Saturday, June 30, 2018

Meditation techniques (ध्यान तंत्र : (VBT23) विज्ञान भैरव तंत्र २३)

Every month I will be sharing one technique of meditation. There will be original Sanskrut text, and English / Marathi / Hindi commentary on the technique. I expect reader should not take it as just a piece of information but practice the technique that suits him/her for at least one month to further the spiritual quest.

| These 112 meditation techniques are the ultimate source for self realization | 

विज्ञान भैरव तंत्र    

Vidnyan Bhairav Tantra

श्री देव्युवाच
श्रुतं देव मया सर्वं रुद्रयामलसम्भवम् |
त्रिकभेदमशेषेण सारात्सारविभागशः ||

अद्यपि न निवृत्तो मे संशय: परमेश्वर |
किं रुपं तत्वतो देव शब्दराशिकलामयम् ||

किं वा नवात्मभेदेन भैरवे भैरवाकृतौ |
त्रिशिरोभेदभिन्नं वा किं वा शक्तित्रयात्मकम् ||

नादबिन्दुमयं वापि किं चंद्रार्धनिरोधिका: |
चक्रारुढमनच्कं वा किं वा शक्तिस्वरुपकम् ||

परापराया: सकलम् अपरायाश्च वा पुनः |
पराया यदि तद्वत्स्यात् परत्वं तद्विरुध्यते ||

नहि वर्ण विभेदेन देहभेदेन वा भवेत् |
परत्वंनिष्कलत्वेनसकलत्वे न तदभवेत् ||

प्रसादं कुरु मे नाथ नि:शेषं छिन्धि संशयम् |


भैरव उवाच
साधु साधु त्वया पृष्टं तन्त्रसारमिदं प्रिये |

गूहनीयतमं भद्रे तथापि कथयामि ते |
यत्किञ्चित्सकलं रुपं भैरवस्य प्रकीर्तितम् ||

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देवीने विचारले...

हे शिवा! तुझे खरे स्वरुप काय आहे?
हे अचंबित करणारे जगत काय आहे?
बीजाचे मूलतत्व काय आहे?
संसाररुपी चक्राच्या केंद्रस्थानी काय आहे?
नामरुपांच्या पलिकडे काय आहे?
नामरुपातीत अमृतत्वाची प्राप्ती शक्य आहे का?
कृपया माझे शंकानिरसन करा...

शिवाने उत्तरादाखल ११२ ध्यानतंत्रे सांगितली. ज्ञात-अज्ञात विश्वातील सर्व पंथसंप्रदाय,ज्ञानमार्ग यातील एक अथवा अधिक तंत्र पद्धतीद्वारा उत्पन्न झाले. भूतवर्तमान तसेच भविष्य काळातील तत्त्ववेत्तेप्रेषित यातील एक अथवा अधिक तंत्रपद्धतीचे फलस्वरुप आहेत.  

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 Devi Asks:

O Shiva, what is your reality?
What is this wonder-filled universe?
What constitutes seed?
Who centres the universal wheel?
What is this life beyond form pervading forms?
How may we enter it full, above space and time, names and descriptions?
Let my doubts be cleared!

Now Shiva replies and describes 112 meditation techniques.  All the religions of the world, all the seers of the world, have reached the peak through some technique or other, and all those techniques will be in these one hundred and twelve techniques.


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तंत्र २३
सर्वं देहागतं द्रव्यं वियाद्व्याप्तं मृगेक्षणे |
विभावयेत्ततस्तस्य भावना सा स्थिरा भवेत् ||
O gazelle-eyed one, concentrate upon all the constituents of the body pervaded by space, so that the thought becomes steady.

हे मृगेक्षणे, जिसके हृदयमे उक्त शून्यता की भावना सरलता से न जम सके, उसको चाहिये कि वह अपने शरीरमे विद्यमान अस्थि, मांस प्रभृति सभी धातुओकी शून्यरूप मे भावना करे कि मेरे इस स्थूल शरीर मे शून्य आकाश के सिवाय कुछ भी विद्यमान नही है | इस तऱ्ह से स्थूल शरीर की वासना के त्याग का अभ्यास करने से साधक के हृदयमे उपादेय शून्यता की वासना दृढ होती जाती है और अन्ततः उसके हृदयमे प्रकाश का अविर्भाव हो जाता है | इसका अभिप्राय यह है कि यह सारा जगत् रज्जु मे कल्पित सर्प की तऱ्ह अथवा सर्वथा असत्य स्वरूप मे कल्पित गंधर्वनगर की भांती कल्पनामय है, अर्थात् यह सब कुछ शून्य ही शून्य है, शून्य के सिवाय कुछ भी नही है | इस धारणा के अभ्यास से जब रज्जुसर्प, गंधर्वनगर की तऱ्ह देहगत मांस प्रभृति द्रव्यो मे भी यह शून्यता-भावना दृढ हो जाती है, तो साधक का हृदय सहसा आलोक से अलोकित हो जाता है, प्रकाश से भर जाता है |
  
Concentrate on any one object or person, feel it then leave it to realize yourself
 (Antarakasha dharana)

We lost ability of feeling the objects. At the most we see it and interpret about it. Try to feel any object with all your senses, touching, smelling, and looking. Forget all other objects. Artists, women, and children can feel more easily. In love you can have this experience. Hence love needs privacy to forget everything else around. You can love any dead object as well. Go deeply with any object or person, leaving everything else. If the feeling is total you can suddenly leave this object as well. Then only subjectivity remains, that is your true nature. Thus you can use any external object to know yourself. You are flame; whole world is your object. Choose any object to concentrate your flame upon. And when that object too falls apart, only flame remains, that is nirvana, kaivalya, moksha!

बाह्य वस्तू अथवा व्यक्तीच्या अनुभूतीतून आत्मानुभूती...

मनाच्या प्राबल्यामुळे बाह्य वस्तू अथवा व्यक्तीबद्दल केवळ विचार. त्यामुळे अनुभूतीची क्षमता क्षीण. कोणत्याही एका व्यक्तीवर अथवा वस्तूवर लक्ष केंद्रीत करा. सर्व इंद्रियांद्वारा त्याची अनुभूती घेण्याचा प्रयत्न करा. त्यातून सभोवतालच्या अन्य गोष्टींचा पूर्ण विसर. उत्कट प्रेमामध्ये ही अवस्था शक्य. तत्क्षणी ती वस्तू व त्याबद्दलची भावना मनासहित सर्व इंद्रियातून दूर करा. जर अनुभूती उत्कट असेल तर त्यापलिकडे जाणे सहज शक्य. त्या निर्वात पोकळीच्या अनुभूतीतून आत्मानुभूती.