Who am I.....What am I.....How am I.....Why am I............. कस्त्वं... कोSहम... कुत: आयातः... का मे जननी... को मे तात:......
Tuesday, August 31, 2021
Meditation techniques (ध्यान तंत्र: (VBT59) विज्ञान भैरव तंत्र ५९)
हर मास में, आपके सामने में एक ध्यानतंत्र रखुंगा | इसमें मूल संस्कृत श्लोक के साथ स्वामी सत्यसंगानंदा सरस्वती द्वारा किया हुआ अंग्रेजीमें वस्तुतः अनुवाद रहेगा | तथा हिंदीमें व्रजवल्लभ द्विवेदी द्वारा लिखा हुआ हिंदी भावानुवाद रहेगा | अन्तमें ओशो रजनीश द्वारा उस ध्यान तंत्र पर दिये हुए भाषण का सार तथा उसका मैने किया हुआ मराठी भावानुवाद रहेगा |
मेरा आपसे अनुरोध है की यह ध्यान तंत्र केवल जानकारी हेतू पढने के बजाय इसकी अनुभूती करने का प्रयास करे | अपने स्वभाव विशेष के अनुसार इसमेसे एक ही तंत्र आपको अंतिम अनुभूती देनेमें सक्षम है | इसकी खोज आपको करनी है |
हरी ओम तत् सत् !
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Every month I will be sharing one technique of meditation. There will be original Sanskrut text, and English / Marathi / Hindi commentary on the technique. I expect reader should not take it as just a piece of information but practice the technique that suits him/her for at least one month to further the spiritual quest.
| These 112 meditation techniques are the ultimate source for self realization |
विज्ञान भैरव तंत्र
VidnyanBhairav Tantra
श्री देव्युवाच
श्रुतं देव मया सर्वं रुद्रयामलसम्भवम् |
त्रिकभेदमशेषेणसारात्सारविभागशः ||
अद्यपि न निवृत्तोमे संशय: परमेश्वर |
किं रुपं तत्वतो देव शब्दराशिकलामयम् ||
किं वा नवात्मभेदेन भैरवे भैरवाकृतौ |
त्रिशिरोभेदभिन्नं वा किं वा शक्तित्रयात्मकम् ||
नादबिन्दुमयंवापिकिंचंद्रार्धनिरोधिका: |
चक्रारुढमनच्कं वा किं वा शक्तिस्वरुपकम् ||
परापराया: सकलम्अपरायाश्च वा पुनः |
परायायदितद्वत्स्यात्परत्वंतद्विरुध्यते ||
नहि वर्ण विभेदेनदेहभेदेन वा भवेत् |
परत्वं, निष्कलत्वेन, सकलत्वे न तदभवेत् ||
प्रसादंकुरुमे नाथ नि:शेषंछिन्धिसंशयम् |
भैरव उवाच
साधु साधुत्वयापृष्टंतन्त्रसारमिदंप्रिये |
गूहनीयतमं भद्रे तथापिकथयामि ते |
यत्किञ्चित्सकलं रुपं भैरवस्यप्रकीर्तितम् ||
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देवीने प्रश्न किया...
हे शिवा! आपका सत्य स्वरूप क्या है?
यह आश्चर्य से भरा जगत्क्या है?
बीज का मूलतत्वक्या है?
संसाररुपी चक्र के केंद्रस्थान पर क्या है?
सगुण विश्व के परे क्या है?
निर्गुण अमृतत्वको पाना क्या संभव है?
कृपया मेरे प्रश्नों का समाधान किजीये...
शिव ने उत्तर स्वरूप ११२ ध्यानतंत्र का प्रस्फुटन किया | अखिल विश्व के सभी पंथ-संप्रदाय इसीके एक अथवा अधिक तंत्र पद्धती के उपयोग से उत्पन्न हुए है | भूत, वर्तमान और भविष्य के संत, प्रेषित इसी तंत्र पद्धती के फलस्वरूप है |
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देवीने विचारले...
हे शिवा! तुझे खरे स्वरुप काय आहे?
हे अचंबित करणारे जगत काय आहे?
बीजाचे मूलतत्व काय आहे?
संसाररुपी चक्राच्या केंद्रस्थानी काय आहे?
नामरुपांच्यापलिकडे काय आहे?
नामरुपातीतअमृतत्वाची प्राप्ती शक्य आहे का?
कृपया माझे शंकानिरसन करा...
शिवाने उत्तरादाखल ११२ ध्यानतंत्रे सांगितली. ज्ञात-अज्ञात विश्वातील सर्व पंथसंप्रदाय,ज्ञानमार्ग यातील एक अथवा अधिक तंत्र पद्धतीद्वारा उत्पन्न झाले. भूत, वर्तमान तसेच भविष्य काळातील तत्त्ववेत्ते, प्रेषित यातील एक अथवा अधिक तंत्रपद्धतीचेफलस्वरुप आहेत.
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Devi Asks:
O Shiva, what is your reality?
What is this wonder-filled universe?
What constitutes seed?
Who centres the universal wheel?
What is this life beyond form pervading forms?
How may we enter it full, above space and time, names and descriptions?
Let my doubts be cleared!
Now Shiva replies and describes 112 meditation techniques. All the religions of the world, all the seers of the world, have reached the peak through some technique or other, and all those techniques will be in these one hundred and twelve techniques.
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तंत्र ५९
चलासने स्थितास्याथ शनैर्वा देहचालनात् |
प्रशान्ते मानसे भावे देवि दिव्यौघमाप्नुयात् ||
O Goddess, as a result of slowly swinging or rocking the body, one attains a tranquil state of mind and floats in to the stream of divine consciousness.
हे देवि, अत्यंत चंचल सवारियोपर बैठने पार सवारी के चलने से व्यक्ती का शरीर अपने आप हिलने-डूलने लगता है | साधक को चाहिये कि सवारी पर जो अनुभव आता है, उसको जान-बूझ कर अपनी तरफ से और धीरे धीरे डूलावे | अथवा किसी चलासन पर बैठ बिना भी अपने शरीर को उसी तरह से हिलावे-डूलावे जैसे कि वह चलासन पार बैठकर चल रहा हो | इस प्रक्रिया के अभ्यास से मन की सत्ता क्षीण होने लगती है, कुछ क्षण के लिये साधारण व्यक्ती को भी चित्त-वृत्ति लीन होने का अनुभव आता है | इस स्थिति में भावना के अभ्यास से चित्त-वृत्ति को पूरी तरह से विलीन कर देने पर साधक को दिव्यौघ की प्राप्ती हो जाती है, वह परम आकाश के समान सर्वत्र विद्यमान चिदानंद के प्रवाह में प्रविष्ट हो जाता है, उसका ज्ञानमय और आनंदमय स्वरूप अभिव्यक्त हो जाता है |
Put attention neither on pleasure or pain but in between to go beyond
(Dharana on Swinging the body)
Mind is like pendulum. It is always moving between two poles. It gathers momentum to go other extreme while moving to one extreme. Pendulum can loose its movement only at the center; similarly mind can be steady only following middle path and not any extreme. Attachment and detachment both are poles. Just witness the inherent polarity in everything and keep your attention in between. Neither try to cling to pleasure not try to escape pain. Moving mind is not in position to realize the truth. Only unmoving mind is in position to go beyond the polarity and attain the truth.
द्वंद्वातीत स्थितीमध्ये सत्याची अनुभूती...
मन सदैव दोन ध्रुवांमध्ये गतिमान. लंबकाप्रमाणे आयुष्यात आशा-निराशा, सुख-दु:ख. लंबक एका दिशेकडे जाताना दुसर्यार दिशेकडे जाण्यासाठी आवश्यक उर्जा प्राप्त करतो.साक्षीभावाने विश्वातील द्वंद्वाकडे पहा. दु:खापासून दूर जाण्याचा प्रयत्न नको तसेच सुखात रहाण्याचा प्रयत्न नको. एकानंतर दुसरे अटळ. जेव्हा लंबकाची गती थांबेल तेव्हाच सत्याची अनुभूती. गतिमान मनाद्वारे सत्य नेहेमीच अस्पष्ट. स्थिर मनाद्वारे सत्याची अनुभूती शक्य.
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