Sunday, June 30, 2024

Meditation techniques (ध्यान तंत्र: (VBT 92) विज्ञान भैरव तंत्र ९२)

हर मास में, आपके सामने में एक ध्यानतंत्र रखुंगा | इसमें मूल संस्कृत श्लोक के साथ स्वामी सत्यसंगानंदा सरस्वती द्वारा किया हुआ अंग्रेजीमें वस्तुतः अनुवाद रहेगा | तथा हिंदीमें व्रजवल्लभ द्विवेदी द्वारा लिखा हुआ हिंदी भावानुवाद रहेगा | अन्तमें ओशो रजनीश द्वारा उस ध्यान तंत्र पर दिये हुए भाषण का सार तथा उसका मैने किया हुआ मराठी भावानुवाद रहेगा |

मेरा आपसे अनुरोध है की यह ध्यान तंत्र केवल जानकारी हेतू पढने के बजाय इसकी अनुभूती करने का प्रयास करे | अपने स्वभाव विशेष के अनुसार इसमेसे एक ही तंत्र आपको अंतिम अनुभूती देनेमें सक्षम है | इसकी खोज आपको करनी है |

हरी ओम त् सत् !             

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Every month I will be sharing one technique of meditation. There will be original Sanskrut text, and English / Marathi / Hindi commentary on the technique. I expect reader should not take it as just a piece of information but practice the technique that suits him/her for at least one month to further the spiritual quest.

 

| These 112 meditation techniques are the ultimate source for self-realization | 

 

विज्ञान भैरव तंत्र    

VidnyanBhairav Tantra

 

श्री देव्युवाच

श्रुतं देव मया सर्वं रुद्रयामलसम्भवम् |

त्रिकभेदमशेषेणसारात्सारविभागशः ||

 

अद्यपि न निवृत्तोमे संशय: परमेश्वर |

किं रुपं तत्वतो देव शब्दराशिकलामयम् ||

 

किं वा नवात्मभेदेन भैरवे भैरवाकृतौ |

त्रिशिरोभेदभिन्नं वा किं वा शक्तित्रयात्मकम् ||

 

नादबिन्दुमयंवापिकिंचंद्रार्धनिरोधिका: |

चक्रारुढमनच्कं वा किं वा शक्तिस्वरुपकम् ||

 

परापराया: सकलम्अपरायाश्च वा पुनः |

परायायदितद्वत्स्यात्परत्वंतद्विरुध्यते ||

 

नहि वर्ण विभेदेनदेहभेदेन वा भवेत् |

परत्वंनिष्कलत्वेनसकलत्वे न तदभवेत् ||

 

प्रसादंकुरुमे नाथ नि:शेषंछिन्धिसंशयम् |

 

भैरव उवाच

साधु साधुत्वयापृष्टंतन्त्रसारमिदंप्रिये |

 

गूहनीयतमं भद्रे तथापिकथयामि ते |

यत्किञ्चित्सकलं रुपं भैरवस्यप्रकीर्तितम् ||

 

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देवीने प्रश्न किया...

 

हे शिवा! आपका सत्य स्वरूप क्या है?

यह आश्चर्य से भरा जगत्क्या है?

बीज का मूलतत्वक्या है?

संसाररुपी चक्र के केंद्रस्थान पर क्या है?

सगुण विश्व के परे क्या है?

निर्गुण अमृतत्वको पाना क्या संभव है?

कृपया मेरे प्रश्नों का समाधान किजीये...

 

शिव ने उत्तर स्वरूप ११२ ध्यानतंत्र का प्रस्फुटन किया | अखिल विश्व के सभी पंथ-संप्रदाय इसीके एक अथवा अधिक तंत्र पद्धती केउपयोग से उत्पन्न हुए है | भूत, वर्तमान और भविष्य के संत, प्रेषित इसी तंत्र पद्धती के फलस्वरूप है |

 

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देवीने विचारले...

 

हे शिवा! तुझे खरे स्वरुप काय आहे?

हे अचंबित करणारे जगत काय आहे?

बीजाचे मूलतत्व काय आहे?

संसाररुपी चक्राच्या केंद्रस्थानी काय आहे?

नामरुपांच्यापलिकडे काय आहे?

नामरुपातीतअमृतत्वाची प्राप्ती शक्य आहे का?

कृपया माझे शंकानिरसन करा...

 

शिवाने उत्तरादाखल ११२ ध्यानतंत्रे सांगितली. ज्ञात-अज्ञात विश्वातील सर्व पंथसंप्रदाय,ज्ञानमार्ग यातील एक अथवा अधिक तंत्र पद्धतीद्वारा उत्पन्न झाले. भूतवर्तमान तसेच भविष्य काळातील तत्त्ववेत्तेप्रेषित यातील एक अथवा अधिक तंत्रपद्धतीचे फलस्वरुप आहेत.  

 

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 Devi Asks:

 

O Shiva, what is your reality?

What is this wonder-filled universe?

What constitutes seed?

Who centres the universal wheel?

What is this life beyond form pervading forms?

How may we enter it full, above space and time, names and descriptions?

Let my doubts be cleared!

 

Now Shiva replies and describes 112 meditation techniques.  All the religions of the world, all the seers of the world, have reached the peak through some technique or other, and all those techniques will be in these one hundred and twelve techniques.

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तंत्र ९२

 यत्र यत्र मनो यातिबाह्ये वाभ्यान्तरेsपि वा |

तत्र तत्र शिवावस्था व्यापकत्वात्क्व यास्यति ||

Whenever the mind moves, whether outwards or inwards, there the all -pervasive state of shiva will go.

 

जहा-जहा नील-पीत आदि पदार्थो में अथवा सुख-दु:ख आदि आभ्यंतर विषयो में मन का, अर्थात उसके संकल्प-विकल्पात्मक संवेदनो का प्रसार होता है, वहा-वहा संचित स्वरूप शिव ही चित्प्रकाश अवस्था में विद्यमान है | ऐसी स्थिती में यह मन उसको छोड जायेगा कहा ? इसका अभिप्राय यह है कि इस जगत में ऐसी कोई स्थिती नही है, जहा कि शिव न प्रकाशित हो रहे हो| अतः जहा भी मन जायेगा वहा शिव का प्रकाशात्मक स्वरूप अवश्य रहेगा | इसके विपरीत यह प्रकाशात्मक स्वात्मस्वरूप भैरव दिशा, काल, आकार, आदि को तो प्रकाशित करता है, क्योकी उसी भैरव के प्रकाश से ये प्रकाशित है, किन्तु ऐसा होते हुए भी वे उस भैरव को परिछिन्न नही कर सकते | इसी लिये यह प्रकाशात्मक भैरव मन से भी परिछिन्न नही हो सकता | इसके साक्षात्कार के लिये तो इस भावना के अभ्यास को ही तीव्र करना पडता है कि मेरा मन जहा-जहा जाता है, वहा-वहा सर्वत्र प्रकाशात्मक शिव विद्यमान है | इस धारणा का अभ्यास करने पर यह स्वात्मस्वरूप स्वयं प्रकाशित हो जाता है |

 

Egolessness is central to religion, not god

(Dharana on omnipresent reality)

 

Concepts are clear, not reality. Life is a flux, ever changing, cannot be defined. With definition you remain separate. Thoughts come from mind which defines things. With definition everything is dead. Thoughts are clouds, black or white, they move in the sky but without touching it. Give emphasis on sky, chitta than clouds, mind. Mind without thoughts is the subtlest possible matter. Do not fight with you ego instead feel things and melt into them to loose your ego. When heart is the center of your personality instead of head, there is no ego and you become one with the existence. 

 

विचारशून्यतेत चित्तशुद्धी...

 

विचारांचे केंद्र मेन्दु. भावनांचे केंद्र ह्रदय. विचारांच्या अस्तित्वात द्वैत कायम. अनुभूतीमध्ये अद्वैत. सिद्धांत स्पष्ट, सत्य नाही. विचार स्थिर सत्य नाही. पांढरा अथवा काळा ढग जसा आकाश झाकोळून टाकतो त्याप्रमाणे विचारामुळे सत्य झाकले जाते. विचार व्यक्त करता येतो, सत्य नाही. त्याची फक्त अनुभूती घेता येते. विचारशून्यजागृतावस्था म्हणजे सत्य.

 

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