Wednesday, November 30, 2022

Meditation techniques (ध्यान तंत्र: (VBT 73) विज्ञान भैरव तंत्र ७३)

हर मास में, आपके सामने में एक ध्यानतंत्र रखुंगा | इसमें मूल संस्कृत श्लोक के साथ स्वामी सत्यसंगानंदा सरस्वती द्वारा किया हुआ अंग्रेजीमें वस्तुतः अनुवाद रहेगा | तथा हिंदीमें व्रजवल्लभ द्विवेदी द्वारा लिखा हुआ हिंदी भावानुवाद रहेगा | अन्तमें ओशो रजनीश द्वारा उस ध्यान तंत्र पर दिये हुए भाषण का सार तथा उसका मैने किया हुआ मराठी भावानुवाद रहेगा |

मेरा आपसे अनुरोध है की यह ध्यान तंत्र केवल जानकारी हेतू पढने के बजाय इसकी अनुभूती करने का प्रयास करे | अपने स्वभाव विशेष के अनुसार इसमेसे एक ही तंत्र आपको अंतिम अनुभूती देनेमें सक्षम है | इसकी खोज आपको करनी है |

हरी ओम त् सत् !           

---

Every month I will be sharing one technique of meditation. There will be original Sanskrut text, and English / Marathi / Hindi commentary on the technique. I expect reader should not take it as just a piece of information but practice the technique that suits him/her for at least one month to further the spiritual quest.

 

| These 112 meditation techniques are the ultimate source for self-realization | 

  

विज्ञान भैरव तंत्र    

VidnyanBhairav Tantra

 

श्री देव्युवाच

श्रुतं देव मया सर्वं रुद्रयामलसम्भवम् |

त्रिकभेदमशेषेणसारात्सारविभागशः ||

 

अद्यपि न निवृत्तोमे संशय: परमेश्वर |

किं रुपं तत्वतो देव शब्दराशिकलामयम् ||

 

किं वा नवात्मभेदेन भैरवे भैरवाकृतौ |

त्रिशिरोभेदभिन्नं वा किं वा शक्तित्रयात्मकम् ||

 

नादबिन्दुमयंवापिकिंचंद्रार्धनिरोधिका: |

चक्रारुढमनच्कं वा किं वा शक्तिस्वरुपकम् ||

 

परापराया: सकलम्अपरायाश्च वा पुनः |

परायायदितद्वत्स्यात्परत्वंतद्विरुध्यते ||

 

नहि वर्ण विभेदेनदेहभेदेन वा भवेत् |

परत्वंनिष्कलत्वेनसकलत्वे न तदभवेत् ||

 

प्रसादंकुरुमे नाथ नि:शेषंछिन्धिसंशयम् |

 

भैरव उवाच

साधु साधुत्वयापृष्टंतन्त्रसारमिदंप्रिये |

 

गूहनीयतमं भद्रे तथापिकथयामि ते |

यत्किञ्चित्सकलं रुपं भैरवस्यप्रकीर्तितम् ||

 

 ---------


देवीने प्रश्न किया...

 

हे शिवा! आपका सत्य स्वरूप क्या है?

यह आश्चर्य से भरा जगत्क्या है?

बीज का मूलतत्वक्या है?

संसाररुपी चक्र के केंद्रस्थान पर क्या है?

सगुण विश्व के परे क्या है?

निर्गुण अमृतत्वको पाना क्या संभव है?

कृपया मेरे प्रश्नों का समाधान किजीये...

 

शिव ने उत्तर स्वरूप ११२ ध्यानतंत्र का प्रस्फुटन किया | अखिल विश्व के सभी पंथ-संप्रदाय इसीके एक अथवा अधिक तंत्र पद्धती केउपयोग से उत्पन्न हुए है | भूत, वर्तमान और भविष्य के संत, प्रेषित इसी तंत्र पद्धती के फलस्वरूप है |

 

 ---------

 

देवीने विचारले...

 

हे शिवा! तुझे खरे स्वरुप काय आहे?

हे अचंबित करणारे जगत काय आहे?

बीजाचे मूलतत्व काय आहे?

संसाररुपी चक्राच्या केंद्रस्थानी काय आहे?

नामरुपांच्यापलिकडे काय आहे?

नामरुपातीतअमृतत्वाची प्राप्ती शक्य आहे का?

कृपया माझे शंकानिरसन करा...

 

शिवाने उत्तरादाखल ११२ ध्यानतंत्रे सांगितली. ज्ञात-अज्ञात विश्वातील सर्व पंथसंप्रदाय,ज्ञानमार्ग यातील एक अथवा अधिक तंत्र पद्धतीद्वारा उत्पन्न झाले. भूतवर्तमान तसेच भविष्य काळातील तत्त्ववेत्तेप्रेषित यातील एक अथवा अधिक तंत्रपद्धतीचे फलस्वरुप आहेत.  

 

 ---------

 

 Devi Asks:

 

O Shiva, what is your reality?

What is this wonder-filled universe?

What constitutes seed?

Who centres the universal wheel?

What is this life beyond form pervading forms?

How may we enter it full, above space and time, names and descriptions?

Let my doubts be cleared!

 

Now Shiva replies and describes 112 meditation techniques.  All the religions of the world, all the seers of the world, have reached the peak through some technique or other, and all those techniques will be in these one hundred and twelve techniques.

 

---------

तंत्र ७३  


यदा ममेच्छा नोत्पना ज्ञानं वा, कस्तदास्मि वै |

तत्त्वतोsहं तथाभूतस्तल्लीनस्तन्मना भवेत ||

When my desires do not produce knowledge, then what am I? Indeed being absorbed in the essence I am, and identifying with that, one becomes that.

 

जब मेरे अंदर इच्छा, ज्ञान और क्रिया में से किसी की भी उत्पत्ती नही होगी, तो उस स्थिती में मेरा स्वरूप क्या होगा ? अर्थात इनके अभाव में अहंता, ममता, इदंता की कोई भी स्थिती नही बन सकती, किन्तु उस अवस्था में तो चित और आनंद स्वरूप की ही स्थिती रहती है | इसलिये साधक को सदा इसी स्थिती की भावना करनी चाहिये कि वास्तव में मै चित और आनंद स्वरूप ही हु | इस धारणा के अभ्यास से योगी उस चिदानंद स्वरूप में ही लीन हो जाता है और अन्ततः स्वयं उसका चिदानंदमय स्वरूप अभिव्यक्त हो जाता है |

 

Unload yourself to enter the clarity

(Dharana on Who am I?)

 

Knowledge is never certain. We create systems of thoughts though mind. More you know, more you become uncertain. Underdeveloped mind is certain, developed mind is uncertain but only no-mind is clear. Through mind there is no possibility of clarity. Only barrier between inner and outer sky is thought. Thoughts arise in mind when we react to outer things. There are gaps between two thoughts. Meditate on outer or inner sky by bypassing the thoughts. Once inner and outer sky meets, you will be in present moment. Do not force anything to happen; just make you available it to happen.

 

अधिक माहिती, अधिक अस्पष्टता. मनाशिवाय स्पष्टता...

 

मन सदैव अस्थिर, अस्पष्ट, मनाद्वारे स्पष्टता अशक्य. मन म्हणजे विचारांचा अखंड प्रवाह. अनेक विरुद्ध विचारांच्या साठयाने अधिक अस्पष्टता. केवळ मनाशिवाय स्पष्टता. आत्मतत्व हे आकाश तर मन हे त्यातील ढग. निरभ्र आकाशात केवळ स्पष्टता शक्य. विचार हे आतील आणी बाहेरील आकाशातील अडसर. विचारशून्यतेत अंतर्बाह्य आकाशात एकत्व. भूत, भविष्य केवळ विचारांच्या माध्यमातून, वर्तमान अनंत.

 

---------

 


 

No comments: