Monday, March 31, 2025

Meditation techniques (ध्यान तंत्र: (VBT 101) विज्ञान भैरव तंत्र १०१)

हर मास में, आपके सामने में एक ध्यानतंत्र रखुंगा | इसमें मूल संस्कृत श्लोक के साथ स्वामी सत्यसंगानंदा सरस्वती द्वारा किया हुआ अंग्रेजीमें वस्तुतः अनुवाद रहेगा | तथा हिंदीमें व्रजवल्लभ द्विवेदी द्वारा लिखा हुआ हिंदी भावानुवाद रहेगा | अन्तमें ओशो रजनीश द्वारा उस ध्यान तंत्र पर दिये हुए भाषण का सार तथा उसका मैने किया हुआ मराठी भावानुवाद रहेगा |

मेरा आपसे अनुरोध है की यह ध्यान तंत्र केवल जानकारी हेतू पढने के बजाय इसकी अनुभूती करने का प्रयास करे | अपने स्वभाव विशेष के अनुसार इसमेसे एक ही तंत्र आपको अंतिम अनुभूती देनेमें सक्षम है | इसकी खोज आपको करनी है |

हरी ओम त् सत् !             

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Every month I will be sharing one technique of meditation. There will be original Sanskrut text, and English / Marathi / Hindi commentary on the technique. I expect reader should not take it as just a piece of information but practice the technique that suits him/her for at least one month to further the spiritual quest.

| These 112 meditation techniques are the ultimate source for self-realization |  

 

विज्ञान भैरव तंत्र    

VidnyanBhairav Tantra

 

श्री देव्युवाच

श्रुतं देव मया सर्वं रुद्रयामलसम्भवम् |

त्रिकभेदमशेषेणसारात्सारविभागशः ||

 

अद्यपि न निवृत्तोमे संशय: परमेश्वर |

किं रुपं तत्वतो देव शब्दराशिकलामयम् ||

 

किं वा नवात्मभेदेन भैरवे भैरवाकृतौ |

त्रिशिरोभेदभिन्नं वा किं वा शक्तित्रयात्मकम् ||

 

नादबिन्दुमयंवापिकिंचंद्रार्धनिरोधिका: |

चक्रारुढमनच्कं वा किं वा शक्तिस्वरुपकम् ||


परापराया: सकलम्अपरायाश्च वा पुनः |

परायायदितद्वत्स्यात्परत्वंतद्विरुध्यते ||

 

नहि वर्ण विभेदेनदेहभेदेन वा भवेत् |

परत्वंनिष्कलत्वेनसकलत्वे न तदभवेत् ||

 

प्रसादंकुरुमे नाथ नि:शेषंछिन्धिसंशयम् |


भैरव उवाच

साधु साधुत्वयापृष्टंतन्त्रसारमिदंप्रिये |

 

गूहनीयतमं भद्रे तथापिकथयामि ते |

यत्किञ्चित्सकलं रुपं भैरवस्यप्रकीर्तितम् ||

 

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देवीने प्रश्न किया...

 

हे शिवा! आपका सत्य स्वरूप क्या है?

यह आश्चर्य से भरा जगत्क्या है?

बीज का मूलतत्वक्या है?

संसाररुपी चक्र के केंद्रस्थान पर क्या है?

सगुण विश्व के परे क्या है?

निर्गुण अमृतत्वको पाना क्या संभव है?

कृपया मेरे प्रश्नों का समाधान किजीये...

 

शिव ने उत्तर स्वरूप ११२ ध्यानतंत्र का प्रस्फुटन किया | अखिल विश्व के सभी पंथ-संप्रदाय इसीके एक अथवा अधिक तंत्र पद्धती केउपयोग से उत्पन्न हुए है | भूत, वर्तमान और भविष्य के संत, प्रेषित इसी तंत्र पद्धती के फलस्वरूप है |

 

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देवीने विचारले...

 

हे शिवा! तुझे खरे स्वरुप काय आहे?

हे अचंबित करणारे जगत काय आहे?

बीजाचे मूलतत्व काय आहे?

संसाररुपी चक्राच्या केंद्रस्थानी काय आहे?

नामरुपांच्यापलिकडे काय आहे?

नामरुपातीतअमृतत्वाची प्राप्ती शक्य आहे का?

कृपया माझे शंकानिरसन करा...

 

शिवाने उत्तरादाखल ११२ ध्यानतंत्रे सांगितली. ज्ञात-अज्ञात विश्वातील सर्व पंथसंप्रदाय,ज्ञानमार्ग यातील एक अथवा अधिक तंत्र पद्धतीद्वारा उत्पन्न झाले. भूतवर्तमान तसेच भविष्य काळातील तत्त्ववेत्तेप्रेषित यातील एक अथवा अधिक तंत्रपद्धतीचे फलस्वरुप आहेत.  

 

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 Devi Asks:

 

O Shiva, what is your reality?

What is this wonder-filled universe?

What constitutes seed?

Who centres the universal wheel?

What is this life beyond form pervading forms?

How may we enter it full, above space and time, names and descriptions?

Let my doubts be cleared!

 

Now Shiva replies and describes 112 meditation techniques.  All the religions of the world, all the seers of the world, have reached the peak through some technique or other, and all those techniques will be in these one hundred and twelve techniques.

 

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तंत्र१०१

 

सम शत्रौ च मित्रे च समो मानावमानयो: |

ब्रम्हण: परिपूर्णत्वादिति ज्ञात्वा सुखी भवेत ||

One who makes no distinction between friend and foe, honour and dishonour, knowing bramhan to be full in itself, becomes supremely happy.

 

शत्रु  और मित्र में, सम्मान करनेवाले और अपमान करनेवाले सभी प्रणियोमें, स्वात्मस्वरूप  ब्रम्ह ही  विद्यमान होता है, इस  स्वात्मस्वरूप से शत्रु  और मित्र की कोई अलग सत्ता नही  है, ऐसा जानकर  जो साधक, समान दृष्टी रखता  है, तथा सम्मान मिलने  पार अथवा अपमान होनेपर जो हर्ष  और विषाद में  नही पडता, वह  सब  तरह से सुखी  हो जाता है, परमानंद से परिपूर्ण हो जाता है ।

 

Believe to enter the reality

(Dharana on equality)

 

Reason cannot take you near reality. Only with belief all pervading nature is revealed. Mind is more powerful than matter and once mind takes the idea, matter has to follow. Knowing about something is totally different than the pure phenomenon of knowing which is possible only when you become infinite. All pervading, beyond body feeling is possible only through faith.

 

 श्रद्धेद्वारा सर्वव्यापित्वाची अनुभूती...

 

'मी' आहे कारण माझा तसा विश्वास आहे. शरीरापेक्षा मन अधिक शक्तिशाली. सापेक्ष ज्ञान नेहमीच मर्यादित, बुद्धीकेंद्रीत. भावनाकेंद्रीत निरपेक्ष ज्ञानाद्वारा आत्मानुभूती, जे जाणल्यावर अन्य काही जाणून घेण्याची इच्छाच राहत नाही कारण कोणतेही प्रश्नच उरत नाहीत.

 

 

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Friday, February 28, 2025

Meditation techniques (ध्यान तंत्र): VBT 100) विज्ञान भैरव तंत्र १००)

हर मास में, आपके सामने में एक ध्यानतंत्र रखुंगा | इसमें मूल संस्कृत श्लोक के साथ स्वामी सत्यसंगानंदा सरस्वती द्वारा किया हुआ अंग्रेजीमें वस्तुतः अनुवाद रहेगा | तथा हिंदीमें व्रजवल्लभ द्विवेदी द्वारा लिखा हुआ हिंदी भावानुवाद रहेगा | अन्तमें ओशो रजनीश द्वारा उस ध्यान तंत्र पर दिये हुए भाषण का सार तथा उसका मैने किया हुआ मराठी भावानुवाद रहेगा |

मेरा आपसे अनुरोध है की यह ध्यान तंत्र केवल जानकारी हेतू पढने के बजाय इसकी अनुभूती करने का प्रयास करे | अपने स्वभाव विशेष के अनुसार इसमेसे एक ही तंत्र आपको अंतिम अनुभूती देनेमें सक्षम है | इसकी खोज आपको करनी है |

हरी ओम त् सत् !             

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Every month I will be sharing one technique of meditation. There will be original Sanskrut text, and English / Marathi / Hindi commentary on the technique. I expect reader should not take it as just a piece of information but practice the technique that suits him/her for at least one month to further the spiritual quest.

| These 112 meditation techniques are the ultimate source for self-realization |  

 

विज्ञान भैरव तंत्र    

VidnyanBhairav Tantra

 

श्री देव्युवाच

श्रुतं देव मया सर्वं रुद्रयामलसम्भवम् |

त्रिकभेदमशेषेणसारात्सारविभागशः ||

 

अद्यपि न निवृत्तोमे संशय: परमेश्वर |

किं रुपं तत्वतो देव शब्दराशिकलामयम् ||

 

किं वा नवात्मभेदेन भैरवे भैरवाकृतौ |

त्रिशिरोभेदभिन्नं वा किं वा शक्तित्रयात्मकम् ||

 

नादबिन्दुमयंवापिकिंचंद्रार्धनिरोधिका: |

चक्रारुढमनच्कं वा किं वा शक्तिस्वरुपकम् ||

 

परापराया: सकलम्अपरायाश्च वा पुनः |

परायायदितद्वत्स्यात्परत्वंतद्विरुध्यते ||

 

नहि वर्ण विभेदेनदेहभेदेन वा भवेत् |

परत्वंनिष्कलत्वेनसकलत्वे न तदभवेत् ||

 

प्रसादंकुरुमे नाथ नि:शेषंछिन्धिसंशयम् |

 

भैरव उवाच

साधु साधुत्वयापृष्टंतन्त्रसारमिदंप्रिये |

 

गूहनीयतमं भद्रे तथापिकथयामि ते |

यत्किञ्चित्सकलं रुपं भैरवस्यप्रकीर्तितम् ||

 

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देवीने प्रश्न किया...

 

हे शिवा! आपका सत्य स्वरूप क्या है?

यह आश्चर्य से भरा जगत्क्या है?

बीज का मूलतत्वक्या है?

संसाररुपी चक्र के केंद्रस्थान पर क्या है?

सगुण विश्व के परे क्या है?

निर्गुण अमृतत्वको पाना क्या संभव है?

कृपया मेरे प्रश्नों का समाधान किजीये...

 

शिव ने उत्तर स्वरूप ११२ ध्यानतंत्र का प्रस्फुटन किया | अखिल विश्व के सभी पंथ-संप्रदाय इसीके एक अथवा अधिक तंत्र पद्धती केउपयोग से उत्पन्न हुए है | भूत, वर्तमान और भविष्य के संत, प्रेषित इसी तंत्र पद्धती के फलस्वरूप है |

 

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देवीने विचारले...

 

हे शिवा! तुझे खरे स्वरुप काय आहे?

हे अचंबित करणारे जगत काय आहे?

बीजाचे मूलतत्व काय आहे?

संसाररुपी चक्राच्या केंद्रस्थानी काय आहे?

नामरुपांच्यापलिकडे काय आहे?

नामरुपातीतअमृतत्वाची प्राप्ती शक्य आहे का?

कृपया माझे शंकानिरसन करा...

 

शिवाने उत्तरादाखल ११२ ध्यानतंत्रे सांगितली. ज्ञात-अज्ञात विश्वातील सर्व पंथसंप्रदाय,ज्ञानमार्ग यातील एक अथवा अधिक तंत्र पद्धतीद्वारा उत्पन्न झाले. भूतवर्तमान तसेच भविष्य काळातील तत्त्ववेत्तेप्रेषित यातील एक अथवा अधिक तंत्रपद्धतीचे फलस्वरुप आहेत.  

 

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 Devi Asks:

 

O Shiva, what is your reality?

What is this wonder-filled universe?

What constitutes seed?

Who centres the universal wheel?

What is this life beyond form pervading forms?

How may we enter it full, above space and time, names and descriptions?

Let my doubts be cleared!

 

Now Shiva replies and describes 112 meditation techniques.  All the religions of the world, all the seers of the world, have reached the peak through some technique or other, and all those techniques will be in these one hundred and twelve techniques.

 

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तंत्र१००


सर्वत्र भैरवो भावः सामान्येष्वपि गोचरः |

न च तदव्यतिरेकेण परोsस्तीत्यद्वया गतिः ||

The reality of bhairava dwells everywhere, even in ordinary people. By contemplating thus, ‘There is nothing other than Him’ one attains the non-dual state of homogenous awareness.

 

सभी स्थानोमे, बाह्य और अंतर सभी पदार्थोमे, भावस्वभाव, सत्स्वरूप विज्ञानात्मा का, विवेकहीन सामान्य जनो को भी स्पष्ट भान होता है, क्योकी सकल, प्रलयाकाल आदि  सभी प्रमाताओ को  'मैं  जानता  हूं ' , मैं  करता  हूं ' इस तरह  से अहं विमर्श  की  स्पष्ट प्रतीति  होती है ये सारे विमर्श भैरव-विमर्श से भिन्न नही  है, इस  लिये सारे विमर्श  एक  ही  है, विज्ञानात्मा  भैरव से भिन्न और कुछ  भी  नही  है, इस तरह  का ज्ञान हो जाने  पर अद्वैत ज्ञान की  प्राप्ती हो जाती है इससे  यह  बात स्पष्ट होती है कि परमेश्वर अहं स्वरूप ही  है और सबको स्पष्ट रुपमें ज्ञात है इस बात को जान  लेने  पर साधक स्वात्म स्वरूप में  प्रतिष्ठित हो जाता है

 

Alertness is the key for detachment

(Dharana on the non-dual reality)

 

Rational mind believes in situation whereas religious mind believes in oneself. Weak tries to change the situation and strong tries to change himself. Situation controls ignorant, Sadhakhas to be alert all the time to remain aware about situation. Siddha is naturally alert and can control situation. Human history is always directing towards freedom. Economic freedom, political freedom, social freedom etc Bondage of next level is felt once lower freedom is achieved. Moksha is total freedom from all desires. Breathing is the bridge between you and world. Hold your breath to become alert and thus detached from everything around.

 

 

मोक्षावस्था ही मुक्ततेची अंतिम पातळी...

 

तार्किक मनासाठी सर्व गोष्टी परिस्थितीसापेक्ष. धार्मिक मनासाठी सर्व गोष्टी व्यक्तीसापेक्ष. सामान्य व्यक्ती परिस्थितीचा गुलाम, साधक कार्यकारणभावासंदर्भात जागरुक, तर सिद्ध परिस्थितीजयी. मनुष्य सदैव मुक्ततेच्या शोधात. राजकिय, आर्थिक, सामाजिक मुक्तता परिपूर्ण नाही. खालील पातळीवरील मुक्ततेनंतर त्यावरील बंधनाची जाणीव. स्वतःच्या वासनांपासून मुक्तता ही सर्वोच्च स्थिती.

 

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