Saturday, November 30, 2019

Meditation techniques (ध्यान तंत्र: (VBT40) विज्ञान भैरव तंत्र ४०)


हर मास में, आपके सामने में एक ध्यानतंत्र रखुंगा | इसमें मूल संस्कृत श्लोक के साथ स्वामी सत्यसंगानंदा सरस्वती द्वारा किया हुआ अंग्रेजीमें वस्तुतः अनुवाद रहेगा | तथा हिंदीमें व्रजवल्लभ द्विवेदी द्वारा लिखा हुआ हिंदी भावानुवाद रहेगा | अन्तमें ओशो रजनीश द्वारा उस ध्यान तंत्र पर दिये हुए भाषण का सार तथा उसका मैने किया हुआ मराठी भावानुवाद रहेगा |
मेरा आपसे अनुरोध है की यह ध्यान तंत्र केवल जानकारी हेतू पढने के बजाय इसकी अनुभूती करने का प्रयास करे | अपने स्वभाव विशेष के अनुसार इसमेसे एक ही तंत्र आपको अंतिम अनुभूती देनेमें सक्षम है | इसकी खोज आपको करनी है |
हरी ओम त् सत् !           
---
Every month I will be sharing one technique of meditation. There will be original Sanskrut text, and English / Marathi / Hindi commentary on the technique. I expect reader should not take it as just a piece of information but practice the technique that suits him/her for at least one month to further the spiritual quest.

| These 112 meditation techniques are the ultimate source for self realization | 


विज्ञान भैरव तंत्र    
VidnyanBhairav Tantra

श्री देव्युवाच
श्रुतं देव मया सर्वं रुद्रयामलसम्भवम् |
त्रिकभेदमशेषेणसारात्सारविभागशः ||

अद्यपि न निवृत्तोमे संशय: परमेश्वर |
किं रुपं तत्वतो देव शब्दराशिकलामयम् ||

किं वा नवात्मभेदेन भैरवे भैरवाकृतौ |
त्रिशिरोभेदभिन्नं वा किं वा शक्तित्रयात्मकम् ||

नादबिन्दुमयंवापिकिंचंद्रार्धनिरोधिका: |
चक्रारुढमनच्कं वा किं वा शक्तिस्वरुपकम् ||


परापराया: सकलम्अपरायाश्च वा पुनः |
परायायदितद्वत्स्यात्परत्वंतद्विरुध्यते ||

नहि वर्ण विभेदेनदेहभेदेन वा भवेत् |
परत्वंनिष्कलत्वेनसकलत्वे न तदभवेत् ||

प्रसादंकुरुमे नाथ नि:शेषंछिन्धिसंशयम् |


भैरव उवाच
साधु साधुत्वयापृष्टंतन्त्रसारमिदंप्रिये |

गूहनीयतमं भद्रे तथापिकथयामि ते |
यत्किञ्चित्सकलं रुपं भैरवस्यप्रकीर्तितम् ||

 ---------

देवीने प्रश्न किया...

हे शिवा! आपका सत्य स्वरूप क्याहै?
यह आश्चर्य से भरा जगत्क्या है?
बीज का मूलतत्व क्या है?
संसाररुपी चक्र के केंद्रस्थान पर क्या है?
सगुण विश्व के परे क्या है?
निर्गुण अमृतत्वको पाना क्या संभव है?
कृपया मेरे प्रश्नों का समाधान किजीये...

शिव ने उत्तर स्वरूप ११२ ध्यानतंत्र का प्रस्फुटनकिया | अखिल विश्व के सभी पंथ-संप्रदाय इसीके एक अथवा अधिक तंत्र पद्धती केउपयोग से उत्पन्न हुए है | भूत, वर्तमान और भविष्य के संत,प्रेषित इसी तंत्र पद्धती के फलस्वरूप है |

 ---------

देवीने विचारले...

हे शिवा! तुझे खरे स्वरुप काय आहे?
हे अचंबित करणारे जगत काय आहे?
बीजाचे मूलतत्व काय आहे?
संसाररुपी चक्राच्या केंद्रस्थानी काय आहे?
नामरुपांच्या पलिकडे काय आहे?
नामरुपातीत अमृतत्वाची प्राप्ती शक्य आहे का?
कृपया माझे शंकानिरसन करा...

शिवाने उत्तरादाखल ११२ ध्यानतंत्रे सांगितली. ज्ञात-अज्ञात विश्वातील सर्व पंथसंप्रदाय,ज्ञानमार्ग यातील एक अथवा अधिक तंत्र पद्धतीद्वारा उत्पन्न झाले. भूतवर्तमान तसेच भविष्य काळातील तत्त्ववेत्तेप्रेषित यातील एक अथवा अधिक तंत्रपद्धतीचे फलस्वरुप आहेत.  

 ---------

 Devi Asks:

O Shiva, what is your reality?
What is this wonder-filled universe?
What constitutes seed?
Who centres the universal wheel?
What is this life beyond form pervading forms?
How may we enter it full, above space and time, names and descriptions?
Let my doubts be cleared!

Now Shiva replies and describes 112 meditation techniques.  All the religions of the world, all the seers of the world, have reached the peak through some technique or other, and all those techniques will be in these one hundred and twelve techniques.

---------

 तंत्र ४०


वायुद्वयस्य संघट्टदान्तर्वा बहिरनन्तः |
योगी समत्वविज्ञानसमुद्गमनभाजनम् ||
From the fusion of both vayus (prana and apana) inside or outside the body the yogi attains equilibrium and becomes fit for the proper manifestation of consciousness.

आंतरस्थान हृदय और बाह्य स्थान द्वादशांत में प्राण और अपान रूप दो वायूओंके संघट्ट से, अर्थात इनकी हृदय और द्वादशांत में अन्तः प्रवेश और बहिः निर्गमन काल की समाप्ती हो जाने पर, अन्ततः उस शून्यकल्प अवस्था का ध्यान करने पर, जिसमे की प्राण और अपान के संघट्ट की अलग से प्रतीति नही हो पाती. योगी प्रबुद्ध हो जाता ही, उसमे समत्व दृष्टी का विकास हो जाता है | योगी में सर्वत्र समत्व बोध का उदय होने से  सर्वत्र समान दृष्टी रखने से वह प्राण और अपान की भेद स्थिती की जिस रहस्यमय स्थान में समाप्ति हो जाती है, उस साम्यावस्था को वह जान लेता है, साथ ही जागतिक सभी पदार्थोन्को भी वह इसी तरह से उस रहस्यात्मक परमतत्व में विलीन कर लेता है, अर्थात अपने से अभिन्न रूप से देखने लगता है और इस समता दृष्टी के विकसित से वह परम सिद्धि को प्राप्त कर लेता है |  

Awakening through gradual refinement of sound of any letter
(Dharana on fusion of vayus)

We go on doing things mechanically, similar to sleepwalkers. Unless and until the sleep is broken, man will remain in misery. It can be broken by many ways. Intoning of sound is beneficial because mind is predominant in every action we perform and mind is nothing but sound. Be alert during hearing sound. Start from very beginning or before beginning of sound and follow it until it dissolves. Use same letters always so that you can easily transform it into sound behind it. This intoning of sound first created outside and then inside will make you more and more alert. With alertness you can not follow anything mechanically. 

शब्दामागील नाद निर्मिती आणी विलयाच्या अनुभूतीतून आत्मानुभूती...

मन स्थिर करुन बाह्य जगात निर्माण होणार्‍या शब्दांमागील नादाकडे तटस्थतेने पहा. नादाच्या विलयापर्यंत नादाबरोबर राहु शकल्यास विचारशून्यता. विचाराच्या वहनामुळे मन अस्थिर. अस्थिरमनाद्वारे केलेली कोणतीही कृती स्वतःच्याअनभिज्ञतेतून. नादाच्या अनुभूतीतूनविचारनिर्मितीच्या प्रक्रियेचे संयमन शक्य. बाह्य अथवा अंतर्नादाच्या विलयाच्या अनुभूतीतून जीवन्मुक्ततेचा अनुभव. जगातील सर्व व्यवहार निद्रावस्थेत. द्वंद्वातीत अवस्था प्राप्त होण्यासाठी जीवन्मुक्ततेचा अनुभव आवश्यक.

 ---------

No comments: