Friday, May 31, 2019

Meditation techniques (ध्यान तंत्र: (VBT34) विज्ञान भैरव तंत्र ३४)


हर मास में एक ध्यानतंत्र में आपके सामने रखुंगा | इस में मूल संस्कृत श्लोक के साथ स्वामी सत्यसंगानंदा सरस्वती द्वारा किया हुआ अंग्रेजी में वस्तुतः अनुवाद रहेगा | तथा हिंदी में व्रजवल्लभ द्विवेदी द्वारा लिखा हुआ हिंदी भावानुवाद रहेगा | अन्त में ओशो रजनीश द्वारा उस ध्यान तंत्र पर दिये हुए भाषण का सार तथा उसका मैने किया हुआ मराठी भावानुवाद रहेगा |


मेरा आपसे अनुरोध है की यह ध्यान तंत्र केवल जानकारी हेतू पढने के बजाय इसकी अनुभूती करने का प्रयास करे | अपने स्वभाव विशेष के अनुसार इसमे से एक ही तंत्र आपको अंतिम अनुभूती देने में सक्षम है | इसकी खोज आपको करनी है |

हरी ओम त्  त् !

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Every month I will be sharing one technique of meditation. There will be original Sanskrut text, and English / Marathi / Hindi commentary on the technique. I expect reader should not take it as just a piece of information but practice the technique that suits him/her for at least one month to further the spiritual quest.

| These 112 meditation techniques are the ultimate source for self realization | 


विज्ञान भैरव तंत्र    
Vidnyan Bhairav Tantra

श्री देव्युवाच
श्रुतं देव मया सर्वं रुद्रयामलसम्भवम् |
त्रिकभेदमशेषेण सारात्सारविभागशः ||

अद्यपि न निवृत्तो मे संशय: परमेश्वर |
किं रुपं तत्वतो देव शब्दराशिकलामयम् ||

किं वा नवात्मभेदेन भैरवे भैरवाकृतौ |
त्रिशिरोभेदभिन्नं वा किं वा शक्तित्रयात्मकम् ||

नादबिन्दुमयं वापि किं चंद्रार्धनिरोधिका: |
चक्रारुढमनच्कं वा किं वा शक्तिस्वरुपकम् ||


परापराया: सकलम् अपरायाश्च वा पुनः |
पराया यदि तद्वत्स्यात् परत्वं तद्विरुध्यते ||

नहि वर्ण विभेदेन देहभेदेन वा भवेत् |
परत्वंनिष्कलत्वेनसकलत्वे न तदभवेत् ||

प्रसादं कुरु मे नाथ नि:शेषं छिन्धि संशयम् |


भैरव उवाच
साधु साधु त्वया पृष्टं तन्त्रसारमिदं प्रिये |

गूहनीयतमं भद्रे तथापि कथयामि ते |
यत्किञ्चित्सकलं रुपं भैरवस्य प्रकीर्तितम् ||

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देवीने प्रश्न किया...

हे शिवा! आपका सत्य स्वरूप क्या है?
यह आश्चर्य से भरा जगत् क्या है?
बीज का मूलतत्व क्या है?
संसाररुपी चक्र के केंद्रस्थान पर क्या है?
सगुण विश्व के परे क्या है?
निर्गुण अमृतत्व को पाना क्या संभव है?
कृपया मेरे प्रश्नों का समाधान किजीये...

शिव ने उत्तर स्वरूप ११२ ध्यानतंत्र का प्रस्फुटन किया | अखिल विश्व के सभी पंथ-संप्रदाय इसीके एक अथवा अधिक तंत्र पद्धती के उपयोग से उत्पन्न हुए है | भूत, वर्तमान और भविष्य के संत, प्रेषित इसी तंत्र पद्धती के फलस्वरूप है |

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देवीने विचारले...

हे शिवा! तुझे खरे स्वरुप काय आहे?
हे अचंबित करणारे जगत काय आहे?
बीजाचे मूलतत्व काय आहे?
संसाररुपी चक्राच्या केंद्रस्थानी काय आहे?
नामरुपांच्या पलिकडे काय आहे?
नामरुपातीत अमृतत्वाची प्राप्ती शक्य आहे का?
कृपया माझे शंकानिरसन करा...

शिवाने उत्तरादाखल ११२ ध्यानतंत्रे सांगितली. ज्ञात-अज्ञात विश्वातील सर्व पंथसंप्रदाय,ज्ञानमार्ग यातील एक अथवा अधिक तंत्र पद्धतीद्वारा उत्पन्न झाले. भूतवर्तमान तसेच भविष्य काळातील तत्त्ववेत्तेप्रेषित यातील एक अथवा अधिक तंत्रपद्धतीचे फलस्वरुप आहेत.  

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 Devi Asks:

O Shiva, what is your reality?
What is this wonder-filled universe?
What constitutes seed?
Who centres the universal wheel?
What is this life beyond form pervading forms?
How may we enter it full, above space and time, names and descriptions?
Let my doubts be cleared!

Now Shiva replies and describes 112 meditation techniques.  All the religions of the world, all the seers of the world, have reached the peak through some technique or other, and all those techniques will be in these one hundred and twelve techniques.

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तंत्र ३४

विश्वमेतन्महादेवी शून्यभूतं विचिन्तयत् |
तत्रैव च मनो लीनं ततस्तल्लयभजनम् ||
O great goddess, one should concentrate on this universe as nonthing but void. Dissolving the mind also like this, one then experiences the state of laya, or total dissolution.

हे महादेवि, साधक को ऐसा विचार करना चाहिये कि यह सारा चराचर जगत शून्यभूत है, अर्थात् कुछ भी नही है | यह गंधर्वनगर के तुल्य अभासात्मक, कल्पना प्रसूत, अत एव असत् है | यह नाम और रूप आदि से रहित मायाकल्पित है | इसी के साथ अपने मन को भी इसी भावना में लीन कर देना चाहिये | ऐसा करने से वह साधक लय का भाजन हो जाता है, अर्थात् उक्त भावना के अभ्यास से  यह जो स्वप्रकाशात्मक सत्तत्व उसके अपने स्वरूप में अभिव्यक्त हो गया है, उसी में उसका पूर्वकल्पित रूप विलीन हो जाता है | तब साधक का स्वरूप में तन्मयीभाव हो जाता है |    

Looking still to realize ultimate truth
(Vishwa shoonya dharana)

Knowledge of the objects is possible only with mind but realization of truth is possible only in absence of mind. Blinking of eyes facilitates thought movement. Expectation, good or bad is desire. Passive awareness brings no mind state which is ultimate freedom. If you do not provide new things to mind, it will die on its own. One seeks moksha who feels bondage. When there is no bondage how one can hanker for freedom? Once the ego is dropped you are ever liberated.  

केवळ मनरहीत अवस्थेत सत्याची अनुभूती...

गुरु-शिष्य परंपरेतून  खरे शिक्षण. शिष्याच्या क्षमतेनुसार गुरुद्वारा ज्ञानप्राप्ती. गुरुच्या जीवनसाधनेचे फळ मंत्रस्वरुपात रुपांतरीत. अस्थिर मनाद्वारे हस्तांतरण अशक्य. मोक्षप्राप्ती ही देखील एक वासनाच. केवळ वासनारहित आणी मनरहित अवस्थेत अहंकारशून्यता आणी त्यातून आत्मानुभूती. हीच सर्वोच्च मुक्तावस्था. ज्याला कोणतेही बंध नाहीत त्याला मोक्षाचीही गरज नाही.


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