Thursday, October 31, 2019

Meditation techniques (ध्यान तंत्र: (VBT39) विज्ञान भैरव तंत्र ३९)


हर मास में, आपके सामने में एक ध्यानतंत्र रखुंगा | इसमें मूल संस्कृत श्लोक के साथ स्वामी सत्यसंगानंदा सरस्वती द्वारा किया हुआ अंग्रेजीमें वस्तुतः अनुवाद रहेगा | तथा हिंदीमें व्रजवल्लभ द्विवेदी द्वारा लिखा हुआ हिंदी भावानुवाद रहेगा | अन्तमें ओशो रजनीश द्वारा उस ध्यान तंत्र पर दिये हुए भाषण का सार तथा उसका मैने किया हुआ मराठी भावानुवाद रहेगा |
मेरा आपसे अनुरोध है की यह ध्यान तंत्र केवल जानकारी हेतू पढने के बजाय इसकीअनुभूती करने का प्रयास करे | अपने स्वभाव विशेष के अनुसार इसमेसे एक ही तंत्र आपको अंतिम अनुभूती देनेमें सक्षम है | इसकी खोज आपको करनी है |
हरी ओम त् सत् !
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Every month I will be sharing one technique of meditation. There will be original Sanskrut text, and English / Marathi / Hindi commentary on the technique. I expect reader should not take it as just a piece of information but practice the technique that suits him/her for at least one month to further the spiritual quest.

| These 112 meditation techniques are the ultimate source for self realization | 


विज्ञान भैरव तंत्र    
VidnyanBhairav Tantra

श्री देव्युवाच
श्रुतं देव मया सर्वं रुद्रयामलसम्भवम् |
त्रिकभेदमशेषेणसारात्सारविभागशः ||

अद्यपि न निवृत्तोमे संशय: परमेश्वर |
किं रुपं तत्वतो देव शब्दराशिकलामयम् ||

किं वा नवात्मभेदेन भैरवे भैरवाकृतौ |
त्रिशिरोभेदभिन्नं वा किं वा शक्तित्रयात्मकम् ||

नादबिन्दुमयंवापिकिंचंद्रार्धनिरोधिका: |
चक्रारुढमनच्कं वा किं वा शक्तिस्वरुपकम् ||


परापराया: सकलम्अपरायाश्च वा पुनः |
परायायदितद्वत्स्यात्परत्वंतद्विरुध्यते ||

नहि वर्ण विभेदेनदेहभेदेन वा भवेत् |
परत्वंनिष्कलत्वेनसकलत्वे न तदभवेत् ||

प्रसादंकुरुमे नाथ नि:शेषंछिन्धिसंशयम् |


भैरव उवाच
साधु साधुत्वयापृष्टंतन्त्रसारमिदंप्रिये |

गूहनीयतमं भद्रे तथापिकथयामि ते |
यत्किञ्चित्सकलं रुपं भैरवस्यप्रकीर्तितम् ||

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देवीने प्रश्न किया...

हे शिवा! आपका सत्य स्वरूप क्याहै?
यह आश्चर्य से भरा जगत्क्या है?
बीज का मूलतत्व क्या है?
संसाररुपी चक्र के केंद्रस्थान पर क्या है?
सगुण विश्व के परे क्या है?
निर्गुण अमृतत्वको पाना क्या संभव है?
कृपया मेरे प्रश्नों का समाधान किजीये...

शिव ने उत्तर स्वरूप ११२ ध्यानतंत्र का प्रस्फुटनकिया | अखिल विश्व के सभी पंथ-संप्रदाय इसीके एक अथवा अधिक तंत्र पद्धती केउपयोग से उत्पन्न हुए है | भूत, वर्तमान और भविष्य के संत,प्रेषित इसी तंत्र पद्धती के फलस्वरूप है |

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देवीने विचारले...

हे शिवा! तुझे खरे स्वरुप काय आहे?
हे अचंबित करणारे जगत काय आहे?
बीजाचे मूलतत्व काय आहे?
संसाररुपी चक्राच्या केंद्रस्थानी काय आहे?
नामरुपांच्या पलिकडे काय आहे?
नामरुपातीत अमृतत्वाची प्राप्ती शक्य आहे का?
कृपया माझे शंकानिरसन करा...

शिवाने उत्तरादाखल ११२ ध्यानतंत्रे सांगितली. ज्ञात-अज्ञात विश्वातील सर्व पंथसंप्रदाय,ज्ञानमार्ग यातील एक अथवा अधिक तंत्र पद्धतीद्वारा उत्पन्न झाले. भूतवर्तमान तसेच भविष्य काळातील तत्त्ववेत्तेप्रेषित यातील एक अथवा अधिक तंत्रपद्धतीचे फलस्वरुप आहेत.  

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 Devi Asks:

O Shiva, what is your reality?
What is this wonder-filled universe?
What constitutes seed?
Who centres the universal wheel?
What is this life beyond form pervading forms?
How may we enter it full, above space and time, names and descriptions?
Let my doubts be cleared!

Now Shiva replies and describes 112 meditation techniques.  All the religions of the world, all the seers of the world, have reached the peak through some technique or other, and all those techniques will be in these one hundred and twelve techniques.

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तंत्र ३९
सर्वं देहं चिन्मयं हि जगद्वा परिभावयेत् |
युगपन्निर्विकल्पेन मनसा परमोदयः ||
One should concentrate with an unwavering mind on all existence, the body and even the universe simultaneously as nothing but consciousness, then the supreme consciousness arises.

पैर से लगाकर चोटी तक अपने पुरे देह की, इसके प्रत्येक अंश की, अथवा इस सारे जगत् की एक साथ अक्रम रूप से चिन्मय स्वरूप में भावना करे | इस तरह की भावना से मन में निर्विकल्प हो जाने से भीतर और बाहर चित् के चमत्कार की अभिव्यक्ती हो जाने पर सब तरफ केवल प्रकाश ही प्रकाश बच रहता है, अर्थात् ‘प्रकाशमान वस्तु, शरीर, या जगत्, प्रकाश स्वभाव परमतत्व से भिन्न नही है’ इस न्याय के अनुसार मन की निर्विकल्पक दशा में सभी वस्तुओ के प्रकाश रूप में परिणत हो जाने पर योगी की परमोदय अवस्था अभिव्यक्त हो जाती है | मन की गती उत्कर्ष की ओर बढ जाती है |

Intoning AUM to enter sound
(Dharana on all existence as consciousness)

Absolute is always one but it can not be described by language, senses. Whatever we perceive is relative. Any talk about truth is also about relative truth and not absolute truth. Relative world is divided into three, known-knower-knowledge. Law of three is basic to world of duality. Trinity (God-Son-Saitan), Trimurti (Brahma-Vishnu-Mahesh), Matter (Proton-Electron-Neutron), Poet (Truth,Satyam-Good,Shivam-Beautiful,Sundaram), Mystic (Sat,Existance-Chit,Consciousness-Anand,Bliss) Sound (A-U-M) This is the manifestation of law of three. Amen has the same basic note as AUM. Omnipresent, Omnipotent, Omniscient is derivation of AUM. AUM is complete science of sound. If mind is sound then no mind is soundlessness or soundfulness. Absolute can be described either in positive or negative terms as words loose meaning once you reach sound behind that word. But relative which is confined to words has to be described in both the terms. Intone AUM slowly, first loud and then inside. Any subtle word can be used as mantra once it enters heart. AUM has very basic notes of sound and hence it is nearest to the absolute. Intoning is like intoning. Body is like musical instrument. You can feel the sound vibrations all over the body-mind. Alertness is required to be attentive of subtlest sound. With this attentiveness you enter the soundfulness.

मनरहित अवस्थेत ध्वनीरहित अवस्थेची अनुभूती...

सत्याची केवळ अनुभूती शक्य, व्यक्त होते ते केवळ सापेक्ष सत्य. सापेक्ष विश्वात सत्याची विभागणी तीन भागात, ज्ञेय-ज्ञाता-ज्ञान. ही विभागणी सार्वकालिक. ब्रह्मा-विष्णु-महेश, देव-प्रेषित(पुत्र)-सैतान, सत्यम्-शिवम्-सुंदरम्, सत्-चित्-आनंद, प्रोटॉन-न्युट्रॉन-इलेक्ट्रॉन. ध्वनीशास्त्रात अ--म हे तीन मूलभुत नाद. ओम किंवा आमेन या शब्दात हेच तीन नाद अंतर्भूत. या नादाच्या उच्चारणातून मनरहित अवस्थेचा प्रत्यय, त्यातून आत्मानुभूती.

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