Friday, October 31, 2025

Meditation techniques (ध्यान तंत्र: (VBT 108) विज्ञान भैरव तंत्र १०८)

हर मास में, आपके सामने में एक ध्यानतंत्र रखुंगा | इसमें मूल संस्कृत श्लोक के साथ स्वामी सत्यसंगानंदा सरस्वती द्वारा किया हुआ अंग्रेजीमें वस्तुतः अनुवाद रहेगा | तथा हिंदीमें व्रजवल्लभ द्विवेदी द्वारा लिखा हुआ हिंदी भावानुवाद रहेगा | अन्तमें ओशो रजनीश द्वारा उस ध्यान तंत्र पर दिये हुए भाषण का सार तथा उसका मैने किया हुआ मराठी भावानुवाद रहेगा |

मेरा आपसे अनुरोध है की यह ध्यान तंत्र केवल जानकारी हेतू पढने के बजाय इसकी अनुभूती करने का प्रयास करे | अपने स्वभाव विशेष के अनुसार इसमेसे एक ही तंत्र आपको अंतिम अनुभूती देनेमें सक्षम है | इसकी खोज आपको करनी है |

हरी ओम त् सत् !             

---

Every month I will be sharing one technique of meditation. There will be original Sanskrut text, and English / Marathi / Hindi commentary on the technique. I expect reader should not take it as just a piece of information but practice the technique that suits him/her for at least one month to further the spiritual quest.

| These 112 meditation techniques are the ultimate source for self-realization | 

 

विज्ञान भैरव तंत्र    

VidnyanBhairav Tantra

 

श्री देव्युवाच

श्रुतं देव मया सर्वं रुद्रयामलसम्भवम् |

त्रिकभेदमशेषेणसारात्सारविभागशः ||

 

अद्यपि न निवृत्तोमे संशय: परमेश्वर |

किं रुपं तत्वतो देव शब्दराशिकलामयम् ||

 

किं वा नवात्मभेदेन भैरवे भैरवाकृतौ |

त्रिशिरोभेदभिन्नं वा किं वा शक्तित्रयात्मकम् ||

 

नादबिन्दुमयंवापिकिंचंद्रार्धनिरोधिका: |

चक्रारुढमनच्कं वा किं वा शक्तिस्वरुपकम् ||

 

परापराया: सकलम्अपरायाश्च वा पुनः |

परायायदितद्वत्स्यात्परत्वंतद्विरुध्यते ||

 

नहि वर्ण विभेदेनदेहभेदेन वा भवेत् |

परत्वंनिष्कलत्वेनसकलत्वे न तदभवेत् ||

 

प्रसादंकुरुमे नाथ नि:शेषंछिन्धिसंशयम् |

 

भैरव उवाच

साधु साधुत्वयापृष्टंतन्त्रसारमिदंप्रिये |

 

गूहनीयतमं भद्रे तथापिकथयामि ते |

यत्किञ्चित्सकलं रुपं भैरवस्यप्रकीर्तितम् ||

 

 ---------

देवीने प्रश्न किया...

 

हे शिवा! आपका सत्य स्वरूप क्या है?

यह आश्चर्य से भरा जगत्क्या है?

बीज का मूलतत्वक्या है?

संसाररुपी चक्र के केंद्रस्थान पर क्या है?

सगुण विश्व के परे क्या है?

निर्गुण अमृतत्वको पाना क्या संभव है?

कृपया मेरे प्रश्नों का समाधान किजीये...

 

शिव ने उत्तर स्वरूप ११२ ध्यानतंत्र का प्रस्फुटन किया | अखिल विश्व के सभी पंथ-संप्रदाय इसीके एक अथवा अधिक तंत्र पद्धती केउपयोग से उत्पन्न हुए है | भूत, वर्तमान और भविष्य के संत, प्रेषित इसी तंत्र पद्धती के फलस्वरूप है |

 

 ---------

 

देवीने विचारले...

 

हे शिवा! तुझे खरे स्वरुप काय आहे?

हे अचंबित करणारे जगत काय आहे?

बीजाचे मूलतत्व काय आहे?

संसाररुपी चक्राच्या केंद्रस्थानी काय आहे?

नामरुपांच्यापलिकडे काय आहे?

नामरुपातीतअमृतत्वाची प्राप्ती शक्य आहे का?

कृपया माझे शंकानिरसन करा...

 

शिवाने उत्तरादाखल ११२ ध्यानतंत्रे सांगितली. ज्ञात-अज्ञात विश्वातील सर्व पंथसंप्रदाय,ज्ञानमार्ग यातील एक अथवा अधिक तंत्र पद्धतीद्वारा उत्पन्न झाले. भूतवर्तमान तसेच भविष्य काळातील तत्त्ववेत्तेप्रेषित यातील एक अथवा अधिक तंत्रपद्धतीचे फलस्वरुप आहेत.  

 

 ---------

 

 Devi Asks:

 

O Shiva, what is your reality?

What is this wonder-filled universe?

What constitutes seed?

Who centres the universal wheel?

What is this life beyond form pervading forms?

How may we enter it full, above space and time, names and descriptions?

Let my doubts be cleared!

 

Now Shiva replies and describes 112 meditation techniques.  All the religions of the world, all the seers of the world, have reached the peak through some technique or other, and all those techniques will be in these one hundred and twelve techniques.

---------


तंत्र १०८

नित्यो विभुर्निराधारो व्यापाक्श्चाखिलाधिपः |

शब्दान प्रतिक्षणं ध्यायन कृतार्थोsर्थानुरुपतः ||

Meditating on every moment on the words: eternal, omnipresent, supportless, all-pervasive, master of the universe, one attains fulfilment in accordance with their meaning.  


स्वतंत्र-स्वभाव प्रभु परमेश्वर नित्य, निराधार, व्यापक और सारे जगत का स्वामी है, इस तरह से नित्य आदि शब्दो के अर्थ का बार-बार अनुसंधान करते हुए जो साधक अपने चित्त को एकाग्र कर लेता है, वह कृतकृत्य हो जाता है | अर्थात सर्वज्ञता आदि गुणो से विशिष्ट शिव ही सर्वत्र व्याप्त है, उससे भिन्न किसी भी वस्तु की कोई सत्ता नही है, वही सब कुछ करता है, इस तरह से ईश्वर के ऐश्वर्यबोधक नामो के अर्थ का चिंतन करनेवाला योगी धीरे-धीरे यह जान जाता है की यह सारा ऐश्वर्य मेरा ही है | मुझसे भिन्न किसी की कोई सत्ता नही है, सर्वज्ञता, सर्वकर्तृता आदि गुण भी मेरे ही है |  यह स्वाभाविक बात है की इस स्थिती पर पहुच जाने पर वह सभी प्रकार के विकल्पो से मुक्त हो अपने स्वरूप में प्रतिष्टीत हो जाता है |

 

Inner voice is the real guide

(Dharana on devine attributes)

 

Whole civilization is driven by reasoning. There is gap between thinking and enacting. Intellect needs time, how so ever small. Inner guide works in present without any time gap. All great discoveries are intuitive and not intellectual. When head withdraws, inner guide shows the path. Always follow the inner voice even though it is leading you in danger. Guru is the one who is aware of his own inner guide. Once inner guru is found through outer guru, nothing else is required. Faith is the trust in inner guide.

 

अंतरात्मा हाच एकमेव वाटाडया...

 

बुद्धीच्या प्राबल्यामुळे आतला आवाज, आतला प्रकाश याचे विस्मरण. आतील आवाज मणिपूर चक्रापासून वर य्रेतो तर बुद्धी डोक्यापासुन खाली जाते. विचार फक्त ज्ञात गोष्टींचाच शक्य. विचारशून्यतेत अंतरात्मा सक्रीय. मूलभूत शास्त्रीय शोध विचारशून्यतेतच. अंतरात्म्याची ओळख करुन देणे इतकेच गुरुचे कार्य. प्रत्यक्ष अनुभूती केवळ अंतर्गुरुद्वारा शक्य.   

 

 ---------

No comments: