Monday, December 1, 2025

Meditation techniques (ध्यान तंत्र: (VBT 109) विज्ञान भैरव तंत्र १०९)

हर मास में, आपके सामने में एक ध्यानतंत्र रखुंगा | इसमें मूल संस्कृत श्लोक के साथ स्वामी सत्यसंगानंदा सरस्वती द्वारा किया हुआ अंग्रेजीमें वस्तुतः अनुवाद रहेगा | तथा हिंदीमें व्रजवल्लभ द्विवेदी द्वारा लिखा हुआ हिंदी भावानुवाद रहेगा | अन्तमें ओशो रजनीश द्वारा उस ध्यान तंत्र पर दिये हुए भाषण का सार तथा उसका मैने किया हुआ मराठी भावानुवाद रहेगा |

मेरा आपसे अनुरोध है की यह ध्यान तंत्र केवल जानकारी हेतू पढने के बजाय इसकी अनुभूती करने का प्रयास करे | अपने स्वभाव विशेष के अनुसार इसमेसे एक ही तंत्र आपको अंतिम अनुभूती देनेमें सक्षम है | इसकी खोज आपको करनी है |

हरी ओम त् सत् !

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Every month I will be sharing one technique of meditation. There will be original Sanskrut text, and English / Marathi / Hindi commentary on the technique. I expect reader should not take it as just a piece of information but practice the technique that suits him/her for at least one month to further the spiritual quest.

| These 112 meditation techniques are the ultimate source for self-realization | 

 

विज्ञान भैरव तंत्र    

VidnyanBhairav Tantra

 

श्री देव्युवाच

श्रुतं देव मया सर्वं रुद्रयामलसम्भवम् |

त्रिकभेदमशेषेणसारात्सारविभागशः ||

 

अद्यपि न निवृत्तोमे संशय: परमेश्वर |

किं रुपं तत्वतो देव शब्दराशिकलामयम् ||

 

किं वा नवात्मभेदेन भैरवे भैरवाकृतौ |

त्रिशिरोभेदभिन्नं वा किं वा शक्तित्रयात्मकम् ||

 

नादबिन्दुमयंवापिकिंचंद्रार्धनिरोधिका: |

चक्रारुढमनच्कं वा किं वा शक्तिस्वरुपकम् ||

 

परापराया: सकलम्अपरायाश्च वा पुनः |

परायायदितद्वत्स्यात्परत्वंतद्विरुध्यते ||

 

नहि वर्ण विभेदेनदेहभेदेन वा भवेत् |

परत्वंनिष्कलत्वेनसकलत्वे न तदभवेत् ||

 

प्रसादंकुरुमे नाथ नि:शेषंछिन्धिसंशयम् |


भैरव उवाच

साधु साधुत्वयापृष्टंतन्त्रसारमिदंप्रिये |

 

गूहनीयतमं भद्रे तथापिकथयामि ते |

यत्किञ्चित्सकलं रुपं भैरवस्यप्रकीर्तितम् ||

 

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देवीने प्रश्न किया...

 

हे शिवा! आपका सत्य स्वरूप क्या है?

यह आश्चर्य से भरा जगत्क्या है?

बीज का मूलतत्वक्या है?

संसाररुपी चक्र के केंद्रस्थान पर क्या है?

सगुण विश्व के परे क्या है?

निर्गुण अमृतत्वको पाना क्या संभव है?

कृपया मेरे प्रश्नों का समाधान किजीये...

 

शिव ने उत्तर स्वरूप ११२ ध्यानतंत्र का प्रस्फुटन किया | अखिल विश्व के सभी पंथ-संप्रदाय इसीके एक अथवा अधिक तंत्र पद्धती केउपयोग से उत्पन्न हुए है | भूत, वर्तमान और भविष्य के संत, प्रेषित इसी तंत्र पद्धती के फलस्वरूप है |

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देवीने विचारले...

 

हे शिवा! तुझे खरे स्वरुप काय आहे?

हे अचंबित करणारे जगत काय आहे?

बीजाचे मूलतत्व काय आहे?

संसाररुपी चक्राच्या केंद्रस्थानी काय आहे?

नामरुपांच्यापलिकडे काय आहे?

नामरुपातीतअमृतत्वाची प्राप्ती शक्य आहे का?

कृपया माझे शंकानिरसन करा...

 

शिवाने उत्तरादाखल ११२ ध्यानतंत्रे सांगितली. ज्ञात-अज्ञात विश्वातील सर्व पंथसंप्रदाय,ज्ञानमार्ग यातील एक अथवा अधिक तंत्र पद्धतीद्वारा उत्पन्न झाले. भूतवर्तमान तसेच भविष्य काळातील तत्त्ववेत्तेप्रेषित यातील एक अथवा अधिक तंत्रपद्धतीचे फलस्वरुप आहेत.  

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 Devi Asks:

 

O Shiva, what is your reality?

What is this wonder-filled universe?

What constitutes seed?

Who centres the universal wheel?

What is this life beyond form pervading forms?

How may we enter it full, above space and time, names and descriptions?

Let my doubts be cleared!

 

Now Shiva replies and describes 112 meditation techniques.  All the religions of the world, all the seers of the world, have reached the peak through some technique or other, and all those techniques will be in these one hundred and twelve techniques.

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तंत्र १०९

 

अतत्वामिन्द्रजालाभमिदम सर्वमेवस्थितम |

किं तत्वमिन्द्रजालस्य इति दार्ढ्यच्छमं व्रजेत ||

This world illusory like magic, devoid of any essence. What essence exists in magic? Being firmly convinced of this, one attains peace.

 

यह सारा जगत निस्तत्व है, अर्थात सारहीन है | इसीलिये इसकी स्थिती इंद्रजाल के समान है, जादुगार की बनाई चीजो के भाति है | जैसी उन चिजो की कोई वास्तविकता नही है उसी तरह से यह प्रतीयमान जगत भी वास्तविक नही है | इस परमार्थ दृष्टीसे जो साधक भावना को दृढ करता है, वह शान्त समाधि में लीन हो जाता है | अर्थात परमार्थ सत नाम से जान जानेवाला प्रमातृतत्व इस इंद्रजाल तुल्य संसार से सर्वथा पृथक है, अपनी भावना के आधार पर इस वस्तुस्थिती को समझनेवाला तत्ववेत्ता निर्वाण पदवी को प्राप्त कर लेता है |

 

Don’t meditate, Be in meditation

(Dharana on illusory nature of the world)

 

Duality is not inherent in nature. Thinking makes the doer separate from activity. Be in activity and forget the doer. Presence of ego causes disturbance. Any total act is blissful. War, gambling, sex, speed are appealing just due to its totality. In the most passive posture, body is not leaking any energy and there is least gravitational pull from earth. Due to standing on two feet man could evolve as there is less gravitation. In passive state of body and mind, YOU disappeared and Divine happens to you.  

 

अहंकाराच्या विस्मरणात आत्मानुभूती...

 

द्वंद्वाची निर्मिती अहंकारातून. कर्ता आणी कर्म हे द्वंद्व. कर्त्याला विसरुन केलेले कर्म आत्मिक आनंद देते. विचारांच्या प्रभावात कर्त्याचे अस्तित्व. विचारशून्यतेत द्वंद्वातीतता. शरीरावर पृथ्वीचे गुरुत्वीय बल जितके कमी तितका प्राणी अधिक उन्नत.

 

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