Thursday, December 31, 2020

Meditation techniques (ध्यान तंत्र: (VBT51) विज्ञान भैरव तंत्र ५१)

हर मास में, आपके सामने में एक ध्यानतंत्र रखुंगा | इसमें मूल संस्कृत श्लोक के साथ स्वामी सत्यसंगानंदा सरस्वती द्वारा किया हुआ अंग्रेजीमें वस्तुतः अनुवाद रहेगा | तथा हिंदीमें व्रजवल्लभ द्विवेदी द्वारा लिखा हुआ हिंदी भावानुवाद रहेगा | अन्तमें ओशो रजनीश द्वारा उस ध्यान तंत्र पर दिये हुए भाषण का सार तथा उसका मैने किया हुआ मराठी भावानुवाद रहेगा |

मेरा आपसे अनुरोध है की यह ध्यान तंत्र केवल जानकारी हेतू पढने के बजाय इसकी अनुभूती करने का प्रयास करे | अपने स्वभाव विशेष के अनुसार इसमेसे एक ही तंत्र आपको अंतिम अनुभूती देनेमें सक्षम है | इसकी खोज आपको करनी है |

हरी ओम त् सत् !           

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Every month I will be sharing one technique of meditation. There will be original Sanskrut text, and English / Marathi / Hindi commentary on the technique. I expect reader should not take it as just a piece of information but practice the technique that suits him/her for at least one month to further the spiritual quest.

| These 112 meditation techniques are the ultimate source for self realization | 

 

विज्ञान भैरव तंत्र    

VidnyanBhairav Tantra

 

श्री देव्युवाच

श्रुतं देव मया सर्वं रुद्रयामलसम्भवम् |

त्रिकभेदमशेषेणसारात्सारविभागशः ||

 

अद्यपि न निवृत्तोमे संशय: परमेश्वर |

किं रुपं तत्वतो देव शब्दराशिकलामयम् ||

 

किं वा नवात्मभेदेन भैरवे भैरवाकृतौ |

त्रिशिरोभेदभिन्नं वा किं वा शक्तित्रयात्मकम् ||

 

नादबिन्दुमयंवापिकिंचंद्रार्धनिरोधिका: |

चक्रारुढमनच्कं वा किं वा शक्तिस्वरुपकम् ||

 

परापराया: सकलम्अपरायाश्च वा पुनः |

परायायदितद्वत्स्यात्परत्वंतद्विरुध्यते ||

 

नहि वर्ण विभेदेनदेहभेदेन वा भवेत् |

परत्वंनिष्कलत्वेनसकलत्वे न तदभवेत् ||

 

प्रसादंकुरुमे नाथ नि:शेषंछिन्धिसंशयम् |

 

भैरव उवाच

साधु साधुत्वयापृष्टंतन्त्रसारमिदंप्रिये |

 

गूहनीयतमं भद्रे तथापिकथयामि ते |

यत्किञ्चित्सकलं रुपं भैरवस्यप्रकीर्तितम् ||

 

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देवीने प्रश्न किया...

हे शिवा! आपका सत्य स्वरूप क्या है?

यह आश्चर्य से भरा जगत्क्या है?

बीज का मूलतत्वक्या है?

संसाररुपी चक्र के केंद्रस्थान पर क्या है?

सगुण विश्व के परे क्या है?

निर्गुण अमृतत्वको पाना क्या संभव है?

कृपया मेरे प्रश्नों का समाधान किजीये...

 

शिव ने उत्तर स्वरूप ११२ ध्यानतंत्र का प्रस्फुटन किया | अखिल विश्व के सभी पंथ-संप्रदाय इसीके एक अथवा अधिक तंत्र पद्धती केउपयोग से उत्पन्न हुए है | भूत, वर्तमान और भविष्य के संत, प्रेषित इसी तंत्र पद्धती के फलस्वरूप है |

 

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देवीने विचारले...

 

हे शिवा! तुझे खरे स्वरुप काय आहे?

हे अचंबित करणारे जगत काय आहे?

बीजाचे मूलतत्व काय आहे?

संसाररुपी चक्राच्या केंद्रस्थानी काय आहे?

नामरुपांच्यापलिकडे काय आहे?

नामरुपातीतअमृतत्वाची प्राप्ती शक्य आहे का?

कृपया माझे शंकानिरसन करा...

 

शिवाने उत्तरादाखल ११२ ध्यानतंत्रे सांगितली. ज्ञात-अज्ञात विश्वातील सर्व पंथसंप्रदाय,ज्ञानमार्ग यातील एक अथवा अधिक तंत्र पद्धतीद्वारा उत्पन्न झाले. भूतवर्तमान तसेच भविष्य काळातील तत्त्ववेत्तेप्रेषित यातील एक अथवा अधिक तंत्रपद्धतीचेफलस्वरुप आहेत.  

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 Devi Asks:

 

O Shiva, what is your reality?

What is this wonder-filled universe?

What constitutes seed?

Who centres the universal wheel?

What is this life beyond form pervading forms?

How may we enter it full, above space and time, names and descriptions?

Let my doubts be cleared!

 

Now Shiva replies and describes 112 meditation techniques.  All the religions of the world, all the seers of the world, have reached the peak through some technique or other, and all those techniques will be in these one hundred and twelve techniques.

 

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तंत्र ५१

अनागतायां निद्रायाम प्रणष्टे बाह्य गोचरे |

सावस्था मनसा गम्या परा देवी प्रकाशते ||

By entering that state preceding sleep, where the awareness of the outer world has faded, the mind is absorbed in the threshold state which the supreme goddess illumines.

 

अभी ठीक तरह से नींद नही लगी है, व्यक्ती जब जगा हुआ ही है, किन्तु नींद आने वाली है, उस स्थिती में उसकी चित्त की वृत्ति तमोगुण में आच्छन्न होने लगती है | तब बाहरी विषय उसके आंखोके (सभी इंद्रियो) के सामने रहते हुए भी उसको दिखाई नही पडते | यह जाग्रत और स्वप्नावस्था के बीच की स्थिती है | इस अवस्था में बाह्य विषयोन्के रहते हुए भी उनका भान नही होता | साधक को अपनी चेतना में इसी स्थिती को लाने का अभ्यास करना चाहिये, जब कि बाह्य विषय उसके सामने रहते हुए भी न रहने के समान हो जाये | इससे साधक का मन निर्विकल्प हो जाता है, बाह्य विकल्पो की प्रतीति समाप्त हो जाती है, वह उनको देखता हुआ भी नही देखता | उक्त दोनो अवस्थाओ के बीच की इस स्थिती को परावस्था कहा जाता है | इस परावस्था में साधक का परा देवीमय स्वरूप भासित होने लगता है |

 

Be aware of source of emotions and not the cause

(Dharana on the threshold before sleep)

 

As we are object centered, we always think that external situations bring emotions to us. People or objects are merely helping to surface our own emotions. During any emotions be aware of the source and let the external situation remain on periphery. Instead of rationalizing the happenings, try to feel it. This awareness will act differently on different emotions. Those which grow with awareness are positive and those which dissolve are negative emotions. That doesn’t remain in awareness is sin whereas that grows in awareness is virtue.

 

भावनांचा उगम बाह्य वस्तूत नाही तर आत्मतत्वात...

 

बाह्य घटना, वस्तू, व्यक्ती आपल्यावर प्रभाव टाकतात. आनंद,दु:, राग, द्वेष, प्रेम, समाधान इ. सर्व भावनांचा उगम बाहेरून आत नाही तर आतून बाहेर. भावनेच्या कारणाच्या विचारातून उगमाचा विसर. सकारात्मक तसेच नकारात्मक भावनांचे मूळस्थानआत्मतत्व. कोणत्याही भावनेला नाकारू नका तर केवळ साक्षीभावाने पहा. तटस्थतेतून उगमाची अनुभूती. तटस्थतेतून सकारात्मक भावनांची वाढ तर नकारात्मक भावनांचा विलय.

 

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