dwell on the gap or space in the middle. Having meditated in the middle, the experience of the essence arises.

दो भावो की प्रतीति के समय में इन दोनो के मध्य में स्थित शून्य को ध्यान के द्वारा पकड कर उसमें चित्त को एकाग्रता के अभ्यास द्वारा स्थिर कर दे | इसके स्थिर हो जाने पर एक साथ उक्त दोनो भावो को अनालोचनात्मक पद्धतीसे परित्याग कर दे | इस भावना के अभ्यास से भावानिर्मुक्त शून्य में चित्त के लीन हो जाने के कारण उसमें परम तत्व की अभिव्यक्ती हो जाती है | योगी नानात्व का परिहार करके, चित्त को एकाग्र करने का अभ्यास करता है | बाद में इस भावना को चित्त में स्थिर हो जाने पर यह सब ज्ञात के अतिरिक्त कुछ भी नही है, इस तर हसे निर्विकल्प दशा का सहारा लेकर साधक अपने प्रमाता के वास्तविक स्वरूप को जान लेता है | यह स्थिती ही परम धाम में प्रवेश के नाम से यहा वर्णित है |

You can leave only that step on which you are standing
(Dharana on the space in between two objects)

Sound is basic unit of the universe. All creatures use sound but due to developed mind only human being use words. Words are nothing but sounds, thoughts are words, philosophies are thoughts and with philosophy come civilizations. We agreed upon certain meaning to sound otherwise there is no inherent meaning to it. Mind is sound. Above sound are words and below sound are feelings. Eyes are central for our existence hence even sound we try to visualize rather than to hear it. Try to feel sound behind any word. Specific sound has ability to create specific feeling and never otherwise. This is the basis of mantra. Uncover sound through letters and then uncover feelings through sound. We are living in philosophies and hence cannot understand feelings. Step by step we must descend down towards feelings. While standing on step of philosophy one cannot leave the step of feeling. We must arrive to feelings to leave it aside. We live with masks. If we live without masks, then our body language will reflect true feeling inside. Do not get identified with words and its meaning then you can feel the sound behind it.

ध्वनी विश्वाचे मूलभूत एकक...

संस्कृतीतून समाज...तत्त्वज्ञानातून संस्कृती...विचारातून  तत्त्वज्ञान...शब्दातून विचार...अक्षरातून शब्द्...शब्दापलिकडे ध्वनी आणी त्याहीपलिकडे भावना. ध्वनीला स्वतःचा अर्थ नाही. सर्व सजीव वस्तू ध्वनीचा वापर करतात. केवळ मानव प्रगत मनाच्या प्राबल्यामुळे शब्दाचा वापर करतो. मनरहित अवस्थेत ध्वनीमागील भावनेची अनुभूती. विशिष्ट भावना उद्दिपनासाठी विशिष्ट ध्वनीचा वापर. हेच मंत्रशास्त्र. प्रयत्नपूर्वक एकेक पायरी खाली उतरत भावनेपर्यंत पोहचणे शक्य. आपण ज्या पायरीवर उभे आहोत तीच सोडणे शक्य.

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