Sunday, February 28, 2021

Meditation techniques (ध्यान तंत्र: (VBT53) विज्ञान भैरव तंत्र ५३)

हर मास में, आपके सामने में एक ध्यानतंत्र रखुंगा | इसमें मूल संस्कृत श्लोक के साथ स्वामी सत्यसंगानंदा सरस्वती द्वारा किया हुआ अंग्रेजीमें वस्तुतः अनुवाद रहेगा | तथा हिंदीमें व्रजवल्लभ द्विवेदी द्वारा लिखा हुआ हिंदी भावानुवाद रहेगा | अन्तमें ओशो रजनीश द्वारा उस ध्यान तंत्र पर दिये हुए भाषण का सार तथा उसका मैने किया हुआ मराठी भावानुवाद रहेगा |

मेरा आपसे अनुरोध है की यह ध्यान तंत्र केवल जानकारी हेतू पढने के बजाय इसकी अनुभूती करने का प्रयास करे | अपने स्वभाव विशेष के अनुसार इसमेसे एक ही तंत्र आपको अंतिम अनुभूती देनेमें सक्षम है | इसकी खोज आपको करनी है |

हरी ओम त् सत् !           

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Every month I will be sharing one technique of meditation. There will be original Sanskrut text, and English / Marathi / Hindi commentary on the technique. I expect reader should not take it as just a piece of information but practice the technique that suits him/her for at least one month to further the spiritual quest.

| These 112 meditation techniques are the ultimate source for self realization |  

 

विज्ञान भैरव तंत्र    

VidnyanBhairav Tantra

 

श्री देव्युवाच

श्रुतं देव मया सर्वं रुद्रयामलसम्भवम् |

त्रिकभेदमशेषेणसारात्सारविभागशः ||

 

अद्यपि न निवृत्तोमे संशय: परमेश्वर |

किं रुपं तत्वतो देव शब्दराशिकलामयम् ||

 

किं वा नवात्मभेदेन भैरवे भैरवाकृतौ |

त्रिशिरोभेदभिन्नं वा किं वा शक्तित्रयात्मकम् ||

 

नादबिन्दुमयंवापिकिंचंद्रार्धनिरोधिका: |

चक्रारुढमनच्कं वा किं वा शक्तिस्वरुपकम् ||

 

परापराया: सकलम्अपरायाश्च वा पुनः |

परायायदितद्वत्स्यात्परत्वंतद्विरुध्यते ||

 

नहि वर्ण विभेदेनदेहभेदेन वा भवेत् |

परत्वंनिष्कलत्वेनसकलत्वे न तदभवेत् ||

 

प्रसादंकुरुमे नाथ नि:शेषंछिन्धिसंशयम् |

 

भैरव उवाच

साधु साधुत्वयापृष्टंतन्त्रसारमिदंप्रिये |

 

गूहनीयतमं भद्रे तथापिकथयामि ते |

यत्किञ्चित्सकलं रुपं भैरवस्यप्रकीर्तितम् ||

 

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देवीने प्रश्न किया...

 

हे शिवा! आपका सत्य स्वरूप क्या है?

यह आश्चर्य से भरा जगत्क्या है?

बीज का मूलतत्वक्या है?

संसाररुपी चक्र के केंद्रस्थान पर क्या है?

सगुण विश्व के परे क्या है?

निर्गुण अमृतत्वको पाना क्या संभव है?

कृपया मेरे प्रश्नों का समाधान किजीये...

 

शिव ने उत्तर स्वरूप ११२ ध्यानतंत्र का प्रस्फुटन किया | अखिल विश्व के सभी पंथ-संप्रदाय इसीके एक अथवा अधिक तंत्र पद्धती केउपयोग से उत्पन्न हुए है | भूत, वर्तमान और भविष्य के संत, प्रेषित इसी तंत्र पद्धती के फलस्वरूप है |

 

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देवीने विचारले...

 

हे शिवा! तुझे खरे स्वरुप काय आहे?

हे अचंबित करणारे जगत काय आहे?

बीजाचे मूलतत्व काय आहे?

संसाररुपी चक्राच्या केंद्रस्थानी काय आहे?

नामरुपांच्यापलिकडे काय आहे?

नामरुपातीतअमृतत्वाची प्राप्ती शक्य आहे का?

कृपया माझे शंकानिरसन करा...

 

शिवाने उत्तरादाखल ११२ ध्यानतंत्रे सांगितली. ज्ञात-अज्ञात विश्वातील सर्व पंथसंप्रदाय,ज्ञानमार्ग यातील एक अथवा अधिक तंत्र पद्धतीद्वारा उत्पन्न झाले. भूतवर्तमान तसेच भविष्य काळातील तत्त्ववेत्तेप्रेषित यातील एक अथवा अधिक तंत्रपद्धतीचेफलस्वरुप आहेत.  

 

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 Devi Asks:

O Shiva, what is your reality?

What is this wonder-filled universe?

What constitutes seed?

Who centres the universal wheel?

What is this life beyond form pervading forms?

How may we enter it full, above space and time, names and descriptions?

Let my doubts be cleared!

Now Shiva replies and describes 112 meditation techniques.  All the religions of the world, all the seers of the world, have reached the peak through some technique or other, and all those techniques will be in these one hundred and twelve techniques.

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तंत्र ५३

करंगकिण्या क्रोधनया भैरव्या लेलिहानया |

खेचार्या दृष्टीकाले च परावाप्तिः प्रकाशते ||

At the time of intuitive perception the attitude of karankini, krodhana, bhairavi and khechari are revealed, whereby the supreme attainment manifests.

 

सारे जगत को संज्ञाशून्य करंक के समान देखनेवाली मुद्रा करंकिणी कहलाती है | क्रोध से भरी मुद्रा क्रोधना, दृक शक्ती भैरवी, सबको चाट जाने में लगी लेलिहाना और दूर आकाश तक फैली मुद्रा खेचरी कही जाती है | ये मुद्राए जब अपने अपने काम में लग जाती है, तो उनमे परा देवी का प्रकाश आलोकित हो उठता है | इस स्थिती में साधक मुद्राओंकी अपने में भावना करता है, निष्कला देवी से सात्म्य स्थापित हो जाता है |

 

Be aware you are and discover the ever living within you

(Dharana on tantric mudras)

 

Our consciousness is only one arrowed and we are aware only about things around us. Mind reflects things which are in front of it and not behind. If you want to see yourself you have to stand in front of the mirror. Try to remember the doer while doing anything. Generally we are not aware about ourselves during any act. You have to transcend the world of reflections, beyond mind to know yourself. No labels are needed to know yourself. You are pure existence. All labels come from conditioning, civilization. You as name and form have to die but you as a existence cannot die. You are immortal. Once this is realized there is no duality. When the question ‘Who am I’ disappears, you appear to yourself. All the questions are from mind and answers too.

 

कोहम? चिदानंदरुपम् शिवोहम् शिवोहम्...

मनाद्वारे केवळ बाह्य वस्तूंचे चिंतन. ज्याप्रमाणे आरशासमोरील वस्तूंचे प्रतिबिंब आरशात दिसते, आरशामागील नाही त्याप्रमाणे मनासमोरील बाह्यवस्तूंचे प्रतिबिंब केवळ मनात उमटते, मनामागील आत्मतत्वाचे नाही. कोणतीही कृती करताना, बाह्य वस्तूंच्या चिंतनात कृती करणार्‍या कर्त्याचा विसर. प्रयत्नपूर्वक कर्त्याकडे  लक्ष देण्याचा प्रयत्न करा. कर्त्याची सर्व विशेषणे असत्य. केवळ शुद्ध आत्मतत्व अंतर्बाह्य व्याप्त. प्रश्न मनाकडून, उत्तरेही मनाकडूनच. मनापलिकडे आत्मतत्व.

 

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