Saturday, November 30, 2024

Meditation techniques (ध्यान तंत्र: (VBT 97) विज्ञान भैरव तंत्र ९७)

हर मास में, आपके सामने में एक ध्यानतंत्र रखुंगा | इसमें मूल संस्कृत श्लोक के साथ स्वामी सत्यसंगानंदा सरस्वती द्वारा किया हुआ अंग्रेजीमें वस्तुतः अनुवाद रहेगा | तथा हिंदीमें व्रजवल्लभ द्विवेदी द्वारा लिखा हुआ हिंदी भावानुवाद रहेगा | अन्तमें ओशो रजनीश द्वारा उस ध्यान तंत्र पर दिये हुए भाषण का सार तथा उसका मैने किया हुआ मराठी भावानुवाद रहेगा |

मेरा आपसे अनुरोध है की यह ध्यान तंत्र केवल जानकारी हेतू पढने के बजाय इसकी अनुभूती करने का प्रयास करे | अपने स्वभाव विशेष के अनुसार इसमेसे एक ही तंत्र आपको अंतिम अनुभूती देनेमें सक्षम है | इसकी खोज आपको करनी है |

हरी ओम त् सत् !             

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Every month I will be sharing one technique of meditation. There will be original Sanskrut text, and English / Marathi / Hindi commentary on the technique. I expect reader should not take it as just a piece of information but practice the technique that suits him/her for at least one month to further the spiritual quest.

| These 112 meditation techniques are the ultimate source for self-realization | 

 

विज्ञान भैरव तंत्र    

VidnyanBhairav Tantra

 

श्री देव्युवाच

श्रुतं देव मया सर्वं रुद्रयामलसम्भवम् |

त्रिकभेदमशेषेणसारात्सारविभागशः ||

 

अद्यपि न निवृत्तोमे संशय: परमेश्वर |

किं रुपं तत्वतो देव शब्दराशिकलामयम् ||

 

किं वा नवात्मभेदेन भैरवे भैरवाकृतौ |

त्रिशिरोभेदभिन्नं वा किं वा शक्तित्रयात्मकम् ||

 

नादबिन्दुमयंवापिकिंचंद्रार्धनिरोधिका: |

चक्रारुढमनच्कं वा किं वा शक्तिस्वरुपकम् ||

 

परापराया: सकलम्अपरायाश्च वा पुनः |

परायायदितद्वत्स्यात्परत्वंतद्विरुध्यते ||

 

नहि वर्ण विभेदेनदेहभेदेन वा भवेत् |

परत्वंनिष्कलत्वेनसकलत्वे न तदभवेत् ||

 

प्रसादंकुरुमे नाथ नि:शेषंछिन्धिसंशयम् |

 

 

भैरव उवाच

साधु साधुत्वयापृष्टंतन्त्रसारमिदंप्रिये |

 

गूहनीयतमं भद्रे तथापिकथयामि ते |

यत्किञ्चित्सकलं रुपं भैरवस्यप्रकीर्तितम् ||

 

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देवीने प्रश्न किया...

 

हे शिवा! आपका सत्य स्वरूप क्या है?

यह आश्चर्य से भरा जगत्क्या है?

बीज का मूलतत्वक्या है?

संसाररुपी चक्र के केंद्रस्थान पर क्या है?

सगुण विश्व के परे क्या है?

निर्गुण अमृतत्वको पाना क्या संभव है?

कृपया मेरे प्रश्नों का समाधान किजीये...

 

शिव ने उत्तर स्वरूप ११२ ध्यानतंत्र का प्रस्फुटन किया | अखिल विश्व के सभी पंथ-संप्रदाय इसीके एक अथवा अधिक तंत्र पद्धती केउपयोग से उत्पन्न हुए है | भूत, वर्तमान और भविष्य के संत, प्रेषित इसी तंत्र पद्धती के फलस्वरूप है |

 

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देवीने विचारले...

 

हे शिवा! तुझे खरे स्वरुप काय आहे?

हे अचंबित करणारे जगत काय आहे?

बीजाचे मूलतत्व काय आहे?

संसाररुपी चक्राच्या केंद्रस्थानी काय आहे?

नामरुपांच्यापलिकडे काय आहे?

नामरुपातीतअमृतत्वाची प्राप्ती शक्य आहे का?

कृपया माझे शंकानिरसन करा...

 

शिवाने उत्तरादाखल ११२ ध्यानतंत्रे सांगितली. ज्ञात-अज्ञात विश्वातील सर्व पंथसंप्रदाय,ज्ञानमार्ग यातील एक अथवा अधिक तंत्र पद्धतीद्वारा उत्पन्न झाले. भूतवर्तमान तसेच भविष्य काळातील तत्त्ववेत्तेप्रेषित यातील एक अथवा अधिक तंत्रपद्धतीचे फलस्वरुप आहेत.  

 

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 Devi Asks:

 

O Shiva, what is your reality?

What is this wonder-filled universe?

What constitutes seed?

Who centres the universal wheel?

What is this life beyond form pervading forms?

How may we enter it full, above space and time, names and descriptions?

Let my doubts be cleared!

 

Now Shiva replies and describes 112 meditation techniques.  All the religions of the world, all the seers of the world, have reached the peak through some technique or other, and all those techniques will be in these one hundred and twelve techniques.

 

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तंत्र९७ 

 

भक्त्युद्रेकाद्विरक्तस्य यादृशी जायते मतिः |

सा शक्तिः शांकरी नित्यं भावये येत्ताम ततः शिवः ||

The intuition which emerges from the intense devotion of one who is perfectly detached is known as the shakti of shankara. By contemplating regularly on it, shiva is revealed there.

 

भक्ती के उद्रेक से अर्थात अधिक्य से विरक्त भक्त के चित्त में साधक के चित्त के समाहित हो जाने से जिस तरह की बुद्धी उत्पन्न होती है, वाह शांकरी शक्ती कह जाती है } अर्थात ईश्वर के अनुग्रह से भक्त के हृदय में ऐसी भावना पैदा होती है की वह सब कुछ भूलकर शान्त भाव से निरंतर ईश्वर के चिंतन में लगा रहता है | उसका चित्त ईश्वर की आराधना में लीन हो जाता है |

 

Bliss is beyond silence

(Dharana on intuition)

 

To feel things you must have experience of it. Start with anything you can feel and then move to reality behind it. How so ever little, love or compassion is of your experience. Away from human activity, silence deepens as there are less and less reactions from you. With nature everything is harmonious. Your body is also part of nature. Your bliss body, the inner most core is nothing but the extension of the entire existence around you. 

 

 शरीर अनंत विश्वाचा एक घटक...

 

शरीरातील आत्मतत्वावर विविध कोषांचे आवरण. आनंदमय कोष आत्मतत्वाच्या अत्यंत निकट. त्याच्या अनुभूतीसाठी प्रथम सर्वत्र व्याप्त शांततेची अनुभूतीघ्या. जितकी अंतर्बाह्य शांतता अधिक तितकी सभोवतालच्या सजीव आणी निर्जीव वस्तूंमधील आत्मतत्वाची अनुभूती अधिक. समाजापासून दूर प्रतिक्रिया कमी, तितकी शांतता अधिक.

 

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Thursday, October 31, 2024

Meditation techniques (ध्यान तंत्र: (VBT 96) विज्ञान भैरव तंत्र ९६)

हर मास में, आपके सामने में एक ध्यानतंत्र रखुंगा | इसमें मूल संस्कृत श्लोक के साथ स्वामी सत्यसंगानंदा सरस्वती द्वारा किया हुआ अंग्रेजीमें वस्तुतः अनुवाद रहेगा | तथा हिंदीमें व्रजवल्लभ द्विवेदी द्वारा लिखा हुआ हिंदी भावानुवाद रहेगा | अन्तमें ओशो रजनीश द्वारा उस ध्यान तंत्र पर दिये हुए भाषण का सार तथा उसका मैने किया हुआ मराठी भावानुवाद रहेगा |

मेरा आपसे अनुरोध है की यह ध्यान तंत्र केवल जानकारी हेतू पढने के बजाय इसकी अनुभूती करने का प्रयास करे | अपने स्वभाव विशेष के अनुसार इसमेसे एक ही तंत्र आपको अंतिम अनुभूती देनेमें सक्षम है | इसकी खोज आपको करनी है |

हरी ओम त् सत् !             

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Every month I will be sharing one technique of meditation. There will be original Sanskrut text, and English / Marathi / Hindi commentary on the technique. I expect reader should not take it as just a piece of information but practice the technique that suits him/her for at least one month to further the spiritual quest.

| These 112 meditation techniques are the ultimate source for self-realization |  

 

विज्ञान भैरव तंत्र    

VidnyanBhairav Tantra

 

श्री देव्युवाच

श्रुतं देव मया सर्वं रुद्रयामलसम्भवम् |

त्रिकभेदमशेषेणसारात्सारविभागशः ||

 

अद्यपि न निवृत्तोमे संशय: परमेश्वर |

किं रुपं तत्वतो देव शब्दराशिकलामयम् ||

 

किं वा नवात्मभेदेन भैरवे भैरवाकृतौ |

त्रिशिरोभेदभिन्नं वा किं वा शक्तित्रयात्मकम् ||

 

नादबिन्दुमयंवापिकिंचंद्रार्धनिरोधिका: |

चक्रारुढमनच्कं वा किं वा शक्तिस्वरुपकम् ||


परापराया: सकलम्अपरायाश्च वा पुनः |

परायायदितद्वत्स्यात्परत्वंतद्विरुध्यते ||

 

नहि वर्ण विभेदेनदेहभेदेन वा भवेत् |

परत्वंनिष्कलत्वेनसकलत्वे न तदभवेत् ||

 

प्रसादंकुरुमे नाथ नि:शेषंछिन्धिसंशयम् |

  

भैरव उवाच

साधु साधुत्वयापृष्टंतन्त्रसारमिदंप्रिये |

 

गूहनीयतमं भद्रे तथापिकथयामि ते |

यत्किञ्चित्सकलं रुपं भैरवस्यप्रकीर्तितम् ||

 

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देवीने प्रश्न किया...

 

हे शिवा! आपका सत्य स्वरूप क्या है?

यह आश्चर्य से भरा जगत्क्या है?

बीज का मूलतत्वक्या है?

संसाररुपी चक्र के केंद्रस्थान पर क्या है?

सगुण विश्व के परे क्या है?

निर्गुण अमृतत्वको पाना क्या संभव है?

कृपया मेरे प्रश्नों का समाधान किजीये...

 

शिव ने उत्तर स्वरूप ११२ ध्यानतंत्र का प्रस्फुटन किया | अखिल विश्व के सभी पंथ-संप्रदाय इसीके एक अथवा अधिक तंत्र पद्धती केउपयोग से उत्पन्न हुए है | भूत, वर्तमान और भविष्य के संत, प्रेषित इसी तंत्र पद्धती के फलस्वरूप है |

 

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देवीने विचारले...

 

हे शिवा! तुझे खरे स्वरुप काय आहे?

हे अचंबित करणारे जगत काय आहे?

बीजाचे मूलतत्व काय आहे?

संसाररुपी चक्राच्या केंद्रस्थानी काय आहे?

नामरुपांच्यापलिकडे काय आहे?

नामरुपातीतअमृतत्वाची प्राप्ती शक्य आहे का?

कृपया माझे शंकानिरसन करा...

 

शिवाने उत्तरादाखल ११२ ध्यानतंत्रे सांगितली. ज्ञात-अज्ञात विश्वातील सर्व पंथसंप्रदाय,ज्ञानमार्ग यातील एक अथवा अधिक तंत्र पद्धतीद्वारा उत्पन्न झाले. भूतवर्तमान तसेच भविष्य काळातील तत्त्ववेत्तेप्रेषित यातील एक अथवा अधिक तंत्रपद्धतीचे फलस्वरुप आहेत.  

 

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 Devi Asks:

 

O Shiva, what is your reality?

What is this wonder-filled universe?

What constitutes seed?

Who centres the universal wheel?

What is this life beyond form pervading forms?

How may we enter it full, above space and time, names and descriptions?

Let my doubts be cleared!

 

Now Shiva replies and describes 112 meditation techniques.  All the religions of the world, all the seers of the world, have reached the peak through some technique or other, and all those techniques will be in these one hundred and twelve techniques.

 

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तंत्र ९६

 

क्वचिद्वस्तुनि विन्यस्य शनैर्दृष्टीं निवर्तयेत |

तज्ज्ञानं चित्तसहितं देवि शून्यालयो भवेत ||

O goddess, momentarily casting the gaze on some object and slowly withdrawing it with the knowledge and impression of that object, one becomes the abode of the void.

 

हे देवि, जिस किसी भी घट-पट आदि पदार्थ में अपनी दृष्टि डालकर, अर्थात घट-पट आदि किसी भी पदार्थ को सावधानी से देखकर, धीरे-धीरे उस पदार्थ के ज्ञान को उसके संकल्प के साथ और उस अनुभव से संचित वासनाओ के साथ चित्त से निकाल दे | अनुभव, संकल्प और वासनाओ को अपने चित्त से निकाल देने के लिये साधक शून्यभावना का सहारा ले कि यह सारा विश्व शून्य स्वभाव है, आकाश के समान रूपहीन है, इसका कोई स्वरूप नही है, अस्त्वित्व नही है | अथवा शांभवी मुद्रा की सहायता से, जिसमे कि दृष्टि के बाहर रहने पर भी लक्ष्य भीतर ही रहता है, इस कार्य को संपन्न करे | अर्थात वह अपने शुद्ध स्वरूप को ही देखे और उससे भिन्न सभी विकल्प वासनाओ का परित्याग कर दे | ऐसा करने से, इस धारणा के अभ्यास से संयमी साधक शून्य में लीन हो जाता है, परम पद में विश्राम प्राप्त कर लेता है |

 

To be alone is your true nature

(Dharana on unmani)

 

Mind is a creation of society. Before birth and after death you are alone but unaware. Knowingly become alone to reveal the existential truth behind the events. Events are like beads and reality is like thread holding all beads together. Hankering for nirvana is due to deep imprinting of womb experience. Hence everywhere the golden age was perceived in past which nothing but the womb experience. Move in solitude to be with nature. Ego exists in relation. Being alone you will be egoless. Move from society to nature and from nature to existence behind it. Do not think in terms of utility. Utility force you to be with society. Be useless if you want to remain alone. But do not make it way of life. It is just a training to remain detached from events happening around you and witness your true nature.

 

एकटेपणा ही स्वाभाविक अवस्था. समाज ही मनाची गरज...

 

जन्मापूर्वी मातेच्या उदरात आणी मृत्युनंतर विश्वाच्या अनंत पोकळीत प्रत्येकजण एकटा. समाजाशिवाय, भाषेशिवाय, प्रतिक्रियेशिवाय, केवळ शांतता. मुक्ततेची, निर्वाणाची इच्छा ही याच आंतरिक ओढीने. हेच सत्य. या दोहोंच्यामध्ये असलेले जीवन ही माया. आपली भुमिका केवळ पात्रांची. लीलेपलिकडील सत्य जाणण्यासाठी लीलेची व्यर्थकता जाणून घेणे आवश्यक. एकटेपणात अहंकारशून्यता. अहंकाराचा उगम संबंधातून. ध्यानमग्नतेत टप्याटप्याने विचारशून्यता आणी त्यानंतर आत्मानुभूती.

 

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