Friday, May 31, 2024

Meditation techniques (ध्यान तंत्र: (VBT 91) विज्ञान भैरव तंत्र ९१)

हर मास में, आपके सामने में एक ध्यानतंत्र रखुंगा | इसमें मूल संस्कृत श्लोक के साथ स्वामी सत्यसंगानंदा सरस्वती द्वारा किया हुआ अंग्रेजीमें वस्तुतः अनुवाद रहेगा | तथा हिंदीमें व्रजवल्लभ द्विवेदी द्वारा लिखा हुआ हिंदी भावानुवाद रहेगा | अन्तमें ओशो रजनीश द्वारा उस ध्यान तंत्र पर दिये हुए भाषण का सार तथा उसका मैने किया हुआ मराठी भावानुवाद रहेगा |

मेरा आपसे अनुरोध है की यह ध्यान तंत्र केवल जानकारी हेतू पढने के बजाय इसकी अनुभूती करने का प्रयास करे | अपने स्वभाव विशेष के अनुसार इसमेसे एक ही तंत्र आपको अंतिम अनुभूती देनेमें सक्षम है | इसकी खोज आपको करनी है |

हरी ओम त् सत् !             

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Every month I will be sharing one technique of meditation. There will be original Sanskrut text, and English / Marathi / Hindi commentary on the technique. I expect reader should not take it as just a piece of information but practice the technique that suits him/her for at least one month to further the spiritual quest.

| These 112 meditation techniques are the ultimate source for self-realization |  

 

विज्ञान भैरव तंत्र    

VidnyanBhairav Tantra

 

श्री देव्युवाच

श्रुतं देव मया सर्वं रुद्रयामलसम्भवम् |

त्रिकभेदमशेषेणसारात्सारविभागशः ||

 

अद्यपि न निवृत्तोमे संशय: परमेश्वर |

किं रुपं तत्वतो देव शब्दराशिकलामयम् ||

 

किं वा नवात्मभेदेन भैरवे भैरवाकृतौ |

त्रिशिरोभेदभिन्नं वा किं वा शक्तित्रयात्मकम् ||

 

नादबिन्दुमयंवापिकिंचंद्रार्धनिरोधिका: |

चक्रारुढमनच्कं वा किं वा शक्तिस्वरुपकम् ||

 

परापराया: सकलम्अपरायाश्च वा पुनः |

परायायदितद्वत्स्यात्परत्वंतद्विरुध्यते ||

 

नहि वर्ण विभेदेनदेहभेदेन वा भवेत् |

परत्वंनिष्कलत्वेनसकलत्वे न तदभवेत् ||

 

प्रसादंकुरुमे नाथ नि:शेषंछिन्धिसंशयम् |

 

भैरव उवाच

साधु साधुत्वयापृष्टंतन्त्रसारमिदंप्रिये |

 

गूहनीयतमं भद्रे तथापिकथयामि ते |

यत्किञ्चित्सकलं रुपं भैरवस्यप्रकीर्तितम् ||

 

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देवीने प्रश्न किया...

 

हे शिवा! आपका सत्य स्वरूप क्या है?

यह आश्चर्य से भरा जगत्क्या है?

बीज का मूलतत्वक्या है?

संसाररुपी चक्र के केंद्रस्थान पर क्या है?

सगुण विश्व के परे क्या है?

निर्गुण अमृतत्वको पाना क्या संभव है?

कृपया मेरे प्रश्नों का समाधान किजीये...

 

शिव ने उत्तर स्वरूप ११२ ध्यानतंत्र का प्रस्फुटन किया | अखिल विश्व के सभी पंथ-संप्रदाय इसीके एक अथवा अधिक तंत्र पद्धती केउपयोग से उत्पन्न हुए है | भूत, वर्तमान और भविष्य के संत, प्रेषित इसी तंत्र पद्धती के फलस्वरूप है |

 

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देवीने विचारले...

 

हे शिवा! तुझे खरे स्वरुप काय आहे?

हे अचंबित करणारे जगत काय आहे?

बीजाचे मूलतत्व काय आहे?

संसाररुपी चक्राच्या केंद्रस्थानी काय आहे?

नामरुपांच्यापलिकडे काय आहे?

नामरुपातीतअमृतत्वाची प्राप्ती शक्य आहे का?

कृपया माझे शंकानिरसन करा...

 

शिवाने उत्तरादाखल ११२ ध्यानतंत्रे सांगितली. ज्ञात-अज्ञात विश्वातील सर्व पंथसंप्रदाय,ज्ञानमार्ग यातील एक अथवा अधिक तंत्र पद्धतीद्वारा उत्पन्न झाले. भूतवर्तमान तसेच भविष्य काळातील तत्त्ववेत्तेप्रेषित यातील एक अथवा अधिक तंत्रपद्धतीचे फलस्वरुप आहेत.  

 

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 Devi Asks:

 

O Shiva, what is your reality?

What is this wonder-filled universe?

What constitutes seed?

Who centres the universal wheel?

What is this life beyond form pervading forms?

How may we enter it full, above space and time, names and descriptions?

Let my doubts be cleared!

 

Now Shiva replies and describes 112 meditation techniques.  All the religions of the world, all the seers of the world, have reached the peak through some technique or other, and all those techniques will be in these one hundred and twelve techniques.

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तंत्र ९१

 

कृपादिके महागते स्थित्वोपरि निरीक्षणात |

अविकल्पमतेः सम्यक सद्यश्चीतलयः स्फुटम ||

Standing above a deep hole or well and looking steadily downward into the abyss, the mind becomes entirey free of vikalpas and dissolution immediately manifests.

 

बहुत गहरे कूप, खड्डा आदि के पास खडा होकर नीचे देखने पर अथवा पर्वत के उंचे शिखर के पास खडा होकर उपर ताकने पर एक अज्ञात भय की कल्पना से एक क्षण के लिये शरीर रोमांचित हो उठता है, चित्त निर्विकल्प दशा में प्रविष्ट हो जाता है | साधक जब इस क्षणिक निर्विकल्प दशा में अपने चित्त को तल्लीन कर लेता है, तो तत्क्षण उसका चित्त शान्त हो जाता है, इसमे कुछ भी संदेह नही है | किसी भी भयजनक स्थिती में कुछ क्षण के लिये वेद्य अथवा अवेद्य कोटि में प्रविष्ट नील-पीत आदि पदार्थो की कोई सत्ता नही रह जाती | इस स्थिती में भैरव का परम घोरतर स्वरूप ही मात्र भसित होता है | इस भैरव स्वरूप में चित्त को स्थिर लेने पर साधक का चित्त तत्काल शान्त हो जाता है और तब उसके चित्त में परभैरव स्वरूप शिव का शान्त स्वरूप अभिव्यक्त हो उठता है |

 

Non doing you are undefeated

(Dharana on a deep well)

 

Physical body is dead, material which feeds on vital energy through astral or etheric body around. Becoming mere awareness of blue light around the body, you will enter into the etheric presence. Silence will grow and the excess energy is available to everyone around you.

 

शरीरातील विद्युतशक्तीच्या अनुभूतीद्वारा आत्मानुभूती...

 

आनंदाच्या क्षणी शरीराची जाणीव नाही तेव्हा शरीराभोवती असणार्‍या विद्युतशक्तीची जाणीव. केवळ तटस्थ जाणीवेद्वारा विद्युतशक्ती संचय. संचित शक्तीद्वारा चराचराशी एकत्वाची अनुभूती.

 

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