हर मास में, आपके सामने में एक ध्यानतंत्र रखुंगा | इसमें मूल संस्कृत श्लोक के साथ स्वामी सत्यसंगानंदा सरस्वती द्वारा किया हुआ अंग्रेजीमें वस्तुतः अनुवाद रहेगा | तथा हिंदीमें व्रजवल्लभ द्विवेदी द्वारा लिखा हुआ हिंदी भावानुवाद रहेगा | अन्तमें ओशो रजनीश द्वारा उस ध्यान तंत्र पर दिये हुए भाषण का सार तथा उसका मैने किया हुआ मराठी भावानुवाद रहेगा |
मेरा आपसे अनुरोध है की यह ध्यान तंत्र केवल जानकारी हेतू पढने के बजाय इसकी अनुभूती करने का प्रयास करे
| अपने स्वभाव विशेष के अनुसार इसमेसे एक ही तंत्र आपको अंतिम अनुभूती देनेमें सक्षम है | इसकी खोज आपको करनी है |
हरी ओम तत् सत् !
---
Every month I will be sharing
one technique of meditation. There will be original Sanskrut text, and English
/ Marathi / Hindi commentary on the technique. I expect reader should not take
it as just a piece of information but practice the technique that suits him/her
for at least one month to further the spiritual quest.
| These 112 meditation techniques are the ultimate
source for self-realization |
विज्ञान भैरव तंत्र
VidnyanBhairav Tantra
श्री देव्युवाच
श्रुतं देव मया
सर्वं रुद्रयामलसम्भवम् |
त्रिकभेदमशेषेणसारात्सारविभागशः ||
अद्यपि न
निवृत्तोमे संशय: परमेश्वर |
किं रुपं तत्वतो
देव शब्दराशिकलामयम् ||
किं वा
नवात्मभेदेन भैरवे भैरवाकृतौ |
त्रिशिरोभेदभिन्नं
वा किं वा शक्तित्रयात्मकम् ||
नादबिन्दुमयंवापिकिंचंद्रार्धनिरोधिका: |
चक्रारुढमनच्कं
वा किं वा शक्तिस्वरुपकम् ||
परापराया: सकलम्अपरायाश्च
वा पुनः |
परायायदितद्वत्स्यात्परत्वंतद्विरुध्यते ||
नहि वर्ण
विभेदेनदेहभेदेन वा भवेत् |
परत्वं, निष्कलत्वेन, सकलत्वे न
तदभवेत् ||
प्रसादंकुरुमे
नाथ नि:शेषंछिन्धिसंशयम् |
भैरव उवाच
साधु साधुत्वयापृष्टंतन्त्रसारमिदंप्रिये |
गूहनीयतमं भद्रे
तथापिकथयामि ते |
यत्किञ्चित्सकलं
रुपं भैरवस्यप्रकीर्तितम् ||
---------
देवीने प्रश्न किया...
हे शिवा! आपका सत्य स्वरूप क्या है?
यह आश्चर्य से भरा जगत्क्या है?
बीज का मूलतत्वक्या है?
संसाररुपी चक्र के केंद्रस्थान पर क्या है?
सगुण विश्व के परे क्या है?
निर्गुण अमृतत्वको पाना क्या संभव है?
कृपया मेरे प्रश्नों का समाधान किजीये...
शिव ने उत्तर स्वरूप ११२ ध्यानतंत्र का प्रस्फुटन किया | अखिल विश्व के
सभी पंथ-संप्रदाय इसीके एक अथवा अधिक तंत्र पद्धती केउपयोग से
उत्पन्न हुए है | भूत, वर्तमान और भविष्य के संत, प्रेषित इसी तंत्र पद्धती
के फलस्वरूप है |
---------
देवीने विचारले...
हे शिवा! तुझे खरे स्वरुप काय आहे?
हे अचंबित करणारे जगत काय आहे?
बीजाचे मूलतत्व काय आहे?
संसाररुपी चक्राच्या केंद्रस्थानी काय आहे?
नामरुपांच्यापलिकडे काय आहे?
नामरुपातीतअमृतत्वाची प्राप्ती शक्य आहे का?
कृपया माझे शंकानिरसन करा...
शिवाने उत्तरादाखल ११२ ध्यानतंत्रे सांगितली. ज्ञात-अज्ञात विश्वातील
सर्व पंथसंप्रदाय,ज्ञानमार्ग यातील एक अथवा अधिक तंत्र पद्धतीद्वारा उत्पन्न
झाले. भूत, वर्तमान तसेच
भविष्य काळातील तत्त्ववेत्ते, प्रेषित यातील एक अथवा अधिक तंत्रपद्धतीचे फलस्वरुप आहेत.
---------
Devi Asks:
O Shiva, what is your reality?
What is this wonder-filled universe?
What constitutes seed?
Who centres the universal wheel?
What is this life beyond form pervading forms?
How may we enter it full, above space and time, names and descriptions?
Let my doubts be cleared!
Now Shiva replies and describes 112 meditation
techniques. All the religions of the world, all the seers of the world,
have reached the peak through some technique or other, and all those techniques
will be in these one hundred and twelve techniques.
---------
तंत्र ९४
क्षुताद्यन्ते
भये शोके गह्वरे वा रणादद्रुते |
कुतूहले
क्षुधाद्यन्ते ब्रह्मसत्तामयी दशा ||
At
the end of beginning and end of sneezing, in terror, sorrow or confusion, when
fleeing from a battlefield, during keen curiosity, or at the onset or
appeasement of hunger, that state is external existence of Brahma.
छीक आने के बाद अथवा भयं शोक, आदि भावों के उत्पन्न होने पर, खाई में गिर पडने
पर, युद्धस्थल से भाग जाने पर, किसी आश्चर्यजनक घटना के घट जाने पर या भूख-प्यास
आदि तीव्र संवेगों की निवृत्ती हो जाने पर एक क्षण के लिये ब्रह्मानंद सरीखे आनंद
होता है | व्यक्ती का अनवच्छिन्न चिदानंद, जो कि जीव दशा के कारण अवच्छिन्न हो गया था, कुछ
क्षण के लिये अपने परमार्थ स्वरूप में प्रकट हो जाता है | इन अवसरों का लाभ उठाकर
अर्थात कुछ क्षण के लिये अभिव्यक्त अपने सहज स्वरूप में धारणा का अभ्यास कर उसको
स्थायी बना लेने वाला सुप्रबुद्ध साधक समावेश दशा में लीन हो जाता है | इसके
विपरीत अप्रबुद्ध साधक उस ब्रह्मसत्ता के पास पहुच कर भी उसको जान नही पाता |
Thoughts,
emotions, world, enlightenment…..nothing but mind
(Dharana
on the state of Brahma)
Imagination
is neglected but very potent tool. We use it unknowingly hence the unawareness.
Sadness, depression, happiness are nothing but just our imagination. We create
world around us with mere imagination. Once we understand there is no outer
cause for our situation then there is possibility to come out of it. With this
ignorance we move lives after lives. Use imagination knowingly. Saturate
yourself with thought of divine. Nothing can exist in isolation in the universe
including you. Existence is like web. Moksha or heavens are not geographical
concepts but existential reality which reveals only ego that resides in mind gets
dissolved back to its origin.
कल्पनेद्वारा
आत्मानुभूती...
कल्पनाक्षमता ही
मानवाला मिळालेली देणगी. आनंद, दु:ख, आशा, निराशा हे सारे
कल्पनेचे खेळ. कल्पनेद्वाराच आपले स्वतःचे विश्व निर्माण. आत्मतत्व हे
कोळ्याच्या जाळ्यासारखे. चराचरातील व्याप्त आत्मतत्वाच्या अनुभूतीत अहंकारशून्यता.
---------
No comments:
Post a Comment