Saturday, March 31, 2018

Meditation techniques (ध्यान तंत्र): VBT 20 (विज्ञान भैरव तंत्र २०)

Every month I will be sharing one technique of meditation. There will be original Sanskrut text, and English / Marathi / Hindi commentary on the technique. I expect reader should not take it as just a piece of information but practice the technique that suits him/her for at least one month to further the spiritual quest.

| These 112 meditation techniques are the ultimate source for self realization | 

विज्ञान भैरव तंत्र    

Vidnyan Bhairav Tantra

श्री देव्युवाच
श्रुतं देव मया सर्वं रुद्रयामलसम्भवम् |
त्रिकभेदमशेषेण सारात्सारविभागशः ||

अद्यपि न निवृत्तो मे संशय: परमेश्वर |
किं रुपं तत्वतो देव शब्दराशिकलामयम् ||

किं वा नवात्मभेदेन भैरवे भैरवाकृतौ |
त्रिशिरोभेदभिन्नं वा किं वा शक्तित्रयात्मकम् ||

नादबिन्दुमयं वापि किं चंद्रार्धनिरोधिका: |
चक्रारुढमनच्कं वा किं वा शक्तिस्वरुपकम् ||

परापराया: सकलम् अपरायाश्च वा पुनः |
पराया यदि तद्वत्स्यात् परत्वं तद्विरुध्यते ||

नहि वर्ण विभेदेन देहभेदेन वा भवेत् |
परत्वंनिष्कलत्वेनसकलत्वे न तदभवेत् ||

प्रसादं कुरु मे नाथ नि:शेषं छिन्धि संशयम् |


भैरव उवाच
साधु साधु त्वया पृष्टं तन्त्रसारमिदं प्रिये |

गूहनीयतमं भद्रे तथापि कथयामि ते |
यत्किञ्चित्सकलं रुपं भैरवस्य प्रकीर्तितम् ||

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देवीने विचारले...

हे शिवा! तुझे खरे स्वरुप काय आहे?

हे अचंबित करणारे जगत काय आहे?

बीजाचे मूलतत्व काय आहे?

संसाररुपी चक्राच्या केंद्रस्थानी काय आहे?

नामरुपांच्या पलिकडे काय आहे?

नामरुपातीत अमृतत्वाची प्राप्ती शक्य आहे का?

कृपया माझे शंकानिरसन करा...


शिवाने उत्तरादाखल ११२ ध्यानतंत्रे सांगितली. ज्ञात-अज्ञात विश्वातील सर्व पंथसंप्रदाय,ज्ञानमार्ग यातील एक अथवा अधिक तंत्र पद्धतीद्वारा उत्पन्न झाले. भूतवर्तमान तसेच भविष्य काळातील तत्त्ववेत्तेप्रेषित यातील एक अथवा अधिक तंत्रपद्धतीचे फलस्वरुप आहेत.  


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 Devi Asks:

O Shiva, what is your reality?
What is this wonder-filled universe?
What constitutes seed?
Who centres the universal wheel?
What is this life beyond form pervading forms?
How may we enter it full, above space and time, names and descriptions?
Let my doubts be cleared!

Now Shiva replies and describes 112 meditation techniques.  All the religions of the world, all the seers of the world, have reached the peak through some technique or other, and all those techniques will be in these one hundred and twelve techniques.



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तंत्र २०
निजदेहे सर्वदिक्कम्  युगपद्भावयेद्वियत् |
निर्विकल्पमनास्तस्य वियत्सर्वं प्रवर्तते ||
All the directions should be contemplated upon simultaneously in one’s own body as space or void. The mind too being free from all thoughts becomes dissolved in the vacuous space of consciousness).

साधक निर्विकल्प, एकाग्र चित्त होकर ते शरीर मे सभी दिशाओ मे पूर्व, दक्षिण, उत्तर, पश्चिम  मे व्याप्त शून्य कि एक साथ बिना क्रम से भावना करे । इस भावना के अभयास से इस यथार्थ स्थिती का बोध होने लगता है।  निल, पीत आदी के रूप मे प्रतीत हो रहा यह सारा प्रपंच भी असत्य स्वरूप है, परमार्थतः इसकी कोई वास्तविक सत्ता नाही है । इस तरह से उसकी सब पदार्थ मे शून्यता कि भावना पुष्ट हो जाती है और अंत मे यह परमाकाश मे, परम शून्य मे समाविष्ट हो जाता है । अर्थात इस सारे प्रपंच के शून्य स्वरूप हो जाने पर उसका प्रकाशमय सत्स्वरूप अभिव्यक्त हो उठता है ।

Swaying and whirling in circles to create gap between body and consciousness
(Dharana on the directions)
Whenever you are in any vehicle, you are resisting unconsciously hence the tiredness. Children or drunken people are never tired as there is no resistance. Try to create rhythm in your body during journey so as to negate the gravitational resistance. When body not in motion, observe movement of mind. Make it slower and slower to achieve inner centering. Mind needs more time to stop as compared to body. Children has natural gap between body and consciousness as it is not yet fix in body as it is in adults. Meditation is the way to regain this gap consciously. This gap is the key to transcend the body.


चक्रीय गतिमानतेतून शरीररहीत अवस्थेची अनुभूती...

संपूर्ण विश्व गतीमान. शरीराशी असलेल्या बांधिलकीमुळे त्याद्वारे नैसर्गिक गतिरोधाचा प्रयत्न. स्थिर शरीराद्वारे आंतरिक सूक्ष्म लयबद्ध गतीमानतेची अनुभूती घ्या. तटस्थ जाणीवेतून नैसर्गिक चक्रीय गतीशीलता मंदावत जाईल. त्यातून शरीर-मनापलिकडील आत्मतत्वाची अनुभूती. शरीराच्या जाणीवेतून आत्मतत्वाचे विस्मरण आणी आत्मतत्वाचा जाणीवेतून शरीराचे विस्मरण.


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